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विभिन्न कार्यक्रमों के साथ 33वां नेपाली भाषा मान्यता दिवस मना

सोरेंग । नेपाली भाषा संघर्ष के प्रमुख स्तंभ एवं पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय नर बहादुर भंडारी के गृह विधानसभा के अंतर्गत मंगसारी में भी 33वां नेपाली भाषा मान्यता दिवस मनाया गया। सोरेंग जिला अंतर्गत राजकीय माध्यमिक विद्यालय मंगसारी एवं विद्यालय प्रबंधन व विकास समिति के संयुक्त तत्वावधान में मंगलवार को यहां विभिन्न कार्यक्रमों के साथ 33वां नेपाली भाषा मान्यता दिवस मनाया गया।

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि शिक्षा विभाग के सेवानिवृत्त उपनिदेशक हरि शंकर उपस्थित थे। इसी तरह सेवानिवृत सरकारी कर्मचारी संघ के अध्यक्ष केबी भंडारी, लेखक एवं स्रोत वक्ता डॉ भीम सपकोटा, नेपाली भाषा और साहित्य के अनुयायी, जिला और ग्राम पंचायत, सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी संगठनों के सदस्य, विभिन्न स्कूलों के प्रधानाध्यापक और शिक्षक, बागवानी विभाग के उप निदेशक भानु शर्मा, संस्कृति विभाग के सहायक निदेशक सुमन श्री, श्रीहरि बाल संस्कार केंद्र मंगसारी, श्री कृष्ण प्रणामी समिति मंगसारी, एसबीआई और एआरओएच फाउंडेशन, नेपाली भाषा प्रेमी छात्र और नागरिक उपस्थित थे।

कार्यक्रम में वक्ताओं ने अपने भाषण देते हुए नेपाली भाषा को संवैधानिक मान्यता दिलाने में अग्रणी भूमिका निभाने वाले सभी भाषा योद्धाओं को याद करते हुए उनके उल्लेखनीय योगदान को नमन किया। पूर्व मुख्यमंत्री नर बहादुर भंडारी और उनकी पत्नी पूर्व लोकसभा सांसद दिल कुमारी भंडारी ने नेपाली भाषा को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने में निर्णायक भूमिका के बारे में डॉ भीम सापकोटा ने प्रकाश डाला।

नेपाली भाषा को संवैधानिक मान्यता मिले 33 साल हो गए हैं। आज वह ऐतिहासिक दिन है, जब भारतीय नेपालियों का सिर गर्व से ऊंचा हो गया। नेपाली भाषा को संवैधानिक मान्यता आसानी से नहीं मिली। 37 साल के बौद्धिक महाभारत के बाद ही नेपाली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया। 20 अगस्त 1992 को जब भाषा योद्धाओं की बुद्धिमत्ता और बौद्धिक आंदोलन के साथ-साथ कठोर तपस्या के परिणामस्वरूप नेपाली भाषा को भारत की संसद द्वारा अनुमोदित किया गया था। लेकिन नेपाली भाषा को संवैधानिक मान्यता मिलने के बाद 33 साल का सफर तय करने के बाद भी इस भाषा का उतना विकास नहीं हो पाया है, जितना होना चाहिए। नेपाली भाषा को वैश्विक स्तर पर एक विकसित और समृद्ध भाषा बनाने के लिए नये तरीके से सोचने का समय आ गया है।

यह कड़वी सच्चाई है कि नेपाली साहित्य में छात्रों की घटती रुचि, नेपाली साहित्यिक कृतियों के पढ़ने और बिक्री में कमी, अपनी मातृभाषा को किनारे रखकर अन्य भाषाएं सीखने के कारण नेपाली भाषा प्रतिस्पर्धा नहीं कर पा रही है जैसा कि कहा जाता है। वैश्विक परिप्रेक्ष्य में देखें तो हमारी अपनी नेपाली जाति के भीतर भी भाषा के प्रयोग में गिरावट और नेपालियों की जनसंख्या में लगातार गिरावट एक और बड़ी चिंता का विषय है।

कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण अंतर विद्यालय हाजिर जवाबी प्रतियोगिता रही। जिसमें टिम्बुरबुंग, मंगसारी, थरपु, बाजेक, पक्कीगांव, मालबांस और मालबांस-बुडांग स्कूलों ने भाग लिया। प्रतियोगिता में मालबंसे बुदांग स्कूल ने प्रथम स्थान प्राप्त किया। इस तरह बाजेक स्कूल और मालबंस स्कूल क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे। बच्चों की कविता प्रतियोगिता में बाजेक स्कूल की छात्रा निसुम राई प्रथम रहीं। खरपानी स्कूल की छात्रा पूजा छेत्री दूसरे और लोअर टिम्बुरबुंग स्कूल के छात्र सूरज कार्की तीसरे स्थान पर रहे। प्रतियोगिता में कुल सात विद्यालयों ने भाग लिया। इन विजेता विद्यालयों एवं विद्यार्थियों को मुख्य अतिथि एवं अन्य अतिथियों द्वारा प्रेरक पुरस्कार दिये गये।

शिक्षक टीबी कारकी द्वारा के संचालन में आयोजित कार्यक्रम में मंगसारी स्कूल के प्राचार्य श्री शंकर, विद्यालय प्रबंधन समिति के अध्यक्ष जीत बहादुर छेत्री, मुख्य अतिथि सेवानिवृत्त उपनिदेशक हरि शंकर, स्रोत वक्ता डा. भीम सापकोटा और जनक खरेल ने भी भाषण दिये। साहित्यिक प्रतियोगिता कार्यक्रम, नृत्य, गायन, नेपाली बच्चों का कविता पाठ और मौखिक कविता और उपस्थिति उत्तर प्रतियोगिता कार्यक्रम अधिक आकर्षक थे। कार्यक्रम में स्रोत वक्ता के रूप में उपस्थित आयोजन समिति की ओर से डॉ भीम सपकोटा का अभिनंदन किया गया।

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