भूस्खलन में मारे गए जवान का शव घर पहुंचा, अंतिम यात्रा में उमड़ी लोगों की भीड़

गंगटोक : उत्तरी सिक्किम के चाटेन में भूस्खलन में शहीद हुए जवान सैनुद्दीन पीके के पार्थिव शरीर को लगभग 2,500 किलोमीटर की कठिन और जटिल यात्रा के बाद अंततः घर लाए जाने पर राष्ट्र ने गहरा शोक व्यक्त किया। भारतीय सेना द्वारा लगातार आठ दिनों तक खोजबीन के बाद 8 जून को पार्थिव शरीर बरामद किया गया। जवान सैनुद्दीन का जन्म 20 दिसंबर 1991 को लक्षद्वीप के अन्द्रोथ नामक गांव में हुआ था। वह मार्च 2012 में भारतीय सेना में शामिल हुए और 13 वर्षों तक देश की सेवा की। उनकी सेवा के दौरान उन्हें भारत के कुछ सबसे कठिन सैन्य स्थानों पर जाना पड़ा, जिनमें सियाचिन ग्लेशियर की बर्फीली और कठोर चोटियां भी शामिल थीं। उनके साथी सैनिक और कमांडिंग ऑफिसर उन्हें एक अनुशासित, समर्पित और पेशेवर सैनिक के रूप में याद करते हैं, जिन्होंने हर दिन अपना सर्वश्रेष्ठ दिया।

सिपाही सैनुद्दीन की अंतिम यात्रा शारीरिक और भावनात्मक दोनों थी। उत्तरी सिक्किम के सुदूर और पहाड़ी क्षेत्र से उनके अवशेषों को लक्षद्वीप में उनके पैतृक घर अन्द्रोथ ले जाया गया। लगभग 2,500 किलोमीटर की यह लम्बी यात्रा, स्थानीय प्रशासन के समन्वय में भारतीय सेना, भारतीय वायु सेना और भारतीय नौसेना के संयुक्त प्रयास का परिणाम थी। सेना के हेलीकॉप्टरों, सी-295 विमान सहित भारतीय वायु सेना के विमानों और नौसेना इकाइयों ने यह सुनिश्चित करने में भूमिका निभाई कि सैनिक का शव सम्मान और गरिमा के साथ वापस लौटाया जाए। 8 जून को पश्चिम बंगाल के बेंगडुबी सैन्य स्टेशन पर एक समारोह आयोजित किया गया, जहां सिपाही सैनुद्दीन के बलिदान को श्रद्धांजलि देते हुए पूर्ण सैन्य सम्मान दिया गया।

बाद में अन्द्रोथ में भारतीय नौसेना ने राष्ट्र की सेवा में अपने प्राण न्यौछावर करने वाले बहादुर सैनिक के प्रति सम्मान प्रकट करते हुए गार्ड ऑफ ऑनर का आयोजन किया। जवान सैनुद्दीन के कमांडिंग ऑफिसर ने सैनिक के गुणों के बारे में बात करते हुए कहा कि सिपाही सैनुद्दीन पीके ने भारतीय सेना के सर्वोत्तम मूल्यों का प्रतिनिधित्व किया। उनका देश के प्रति अटूट समर्पण काबिलेतारिफ था। चाहे वह सियाचिन की बर्फीली ऊंचाइयों पर हों या सिक्किम की दुर्गम पहाड़ियों पर, उन्होंने साहस और शांति का परिचय दिया, जिससे उनके आसपास के सभी लोग प्रेरित हुए। उनका बलिदान हमें याद दिलाता है कि सच्ची बहादुरी दूसरों की नि:स्वार्थ सेवा करने में है। भले ही हमें अज्ञात खतरों का सामना करना पड़े। हम अपने साथी और भारत के बेटे को सलाम करते हैं, जिनकी स्मृति हमेशा हमारा मार्गदर्शन करेगी। यह सिर्फ एक सैनिक के अवशेषों का परिवहन नहीं था, बल्कि राष्ट्र द्वारा अपनी गहरी कृतज्ञता दर्शाने का तरीका था। सेना, नौसेना और वायु सेना के बीच टीम वर्क तथा इसमें शामिल प्रत्येक व्यक्ति द्वारा दिया जाने वाला सम्मान, एक सैनिक और उसके देश के बीच अटूट बंधन को दर्शाता है। जवान सैनुद्दीन की घर वापसी की यात्रा भारत द्वारा उन लोगों को सम्मान देने के वादे का प्रतीक है, जो इसकी सेवा और सुरक्षा करते हैं।

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