गेजिंग । विश्व प्रसिद्ध कंचनजंगा नेशनल पार्क के आसपास रहने वाले किसानों के लिए वैकल्पिक आय स्रोत, आजीविका प्रदान करने और वन्यजीवों के संरक्षण की दिशा में योक्सम में आज कंचनजंगा शहद लॉन्च किया गया। यह पहल डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया द्वारा डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-यूके तथा कंचनजंगा कंजरवेशन कमिटी के सहयोग से स्नो लैपर्ड कंजरवेशन प्रोजेञ्चट का हिस्सा है।
इस लॉन्च समारोह में मुख्य अतिथि युकसम एसडीएम योगेन स्यांगदेन के साथ बीडीओ ओंगदी शेरपा, पंचायत अध्यक्ष सुनीता लिंबू, केसीसी अध्यक्ष छिरिंग उदेन भूटिया, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया के लैंडस्केप समन्वयक लाक सेडेन थींग, अन्य गणमान्य लोग एवं स्थानीय किसान मौजूद थे।
बताया गया है कि इस परियोजना का उद्देश्य कंचनजंगा नेशनल पार्क के पास रहने वाले किसानों को मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण देकर उनका सहयोग करना है। पिछले दो वर्षों में किसानों को शहद उत्पादन में व्यापक प्रशिक्षण प्राप्त हुआ है और वे अब वैकल्पिक आय स्रोत के रूप में जैविक शहद का उत्पादन कर रहे हैं।
गौरतलब है कि स्थानीय किसानों द्वारा उत्पादित जैविक शहद को केसीसी द्वारा एकत्र कर पैकिंग के बाद कंचनजंगा शहद के रूप में बाजार में भेजा जाता है। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया की यह पहल इसके उन व्यापक प्रयासों का हिस्सा है, जो स्थायी आजीविका का समर्थन करने, स्थानीय ईको सिस्टम पर निर्भरता को कम करने और स्नो लैपर्ड के संरक्षण के लिए सामुदायिक समर्थन जुटाते हैं।
सिक्किम में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया की लैंडस्केप समन्वयक लाक सेडेन थींग ने कहा कि स्थानीय समुदायों के वित्तीय हित सुनिश्चित करना और स्नो लैपर्ड एवं अन्य स्थानीय वनस्पतियों, जीवों के संरक्षण के लिए उनका समर्थन हासिल करना उनका उद्देश्य है। उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान पर्यटन उद्योग पर निर्भर रहने वाले ग्रामीणों को काफी धक्का लगा था। वैसे में, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया ने स्थानीय किसानों को आवश्यक प्रशिक्षण और सहायता प्रदान करते हुए मधुमक्खी पालन को एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में पहचाना।
वहीं, युकसम एसडीएम योगेन स्यांगदेन ने डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया की पहल की सराहना करते हुए कहा, स्थायी आजीविका के साधन के रूप में मधुमक्खी पालन को अपनाने से हम न केवल अपनी प्राकृतिक विरासत की रक्षा करते हैं, बल्कि अपने समुदायों को भी फलने-फूलने के लिए सशक्त बनाते हैं। ऐसे में उन्होंने कंचनजंगा शहद के विपणन और प्रचार गतिविधियों में पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया और किसानों को पेशेवर रूप से मधुमक्खी पालन करने हेतु प्रोत्साहित किया।
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