सिलीगुड़ी, 12 सितम्बर । उत्तर बंगाल के चाय बगान श्रमिकों के अधिकारों की मांग के लिए आगामी एक अक्टूबर को सिलीगुड़ी के दार्जिलिंग मोड़ के निकट डागापुर मैदान में भाजपा ट्रेड यूनियन द्वारा एक विशाल सार्वजनिक बैठक का आयोजन किया जाएगा। इसमें पूरे दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र, तराई और डुआर्स क्षेत्र के चाय बगान श्रमिकों की भागीदारी होगी और भाजपा के राष्ट्रीय और राज्य स्तर के नेता इसे संबोधित करेंगे।
आज यहां यह जानकारी देते हुए भाजपा के दार्जिलिंग संसदीय क्षेत्र से सांसद एवं पार्टी के प्रवक्ता राजू बिष्ट ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जैसे हमारा देश प्रगति कर रहा है, वैसे ही भाजपा हमारे चाय और सिनकोना बागानों के श्रमिकों के अधिकार, न्याय एवं सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित करने हेतु प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि उत्तर बंगाल में चाय बगानों की स्थापना के बाद से ही दार्जिलिंग पहाड़, तराई और डुआर्स की कई पीढिय़ों ने इस उद्योग में काम किया है। आज लगभग 5 लाख श्रमिक सीधे चाय बगानों में कार्यरत हैं, जिनमें से अधिकांश महिलाएं हैं। इसके बावजूद, हमारे इन लोगों को पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा उनकी पैतृक भूमि पर पर्जा-पट्टा एवं अधिकारों से वंचित रखा गया है।
सांसद ने आगे कहा कि पहले कांग्रेस, फिर कम्युनिस्ट और अब टीएमसी सरकार ने चाय और सिनकोना बगान श्रमिकों के साथ बंधुआ मजदूरों जैसा व्यवहार करना जारी रखा है। वे नहीं चाहते कि इन श्रमिकों को उनकी पैतृक भूमि का पट्टा मिले। इसकी बजाय पश्चिम बंगाल सरकार चाय श्रमिकों के लिए केवल 5 डिसमिल ‘शरणार्थी पट्टा’ देकर उन्हें नुकसान पहुंचाने की साजिश रच रही है। उन्होंने कहा, देश में सबसे कम वेतन पाने वाले औद्योगिक श्रमिक होने के बावजूद पश्चिम बंगाल सरकार ने उत्तर बंगाल के चाय और सिनकोना बगानों में न्यूनतम मजदूरी कानून लागू नहीं किया है। जबकि राज्य में रबर उद्योग में कुशल श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी 405 रुपये प्रतिदिन लागू है। इसके स्थान पर कुशल चाय श्रमिकों को केवल 250 रुपये दिहाड़ी मिलती है।
भाजपा सांसद बिष्ट ने जानकारी देते हुए कहा कि वर्तमान में चाय बगान मालिकों पर भविष्यनिधि विभाग में एकाधिक मामले होने के बावजूद दोषी मालिकों के खिलाफ राज्य पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की है। उनके अनुसार, चाय बगान मालिकों पर पीएफ से संबंधित मामलों की संख्या दार्जिलिंग में 12 और जलपाईगुड़ी एवं अलीपुरद्वार जिलों में 68 है। इसके अलावा, श्रमिकों को अपना बोनस पाने के लिए भी हर साल संघर्ष करना पड़ता है। चाय कंपनियों की ओर से श्रमिकों को स्वास्थ्य लाभ प्रदान करना भी अपेक्षित होने के बावजूद अधिकांश चाय बगान प्रबंधन ऐसा नहीं करते हैं। फिर भी, पश्चिम बंगाल सरकार इस ओर से पूरी तरह से आंखें मूंद लेती है। साथ ही चाय बगान श्रमिकों को केंद्र की कई योजनाओं से भी वंचित रखा गया है।
सांसद के अनुसार, वर्तमान में इस क्षेत्र में ऐसे कई बगान हैं जो विगत 5 वर्षों से अधिक समय से बंद पड़े हैं। वहीं, 2004 से 2014 के बीच उत्तर बंगाल में लगभग 3000 चाय श्रमिकों की भूख से मौत हुई है। फिर भी पश्चिम बंगाल सरकार इन बगानों को फिर से शुरू करने में विफल रही है। उन्होंने कहा, उत्तर बंगाल के चाय बगान श्रमिकों द्वारा सामना किए जाने वाले ऐसे कई अन्य अभावों एवं भेदभाव को उजागर करने के लिए ही एक अक्टूबर की बैठक आयोजित की जा रही है।
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