पशु संरक्षण कानूनों और पशु चिकित्सकों की भूमिका पर कार्यशाला आयोजित

गंगटोक : PETA India ने साराह तथा पशुपालन एवं पशु चिकित्सा सेवा विभाग (सिक्किम सरकार) के सहयोग से आज राज्य पशु चिकित्सालय, गंगटोक में पशु संरक्षण कानूनों और पशु चिकित्सकों की भूमिका पर एकदिवसीय प्रशिक्षण और जागरुकता कार्यक्रम का आयोजन किया। यह कार्यक्रम तीन दिवसीय कार्यशाला का अंतिम चरण था, जिसका उद्देश्य सिक्किम राज्य में पशु संरक्षण कानूनों के प्रति जागरुकता बढ़ाना और उनके प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करना था।

कार्यशाला का नेतृत्व प्रसिद्ध अधिवक्ता और पेटा इंडिया के क्रूरता प्रतिक्रिया प्रभाग के प्रमुख मीत अशर ने किया। अशर पशु कल्याण बोर्ड के मानद पशु कल्याण प्रतिनिधि भी हैं, जो भारत सरकार के मत्स्य, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के अधीन एक वैधानिक निकाय है। कार्यशाला की शुरुआत पशु कल्याण बोर्ड द्वारा प्रकाशित पशु चिकित्सकों के लिए पशु कल्याण कानूनों की पुस्तिका के वितरण से हुई। अशर ने कहा कि पशु चिकित्सक पशु स्वास्थ्य के संरक्षक होते हैं और उन्हें समग्र देखभाल सुनिश्चित करनी चाहिए। उन्होंने पशु कल्याण के लिए एक रूपरेखा प्रस्तुत की जिसमें पशुओं को भूख, प्यास, असुविधा, दर्द, चोट, बीमारी, डर और तनाव से मुक्त रखने के साथ-साथ उन्हें स्वाभाविक व्यवहार करने का अवसर देना शामिल था।

अशर ने ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 तथा भारतीय पशु चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1984 जैसे महत्वपूर्ण कानूनों के साथ-साथ पशु क्रूरता निवारण अधिनियम और इसके अंतर्गत बनाए गए नियमों का विस्तार से विश्लेषण किया। उन्होंने पशुधन बाजार विनियमन नियम, 2017 और पशुपालन अभ्यास एवं प्रक्रियाएं नियम, 2023 की भी जानकारी दी। उन्होंने पशुओं की जब्ती और निरीक्षण के दौरान पशु चिकित्सकों की भूमिका पर प्रकाश डाला, जिसमें स्वास्थ्य परीक्षण, मानवीय पहचान पद्धतियां जैसे ईयर टैगिंग या माइक्रो चिपिंग और गर्म या ठंडे ब्रांडिंग जैसे हानिकारक तरीकों से बचाव शामिल है। उन्होंने पुलिस सहायता प्राप्त मामलों के लिए निर्धारित एसओपी में बताया कि यदि पशु जीवित हो, तो क्षेत्रीय पशु चिकित्सा अधिकारी द्वारा उसका परीक्षण और उपचार अनिवार्य है। यदि पशु मरणासन्न स्थिति में हो, तो दया-मृत्यु की जा सकती है। मृत अवस्था में पोस्टमार्टम आवश्यक है और यदि विषाक्तता की आशंका हो, तो विसरा को सील कर पुलिस की निगरानी में फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला भेजा जाए।

उन्होंने पशु परिवहन के दौरान चिकित्सा प्रमाण पत्र की आवश्यकता और बीमार, गर्भवती, नवजात अथवा हाल ही में बच्चे देने वाले पशुओं के परिवहन पर प्रतिबंध की जानकारी दी। प्रदर्शनकारी पशुओं के संबंध में अशर ने बताया कि परफॉर्मिंग एनिमल्स रजिस्ट्रेशन रूल्स, 2001 के अंतर्गत पशु चिकित्सकों को स्वास्थ्य प्रमाण पत्र जारी करना अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि पशु चिकित्सकों को वधगृहों में वध से पहले और बाद में निरीक्षण करना होता है। गर्भवती, तीन महीने से कम उम्र वाले या उनके बच्चों के साथ मौजूद पशुओं का वध निषिद्ध है। एक पशु चिकित्सक अधिकतम 96 पशुओं का ही परीक्षण कर सकता है।

अशर ने एबीसी नियम, 2023 की धाराओं 3(10), 11(10), 11(15), 13, एवं 20(2) का उल्लेख करते हुए समुदाय पशु जनसंख्या नियंत्रण और रेबीज रोकथाम में चिकित्सकों की भूमिका स्पष्ट की। उन्होंने पालतू पशुओं के व्यापार और पशुपालन प्रक्रियाओं में पशु चिकित्सकों की जिम्मेदारियों को भी रेखांकित किया। कार्यक्रम का स्वागत भाषण और धन्यवाद ज्ञापन पशुपालन विभाग के अतिरिक्त निदेशक-कम-कार्यक्रम समन्वयक डॉ थिनले नेदुप भूटिया द्वारा दिया गया। कार्यशाला में अतिरिक्त निदेशक, संयुक्त निदेशक, उपनिदेशक, सहायक निदेशक, पशु चिकित्सा अधिकारी, पशुधन सहायक, निगरानी एवं गुणवत्ता नियंत्रण प्रकोष्ठ के सदस्य, पशु अधिकार कार्यकर्ता और विभाग के अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।

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