गंगटोक : सिक्किम उच्च न्यायालय ने राज्य में पढ़ाई जाने वाली नेपाली भाषा की भाषाई अखंडता और शैक्षणिक सटीकता की रक्षा हेतु प्रख्यात लेखकों, विद्वानों और शिक्षाविदों की एक छह सदस्यीय समिति का गठन किया है। उच्च न्यायालय ने यह कदम एक जनहित याचिका पर विचार करते हुए उठाया है।
सिक्किम उच्च न्यायालय के निर्देशानुसार गठित इस ‘भाषाई निरीक्षण विशेषज्ञ समिति’ में सिक्किम अकादमी के अध्यक्ष सुक राज सुब्बा, प्रख्यात नेपाली लेखक चंद्र प्रकाश शर्मा, साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता शंकर देव ढकाल, एनबीबीजीसी के सहायक प्रोफेसर डॉ. टेक बहादुर छेत्री, साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता युवा बराल और सिक्किम विश्वविद्यालय के नेपाली विभाग की प्रोफेसर कबिता लामा शामिल हैं।
सिक्किम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश विश्वनाथ सोमद्दार और न्यायमूर्ति मीनाक्षी मदन राई की खंडपीठ ने 21 अगस्त को जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान तत्काल प्रभाव से उक्त समिति का गठन किया।
गौरतलब है कि यह जनहित याचिका विद्वान धन राज गुरुंग द्वारा दायर की गई थी, जिसमें सिक्किम विश्वविद्यालय द्वारा राज्य में पढ़ाई और प्रचारित की जा रही नेपाली भाषा की भाषाई अखंडता, संवैधानिक पवित्रता और शैक्षणिक सटीकता की रक्षा के लिए तत्काल और प्रभावी न्यायिक हस्तक्षेप की मांग की गई थी।
इस संबंध में अपने हलफनामे में, राज्य सरकार ने अदालत को बताया था कि वह नेपाली भाषाविज्ञान, शिक्षाशास्त्र और साहित्यिक आलोचना के विशेषज्ञों वाली एक ‘भाषाई निरीक्षण विशेषज्ञ समिति’ के गठन की प्रक्रिया में है। चूंकि राज्य सरकार ने अभी तक समिति का गठन नहीं किया है और न ही कोई समय-सीमा निर्दिष्ट की है, इसलिए अदालत ने तत्काल प्रभाव से छह सदस्यीय ‘भाषाई निरीक्षण विशेषज्ञ समिति’ का गठन किया।
मामले में सिक्किम उच्च न्यायालय ने कहा कि समिति का बहुमत निर्णय अंतिम होगा और समिति के सभी सदस्यों पर बाध्यकारी होगा। न्यायालय ने समिति को तुरंत काम शुरू करने और चार सप्ताह के भीतर राज्य शिक्षा विभाग को अपनी रिपोर्ट सौंपने को कहा है। इसके बाद, राज्य सरकार रिपोर्ट पर अपनी सुविचारित राय के साथ, निष्कर्ष न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करेगी। इस मामले की अगली सुनवाई 25 सितंबर को होगी।
इससे पहले, 7 अगस्त को जनहित याचिका पर हुई सुनवाई में न्यायालय ने कहा था कि सिक्किम में लगभग सभी लोग जिस भाषा को बोलते हैं, उसकी भाषाई अखंडता और पवित्रता को संरक्षित और सुरक्षित रखना अत्यंत आवश्यक है।
न्यायालय ने कहा, यदि किसी शैक्षणिक संस्थान द्वारा नेपाली भाषा की शिक्षा देते समय उसमें मामूली विकृतियां भी पाई जाती हैं, तो वे भाषा की अखंडता और शैक्षणिक सटीकता के साथ समझौता कर सकती हैं और एक समान देवनागरी लिपि की नेपाली और अन्य भाषाओं के बीच के नाजुक अंतर पर भी सीधा प्रभाव डाल सकती हैं।
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