गंगटोक । सिक्किम में अधिक ऊंचाई वाले हिमनद झीलों में बाढ़ (जीएलओएफ) के खतरे के आकलन हेतु एक राज्य सरकारी अभियान को आज गंगटोक से लाचेन मंगन विधायक सामदुप लेप्चा ने हरी झंडी दिखा कर रवाना किया। 31 अगस्त से 14 सितंबर तक चलने वाला यह 15 दिवसीय अभियान उत्तर सिक्किम में स्थित छह उच्च जोखिम वाली ग्लेशियल झीलों पर केंद्रित होगा, जिनमें तेनचुंगखा, खांगचुंग छो, लाचेन खांगत्शे, लाचुंग खांगत्शे, ला त्शो और शाको छो झीलें शामिल हैं।
इस अभियान के तहत पहले गुरुडोंगमार झीलों (ए, बी और सी) का आकलन करने की भी योजना थी, जिनकी अनुमानित मात्रा 178 मिलियन क्यूबिक मीटर है। हालांकि, पवित्र मानी जाने वाली इन झीलों के आकलन पर स्थानीय विरोध के कारण इसे स्थगित कर दिया गया है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव संदीप तांबे के नेतृत्व में इस अभियान दल में छह राज्य विभागों, दो केंद्रीय सरकारी एजेंसियों (जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, केंद्रीय जल आयोग), राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए), सिक्किम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एसएसडीएमए), सिक्किम विश्वविद्यालय और लाचेन जुम्सा (स्थानीय स्वशासन) के 33 अधिकारी शामिल है। भारतीय सेना की 27 माउंटेन डिवीजन और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस इसमें चिकित्सा सहायता सहित आवश्यक जमीनी सहायता प्रदान कर रही है।
अभियान के प्रमुख उद्देश्यों में झीलों के आसपास जोखिम का मूल्यांकन, झीलों और उनके आसपास के भौतिक विशेषताओं को मैप करना और मॉर्फोमेट्रिक सर्वेक्षण और जल विज्ञान एवं आउटलेट प्रवाह गतिशीलता को समझने के लिए लेक डिस्चार्ज मैजरमेंट शामिल हैं। इसके अलावा, टीम यूएवी/ड्रोन तकनीक का उपयोग करके उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाला नक्शा तैयार करने के लिए इलाके का थ्रीडी टैरेन मैपिंग भी करेगी।
यह अभियान दल बाढ़ग्रस्त ग्रस्त क्षेत्रों की पहचान हेतु बाथिमेट्रिक जांच और हाइड्रोडायनामिक मॉडलिंग पर ध्यान केंद्रित करेगा। इसके तहत, खान व भूविज्ञान विभागीय सचिव डिकी योंजन के अधीन उप-सतही भूविज्ञान, मोरेन मैटेरियल और संभावित खतरों का आकलन करने के लिए जियोफिजिकल जांच करेगा। वहीं, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया भू-आकृति, जियोमॉर्फोलॉजिकल और जियो तकनीकी अध्ययन करेगा, जिसमें चट्टान वर्गीकरण और दोष क्षेत्र विश्लेषण शामिल है। साथ ही, सिक्किम विश्वविद्यालय मोरेन तलछटी, वनस्पति का सर्वेक्षण करेगा और मोरेन परिसर की निगरानी करेगा। बताया गया है कि इस अभियान के नतीजों से ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड जोखिमों की व्यापक समझ प्राप्त होगी जिससे भविष्य में इनकी रोकथाम प्रयासों को प्रभावी किया जा सकेगा।
इसी बीच, पवित्र माने जाने वाले गुरुदोंगमार समेत अन्य झीलों पर किये जाने वाले अभियान की लाचेन और लाचुंग पाइपोन्स ने स्थानीय लोगों के साथ मिलकर चिंता व्यक्त की है। यही कारण है कि पहले अभियान में गुरुदोंगमार झील को शामिल किए जाने के बावजूद बाद में इसे फिलहाल अलग रखा गया है।
इस संबंध में पूर्व मंत्री तथा सिक्किम भूटिया लेप्चा एपेक्स कमेटी के संयोजक छितेन ताशी भूटिया ने कहा, इस अभियान दल में उनका मार्गदर्शन करने के लिए धार्मिक विभाग के संन्यासी निकाय का एक सदस्य भी होना चाहिए था। ये झीलें बहुत पवित्र हैं, जो पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम द्वारा संरक्षित हैं, जिसे भारतीय संसद द्वारा पारित करने के बाद सिक्किम सरकार द्वारा 1997/98 में अधिसूचित किया गया था।
उन्होंने आगे कहा, यह याद करें कि ल्होनक जीओएलएफ आपदा के दौरान लाचेन पाइपोन्स ने सार्वजनिक रूप से क्या कहा था। प्रशासनिक लापरवाही और व्यवस्था में हुई चूक के कारण उन्हें और सिक्किम के लोगों को आपदा का सामना करना पड़ा था जो अभी भी जारी है। इसलिए, वही गलती न दोहराएं। मैं धार्मिक विभाग से विनम्रतापूर्वक अनुरोध करता हूं कि इस मामले में हस्तक्षेप करें।
भूटिया ने जोर देकर कहा, उपर्युक्त अधिसूचना के अनुसार पूजा स्थलों के आसपास प्रवेश करने के लिए भी धार्मिक विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र अनिवार्य है। जीएलओएफ अभियान दल ने एक भी शब्द का उल्लेख नहीं किया कि उन्हें धार्मिक विभाग से सहमति प्राप्त है या नहीं। हालांकि, पूर्व मंत्री की टिप्पणियों से इतर धार्मिक विभागीय सचिव पासांग डी फेम्पू ने कहा कि उन्हें पवित्र झीलों की ओर जाने वाले अभियान दल के बारे में जानकारी नहीं है।
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