गंगटोक । सिक्किम सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा विगत 22 जून से उत्तर सिक्किम के पूर्वी राथोंग ग्लेशियर में दो सप्ताह तक चलाया गया वैज्ञानिक अभियान सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया है। विभाग की ओर से इसकी घोषणा करते हुए कहा गया है कि 4 जुलाई तक आयोजित यह वैज्ञानिक अभियान ग्लेशियर की गतिशीलता और संभावित ग्लेशियल झील के फटने से आने वाली बाढ़ (जीएलओएफ) के जोखिमों के आकलन पर जारी अध्ययन का हिस्सा है।
विभाग की ओर से बताया गया है कि इस अध्ययन के लिए वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं की टीम को ज़ोंगरी में दो समूहों में विभाजित किया गया था। इसमें देश के हिमालयी राज्यों में एक अग्रणी पहल के तौर पर वैज्ञानिक अधिकारी डॉ नरपति शर्मा के नेतृत्व में पहली टीम ने एक मानव रहित सर्वेक्षण वाहन का उपयोग करके टिकिप ला, भाले पोखरी और राथोंग झील में बाथिमेट्रिक अध्ययन किया। वहीं, सहायक वैज्ञानिक अधिकारी डॉ आरके शर्मा के नेतृत्व में दूसरी टीम ने पूर्वी राथोंग ग्लेशियर की गतिशीलता का अध्ययन करने पर ध्यान केंद्रित किया। इसके अतिरिक्त, अभियान ने राथोंग ग्लेशियर में स्थापित एक स्वचालित मौसम स्टेशन के रखरखाव और उन्नयन का भी कार्य किया।
जानकारी के अनुसार, ग्लेशियल झीलों के इस सर्वेक्षण के दौरान महत्वपूर्ण वैज्ञानिक निष्कर्ष निकाले गए। अध्ययन में पाया गया है कि टिकिप ला की अधिकतम गहराई 55 मीटर है और इसमें कोई स्पष्ट खुला आउटलेट नहीं है, हालांकि इसके पानी का बहाव घाटी में नीचे की ओर प्रतीत होता है। वहीं, भाले पोखरी और राथोंग झील की अधिकतम गहराई क्रमश: 42 मीटर और 25.4 मीटर पाई गई और इन दोनों झीलों में स्पष्ट आउटलेट हैं। इन झीलों का आयतन मूल्यांकन वर्तमान में किया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि यह पहल सिक्किम में जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए विभाग की प्रतिबद्धता को रेखांकित करती हैं। इन सर्वेक्षणों से एकत्र किए गए डेटा संभावित जीएलओएफ जोखिमों को कम करने और राज्य के सतत विकास के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने के लिए रणनीतियों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
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