आयोजित अनुसंधान पद्धति और वैज्ञानिक लेखन पर दो दिवसीय सेमिनार संपन्न

गंगटोक : क्षेत्रीय आयुर्वेद अनुसंधान संस्थान (तादोंग) द्वारा आयोजित अनुसंधान पद्धति और वैज्ञानिक लेखन पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), गंगटोक के सम्मेलन हॉल में संपन्‍न हुआ। दूसरे दिन प्रतिष्ठित विशेषज्ञों द्वारा वर्चुअल और व्यक्तिगत सत्रों की श्रृंखला आयोजित की गई।

वर्चुअल सत्र का संचालन सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय, स्कूल ऑफ हेल्थ साइंसेज, पुणे के पूरक और एकीकृत स्वास्थ्य केंद्र के डॉ गिरीश टिल्लू, भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय के राष्ट्रीय होटल प्रबंधन और खानपान प्रौद्योगिकी परिषद (एनसीएचएमसीटी) के सेवानिवृत्त निदेशक (प्रशासन और वित्त) और सदस्य सचिव एलके गांगुली और केंद्रीय आयुर्वेदिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (सीसीआरएएस), नई दिल्ली के सांख्यिकी अधिकारी डॉ राकेश राणा और डॉ अरुणाभ त्रिपाठी द्वारा किया गया।

उनके सत्रों में अनुसंधान और वैज्ञानिक लेखन के महत्वपूर्ण पहलुओं को शामिल किया गया, जिसमें वैज्ञानिक पांडुलिपियों की तैयारी, अनुसंधान प्रबंधन और प्रशासन, वर्णनात्मक सांख्यिकी और सांख्यिकीय परीक्षण तथा नमूना आकार निर्धारण और नमूनाकरण तकनीक शामिल थे। सिक्किम मणिपाल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एसएमआईएमएस) के फिजियोलॉजी विभाग के प्रोफेसर और प्रमुख डॉ. संजय कुमार ने उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में अनुक्रमित पत्रिकाओं में प्रकाशन और अनुसंधान के अवसरों पर एक सत्र दिया।

जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान के सिक्किम क्षेत्रीय केंद्र के प्रभारी वैज्ञानिक डॉ राजेश जोशी ने वैज्ञानिक लेखन में होने वाली सामान्य त्रुटियों और उनसे बचने के तरीकों पर बात की। कार्यशाला में शोध पत्र लेखन पर एक व्यावहारिक प्रशिक्षण सत्र भी शामिल था, जिसका संचालन डॉ राजेश जोशी (वैज्ञानिक ई), जीबी पंत (एनआईएचई, एसआरसी), डॉ अचिंत्य मित्रा (सहायक निदेशक प्रभारी, आरएआरआई, गंगटोक) और डॉ अनिमेष सेन (अनुसंधान सहायक, आरएआरआई, गंगटोक) द्वारा किया गया।

इसके बाद समापन सत्र हुआ, जिसमें भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) के निदेशक प्रशांत टी इलमकर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। अपने संबोधन में उन्होंने प्रतिभागियों से साहित्यिक चोरी से बचने और नई अंतर्दृष्टि उत्पन्न करने पर ध्यान केंद्रित करके अपने काम में मौलिकता सुनिश्चित करने का आग्रह किया। उन्होंने शोधकर्ताओं को पुस्तकों का अध्ययन करते समय पंक्तियों के बीच पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया तथा उनके भावी शोध प्रयासों में सफलता की कामना की। प्रतिभागियों ने कार्यशाला पर अपनी प्रतिक्रिया साझा की तथा ज्ञानवर्धक सत्रों और व्यावहारिक प्रशिक्षण के लिए सराहना व्यक्त की। कार्यक्रम का समापन आरएआरआई, गंगटोक के प्रभारी सहायक निदेशक डॉ मित्रा के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।

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