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दिवाली पर प्‍लास्टिक के फूल बने चिंता का विषय

गंगटोक : नेपाली संस्कृति में तिहार (दिवाली) एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसमें दीयों, मालाओं और दीपों का विशेष महत्व है। लेकिन हाल के वर्षों में बाजार में प्लास्टिक के फूलों का उपयोग बढ़ रहा है, जिससे न केवल हमारी संस्कृति की मौलिकता खो रही है, बल्कि पर्यावरण पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

प्लास्टिक के फूल पर्यावरण प्रदूषण का कारण बनते हैं क्योंकि एक बार उपयोग के बाद फेंक दिए जाने पर वे दशकों तक विघटित नहीं होते हैं। ये अपशिष्ट मिट्टी में नहीं मिलते और जानवरों के लिए हानिकारक हो सकते हैं। इसलिए, अब समय आ गया है कि ऐसी अप्राकृतिक सजावटों को त्याग दिया जाए।

इसके बजाय, आइए तिहाड़ के लिए गेंदे, मखमली और गोदावरी जैसे मूल और प्राकृतिक फूलों की माला का उपयोग करें। इन फूलों की खुशबू न केवल वातावरण को खुशनुमा बनाती है, बल्कि ये हमारे पारंपरिक त्योहारों को और भी खास और सार्थक बनाते हैं क्योंकि ये खिलने के मौसम के साथ मेल खाते हैं। यह किसानों के फूल उत्पादन को प्रोत्साहित करने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को समर्थन देने का भी एक अवसर है।

प्राकृतिक फूलों का उपयोग न केवल संस्कृति को संरक्षित रखता है बल्कि पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आइए इस पर्व पर हम सभी अप्राकृतिक एवं प्लास्टिक के फूलों का उपयोग त्याग कर प्रकृति के साथ पर्व मनाने का संकल्प लें। ‘अपनी परंपरा और धरती से प्रेम करो’ की सोच से सजा तिहार मनाकर ही हम आने वाली पीढ़ियों को स्वच्छ पर्यावरण और विरासत सौंप सकते हैं।

आइए इस त्योहार पर फूल प्राकृतिक और मोती शुद्ध रखें। इस समय राज्य के अधिकांश बाजारों में प्लास्टिक के फूल बहुतायत में उपलब्ध हैं, इसलिए मानवता को यह समझना चाहिए कि यह चीज कितना प्रभावित कर रही है। वहीं, हम इस त्‍योहार पर पटाखा फोड़ते हैं जिससे पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचता है।

#anugamini #sikkim

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