प्रो महेंद्र पी लामा ने 2047 के लिए पेश किया राज्य का विचारशील विजन

‘सिक्किम का विकास उद्योग आधारित नहीं हो सकता है’

गंगटोक : सिक्किम के भारत में विलय के 50 साल पूरे होने पर सिक्किम सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर महेंद्र पी लामा ने 2047 तक राज्य के अगले अध्याय के लिए एक विचारशील विजन पेश किया है।

1975 में सिक्किम के राजशाही से राज्य का दर्जा प्राप्त करने के उपलक्ष्य में एक पॉडकास्ट पर बोलते हुए, प्रोफेसर लामा ने एक छोटे से हिमालयी राज्य की यात्रा पर बात की, जो भारत के सबसे शांतिपूर्ण और प्रगतिशील राज्यों में से एक के रूप में उभरा है। उन्होंने सिक्किम की अनूठी पहचान पर प्रकाश डाला, जो चार मजबूत स्तंभों राजनीतिक इतिहास, जैव विविधता, सांस्कृतिक सद्भाव और अनुच्छेद 371 एफ के तहत संवैधानिक सुरक्षा पर आधारित है। प्रो लामा ने कहा, इनसे सिक्किम की विशिष्टता को बनाए रखने में मदद मिली है।

वर्तमान में, सिक्किम की प्रति व्यक्ति आय अब लगभग 7.5 लाख है, जो देश में सबसे अधिक है। 1975 में, राज्य की लगभग 85 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे थी जो आज सिर्फ 2 प्रतिशत है। उनके अनुसार, लेकिन यात्रा आसान नहीं रही है। अपने एकीकरण के बावजूद, सिक्किम को बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। लामा ने कहा, हम भावनात्मक और संस्थागत रूप से भारत में सबसे एकीकृत राज्य हैं, लेकिन शारीरिक रूप से सबसे कम जुड़े हुए हैं। केवल एक राष्ट्रीय राजमार्ग के साथ जो महीनों तक अवरुद्ध रहता है और एक कम उपयोग वाला पाकिम हवाई अड्डा का जिक्र करते हुए उन्होंने जोर देकर कहा कि रेल और सड़क संपर्क सहित बेहतर परिवहन बुनियादी ढांचे की तत्काल आवश्यकता है।

इसके अलावा, लामा ने जलवायु परिवर्तन के खतरे पर भी बात की। उन्होंने कहा कि अक्टूबर 2023 में विनाशकारी ग्लेशियल झील विस्फोट से आई बाढ़ ने सिक्किम की पर्यावरणीय खतरे की दर्दनाक याद दिला दी। उन्होंने कहा, 2047 तक सिक्किम भारत के हरित गंतव्य के रूप में पहचाना जाना चाहता है, जहां ऊर्जा से लेकर कृषि, पर्यटन से लेकर परिवहन तक हर गतिविधि स्थिरता पर आधारित हो। उन्होंने हरित प्रौद्योगिकी, पर्यावरण अनुकूल उद्यमशीलता एवं जलवायु अनुकूलन, आपदा तैयारी एवं हरित उद्योग के लिए समर्पित दूसरी पीढ़ी के संस्थानों की आवश्यकता पर जोर दिया।

प्रो. लामा ने यह भी बताया कि सिक्किम का विकास तमिलनाडु या गुजरात जैसे राज्यों के औद्योगिक मॉडल को प्रतिबिंबित नहीं कर सकता है। उन्होंने समझाते हुए कहा, हमारे पास नाजुक ईको सिस्टम, सीमित वहन क्षमता और समृद्ध सांस्कृतिक और पारिस्थितिकी विरासत है जिसे संरक्षित किया जाना चाहिए। ऐसे में, उन्होंने उत्तराखंड एवं हिमाचल प्रदेश जैसे पर्वतीय राज्यों और भूटान एवं नेपाल जैसे पड़ोसी देशों के अनुरूप विकास मॉडल का आह्वान किया। उन्होंने चीन, नेपाल और भूटान की सीमा से सटे सिक्किम की रणनीतिक स्थिति के कारण इसे भारत की एक्ट ईस्ट नीति के केंद्र में बताया।

प्रो. लामा ने कहा, सिक्किम राज्य हिमालयी क्षेत्र और दक्षिण पूर्व एशिया के साथ सीमा पार व्यापार, पर्यटन, शिक्षा और ऊर्जा विनिमय के लिए एक सेतु बन सकता है। इस उद्देश्य के लिए, तिब्बत के साथ व्यापार मार्गों को फिर से खोलना, पश्चिम सिक्किम और पूर्वी नेपाल के बीच एक आर्थिक गलियारा शुरू करना और क्षेत्रीय बिजली ग्रिडों के साथ एकीकरण जैसे प्रस्ताव विचाराधीन हैं। पड़ोसी देशों के साथ सिक्किम के सांस्कृतिक और भौगोलिक संबंध इसे ऐसे क्षेत्रीय सहयोग के लिए अद्वितीय रूप से अनुकूल बनाते हैं।

गौरतलब है कि भारत जहां 2047 तक एक विकसित राष्ट्र के अपने दृष्टिकोण की दिशा में काम कर रहा है, वैसे में प्रोफेसर लामा का मानना है कि सिक्किम भारी उद्योगों के माध्यम से नहीं, बल्कि स्थिरता और पर्यावरणीय नवाचार में अग्रणी होकर इसमें अपना योगदान देगा। उन्होंने कहा, हमारी भूमिका यह दिखाना है कि विकास प्रकृति के साथ कैसे चल सकता है। अगर हम अपने संसाधनों की रक्षा करते हैं, तो हम न केवल सिक्किम, बल्कि पूरे क्षेत्र की रक्षा करते हैं।

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