गंगटोक : सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (गोले) द्वारा हाल ही में शुरु किए गए ‘कानूनी सहयोग अभियान’ को गैरकानूनी और असंवैधानिक बताते हुए भारतीय जनता पार्टी ने आलोचना की है।
रांगगांग यांगगांग निर्वाचन क्षेत्र के भाजपा एमबी कार्की ने आज एक विज्ञप्ति जारी कर कहा कि सिक्किम सरकार ने हाल ही में मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (गोले) के मार्गदर्शन में एक नए कानूनी सहयोग अभियान की घोषणा की है। सरकारी विज्ञप्ति के अनुसार, यह अभियान लोगों के घर-घर तक कानूनी सहायता पहुंचाने, महिलाओं एवं बच्चों के अधिकारों के बारे में जागरुकता पैदा करने और उन्हें नि:शुल्क परामर्श प्रदान करने के लिए है। ऊपरी तौर पर तो यह एक नेक पहल लगती है, लेकिन अगर हम थोड़ा गहराई से देखें, तो सच्चाई बिल्कुल अलग है। यह अभियान न तो कानूनी है, न संवैधानिक, और न ही स्वतंत्र। वास्तव में, यह लोगों की भावनाओं से खेलने की एक राजनीतिक रणनीति के अलावा और कुछ नहीं है।
कार्की ने कहा, भारत में, कानूनी सहायता कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिसे कोई मुख्यमंत्री अपने कार्यालय से अचानक शुरू कर दे। यह हमारे संविधान के अनुच्छेद 39ए के तहत एक संवैधानिक अधिकार है जिसे प्रभावी बनाने के लिए संसद ने विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 पारित किया है। इसके तहत एक उचित ढांचा तैयार किया गया जिनका नेतृत्व और पर्यवेक्षण न्यायाधीशों द्वारा किया जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि विधिक सहायता निष्पक्ष और राजनीति से मुक्त रहनी चाहिए। कार्यपालिका का काम केवल इन संस्थाओं को धन और बुनियादी ढांचे से सहायता प्रदान करना है, न कि उनकी भूमिका का अपहरण करना।
भाजपा सदस्य ने आगे कहा, जब मुख्यमंत्री कार्यालय सीधे ‘कानूनी सहयोग अभियान’ शुरू करता है, तो वह न्यायपालिका के अधिकार को कमजोर करता है। यह बहुत खतरनाक है और इससे यह आभास होता है कि विधिक सहायता अब एक राजनीतिक सेवा और सत्तारूढ़ सरकार द्वारा दिया जा रहा एक उपकार है, न कि स्वतंत्र संस्थाओं द्वारा प्रदान किया जाने वाला एक संवैधानिक अधिकार। ऐसे में, यह शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत पर सीधा हमला है।
कार्की ने लोगों को भी ध्यान से सोचने की आवश्यकता बताते हुए कहा कि अगर सिक्किम राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण और जिला विधिक सेवा प्राधिकरण पहले से ही लोक अदालतों, अर्ध-विधिक स्वयंसेवकों और मुफ़्त विधिक सहायता क्लीनिकों के जरिए मुफ़्त क़ानूनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं, तो फिर राजनीतिक बैनर तले एक और कार्यक्रम क्यों चलाया जा रहा है? उन्होंने कहा, इसका एकमात्र समाधान प्रचार है। यह अभियान न्याय के बारे में नहीं, बल्कि राजनीति के बारे में है। यह उस चीज का श्रेय लेने का एक तरीका है जो कानूनी तौर पर न्यायपालिका की है, कार्यपालिका की नहीं।
इसके साथ ही, उन्होंने इसे तथाकथित ‘क़ानूनी सहयोग अभियान’ सशक्तिकरण के नाम पर एक राजनीतिक नौटंकी बताते हुए कहा कि हमें इसकी असलियत उजागर करनी चाहिए। उनके अनुसार, यह ग्रामीण समुदायों, महिलाओं और किसानों की उम्मीदों से खेलने वाला होने के साथ ही उन संस्थाओं को कमजोर करता है जो उनकी रक्षा के लिए हैं। न्याय कोई राजनीतिक नारा नहीं है। न्याय एक संवैधानिक अधिकार है।
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