परिसीमन को लेकर बिहार के साथ हो रहा अन्याय : उपेंद्र कुशवाहा

गयाजी । राष्ट्रीय लोक मोर्चा के प्रमुख व सांसद उपेंद्र कुशवाहा एक दिवसीय दौरे पर गयाजी पहुंचे। उनके आगमन को लेकर गया परिसदन भवन के सभागार में एक प्रेसवार्ता का आयोजन किया गया। उन्होंने कहा कि बिहार में हम कुछ चुने हुए स्थानों पर बड़ी रैली करेंगे। उस रैली में विशेष एजेंडा के माध्यम से लोगों को अवगत कराने का काम करेंगे, जिसका विषय परिसीमन है। परिसीमन का मतलब लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों की संख्या का निर्धारण है, जो विभिन्न राज्यों में संविधान के अनुसार किया जाता है। दस साल पर जनगणना होगी। जनगणना के उपरांत जितनी आबादी उस वक्त की होगी, उसके अनुरूप लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों की संख्या भी बढ़ेगी।

संविधान की इस व्यवस्था के अनुसार सबसे पहली बार 1951 में आजादी के बाद जनगणना के आधार पर परिसीमन हुआ। 1961 की जनगणना के आधार पर परिसीमन हुआ, फिर 1971 की जनगणना के आधार पर भी परिसीमन हुआ। 1951 में लोकसभा सीट 494 थी, जो परिसीमन के बाद 1961 में 522 और 1971 में 543 हो गई। उसी व्यवस्था के अनुसार आगे भी परिसीमन होना चाहिए था। लेकिन, 1976 में जब आपातकाल लागू था, उस वक्त संविधान में परिवर्तन कर दिया गया और परिसीमन का कार्य रोक दिया गया, जो अभी तक रुका हुआ है। इस रुकावट से बिहार और उसके आसपास के कुछ राज्यों को बहुत नुकसान हो रहा है। अगर पुरानी व्यवस्था के अनुसार 2011 की जनसंख्या के आधार पर परिसीमन हुआ होता, तो लोकसभा क्षेत्रों की संख्या 40 से बढ़कर कम से कम 60 हो गई होती। विधानसभा क्षेत्र की संख्या भी उसके अनुरूप बढ़ती, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 50 साल से यह प्रक्रिया रुकी हुई है, जिससे बिहार के लोगों को बड़ा नुकसान हो रहा है।

उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि एक कोशिश यह भी शुरू हो गई है कि 2026 में भी परिसीमन का काम न हो और संविधान की जो व्यवस्था है, उसमें रोक की सीमा को और आगे बढ़ाया जाए। मुख्य रूप से कुछ दक्षिण भारतीय नेताओं ने मिलकर एक संगठन बना लिया है, जिसके माध्यम से लोकसभा और राज्यसभा में इस मुद्दे पर अभियान चलाया जा रहा है। एक तरफ परिसीमन नहीं होने के लिए अभियान चल रहा है, वहीं दूसरी ओर इसका लाभ उठाने की कोशिश की जा रही है। इसलिए हमारी पार्टी ने तय किया है कि हमें आम लोगों के बीच यह जानकारी पहुंचानी है कि परिसीमन के अधिकार से हम वंचित हैं और हमारा नुकसान हो रहा है। इस उद्देश्य से हमने रैली का आयोजन करने का निर्णय लिया है। दो रैलियां पहले ही हो चुकी हैं, एक शाहबाद में और दूसरी मुजफ्फरपुर में। तीसरी रैली 29 जून को गया में आयोजित की जाएगी, जिसका नाम “संवैधानिक अधिकार परिसीमन सुधार” रखा गया है। इस रैली के माध्यम से हम लोगों को अवगत कराएंगे कि बिहार का हक कैसे मारा जा रहा है, ताकि लोग जागरूक हो सकें और विरोध में उठने वाली आवाजों का सामना कर सकें।

विपक्ष ने सवाल उठाया कि जदयू का टिकट अमित शाह बांटेंगे। इस सवाल पर उन्होंने कहा कि असल बात यह है कि विपक्ष के पास कोई ठोस मुद्दा नहीं है। यह मुद्दा विहीन विपक्ष है, क्योंकि जो जनता के सवाल हैं, उन पर भारत सरकार और बिहार सरकार बहुत सक्रियता से काम कर रही हैं। विपक्ष के पास मुद्दा नहीं है, इसलिए वे अनर्गल बातें करते रहते हैं। नीतीश कुमार जी के स्वास्थ्य को लेकर जो भी तेजस्वी यादव और अन्य लोग बोल रहे हैं, उस पर उन्होंने कहा कि पहले लालू जी के स्वास्थ्य को देखें, जो अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने हुए हैं। नीतीश कुमार जी लगातार बिहार का दौरा कर रहे हैं। कोई दिन ऐसा नहीं होता जब वे किसी कार्यक्रम में शामिल न हों। वे अभी भी 16 से 18 घंटे काम करने वाले व्यक्ति हैं और इस तरह की टिप्पणियां कहीं से उचित नहीं हैं। चुनाव के ठीक पहले सामाजिक सुरक्षा पेंशन बढ़ाने के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि इसमें दिक्कत क्या है? चुनाव के पहले हो या बाद में, जनता को लाभ मिलना चाहिए। अच्छा काम किया है सरकार ने। यदि चुनाव के पहले ही सरकार से लोगों को लाभ मिल रहा है, तो यह एक बड़ी बात है।

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