गंगटोक । राज्य शिक्षा विभाग के तहत स्कूल लीडरशिप अकादमी द्वारा नेशनल सेंटर फॉर स्कूल लीडरशिप के सहयोग से स्थानीय एक होटल में आज से ‘सेलिब्रेटिंग स्कूल लीडरशिप’ के बैनर तले ‘संपूर्ण स्कूल विकास : स्कूल ईको सिस्टम में नेतृत्व समन्वय’ विषय पर पूर्वोत्तर क्षेत्रीय सेमिनार का आयोजन किया जा रहा है। तीन दिवसीय इस सेमिनार के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में एससीईआरटी निदेशक डॉ रॉबिन छेत्री के साथ एनसीएसएल-एनआईईपीए, नई दिल्ली के सहायक प्रोफेसर डॉ कश्यपी अवस्थी, एससीईआरटी सिक्किम के संयुक्त निदेशक डॉ. शांति राम अधिकारी, एसएलए के नोडल अधिकारी, एससीईआरटी सिक्किम फैकल्टी एवं पूर्वोत्तर राज्यों के स्कूल प्रमुख भी उपस्थित थे।
सेमिनार में तीनों दिन तकनीकी सत्रों में सिक्किम समेत समूचे पूर्वोत्तर के स्कूल प्रमुख अपने-अपने स्कूलों की यात्रा, चुनौतियों और सफलता की कहानियों के बारे में विचार एवं प्रस्तुतियां साझा करेंगे। साथ ही वे साथी शिक्षकों और हितधारकों के साथ अपने अनुभव और आदान-प्रदान की पेशकश भी करेंगे। इसी तरह, कार्यक्रम में विभिन्न वक्ताओं द्वारा स्कूल नेतृत्व और समग्र विकास के लिए संस्थान के माहौल को बढ़ाने से संबंधित विभिन्न विषयों को संबोधित किया जाएगा।
आज इसके उद्घाटन अवसर पर एससीईआरटी निदेशक डॉ छेत्री ने शिक्षा परिदृश्य के प्रमुख पहलुओं के साथ सिक्किम के विभिन्न स्कूलों से प्राप्त एससीईआरटी की व्यावहारिक स्थितियों पर प्रकाश डाला। साथ ही उन्होंने देश भर में शिक्षकों के प्रयासों को स्वीकार एवं साझा करने की अनिवार्यता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि प्रत्येक स्कूल में ऐसे एक या अनेक शिक्षक होते हैं जो असाधारण प्रयासों में लगे होते हैं। इसके अलावा, उन्होंने नई शिक्षा नीति के महत्व पर भी बात करते हुए कहा कि एनईपी आकांक्षी और प्रेरणादायक दोनों है और इसमें समग्र विकास को बढ़ावा और समाज में सार्थक योगदान देने में सक्षम पीढ़ी का पोषण कर देश के भविष्य की दिशा में क्रांतिकारी बदलाव लाने की क्षमता है। उन्होंने नए राष्ट्रीय पाठ्यक्रम ढांचे के बारे में भी कहा कि यह एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है, जो शैक्षिक उद्देश्यों एवं महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में एक आधारशिला है।
वहीं, डॉ कश्यपी अवस्थी ने अपने वक्तव्य में प्रभावी स्कूल नेतृत्व के बारे में कहा कि सच्चा नेतृत्व केवल पुरस्कारों और प्रशंसाओं की स्वीकृति से कहीं आगे है। इसमें एक ऐसे वातावरण को बढ़ावा देने की क्षमता में निहित है जहां सहयोग, नवाचार और आशावाद पनप सके। साथ ही उन्होंने स्कूल नेतृत्वों और शिक्षकों के लिए सेमिनारों और कार्यशालाओं के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि शिक्षकों का कार्य काफी महत्वपूर्ण होता है और वे ज्ञान प्रसार के अग्रदूत हैं। उन्होंने प्रतिभागियों से सेमिनार के दौरान सवाल करने, बातचीत करने और अपने दृष्टिकोण में योगदान देने का आग्रह किया।
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