गंगटोक : यूनेस्को, इंडियन जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन और कर्नाटक यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स के संयुक्त तत्वावधान में इस सप्ताह बेंगलुरु में “भारत में पत्रकारों की सुरक्षा, कानूनी सशक्तिकरण और लैंगिक संवेदनशीलता” विषय पर तीन दिवसीय कार्यशाला शुरू हुई।
पत्रकारों के विरुद्ध अपराधों के लिए दंड छूट समाप्त करने के अंतर्राष्ट्रीय दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित इस कार्यक्रम में देश भर के पत्रकार, संयुक्त राष्ट्र के अधिकारी और मीडिया एसोसिएशन एक साथ आए। यह कार्यशाला डिजिटल और एआई-संचालित तकनीक के युग में पत्रकारों, विशेषकर महिलाओं के सामने आने वाली बढ़ती सुरक्षा चुनौतियों पर केंद्रित है।
इस अवसर पर यूनेस्को के दक्षिण एशिया कार्यालय में संचार व सूचना प्रमुख सह क्षेत्रीय सलाहकार माली हाजाज (Maaly Hazzaz) ने जोर देते हुए कहा कि पत्रकार लोकतांत्रिक समाज की रीढ़ हैं, जो नागरिकों और सूचना जगत के बीच एक माध्यम के रूप में कार्य करते हैं। उन्होंने इस वर्ष के आईडीईआई विषय, चैट जीबीवी का उल्लेख करते हुए चेतावनी दी कि महिला पत्रकारों को ऑनलाइन उत्पीड़न, निगरानी और डीपफेक तकनीक के माध्यम से बढ़ते खतरों का सामना करना पड़ रहा है।
हाजाज ने कहा, ये तकनीक-संचालित हमले न केवल व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरे में डालते हैं, बल्कि लोकतंत्र के लिए आवश्यक सूचना की अखंडता और विविधता को भी नष्ट करते हैं। ऐसे में, उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की प्राथमिकता के रूप में पत्रकार सुरक्षा के प्रति यूनेस्को की प्रतिबद्धता की पुष्टि की और एआई की दोहरी भूमिका को एक चुनौती और खतरे का शीघ्र पता लगाने तथा तथ्य-जांच के लिए एक संभावित उपकरण के रूप में रेखांकित किया।
वहीं, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय में मानवाधिकार अधिकारी आइदा मोर्टिरस-नेजाद ने पत्रकारों के खिलाफ वैश्विक हिंसा में वृद्धि पर चिंता व्यक्त करते हुए भारत के स्वतंत्र प्रेस को लोकतंत्र की आधारशिला बताया। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि पिछले एक दशक में 1000 से अधिक पत्रकार मारे गए हैं, और दस में से नौ मामलों में दंड से छूट पाई गई है।
उन्होंने कहा, दंड से मुक्ति हिंसा को और बढ़ावा देती है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कमजोर करती है। उन्होंने यौन हिंसा और महिला पत्रकारों को निशाना बनाकर किए जा रहे एआई-जनित डीपफेक अभियानों सहित लिंग-आधारित उत्पीड़न की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए चेतावनी दी कि ऐसे हमले आलोचनात्मक आवाजों को दबा देते हैं और मीडिया की विविधता को कम करते हैं। उन्होंने बताया कि पत्रकारों के खिलाफ सभी प्रकार के हमलों को रोकना और उन पर मुकदमा चलाना राज्यों का कानूनी दायित्व है।
इसके अलावा, भारत की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं पर प्रकाश डालते हुए नेजाद ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार समिति ने हाल ही में भारत से पत्रकारों के खिलाफ उल्लंघनों की त्वरित और स्वतंत्र जांच सुनिश्चित करने की सिफारिश की है। उन्होंने आगे कहा कि पत्रकारों की सुरक्षा पर संयुक्त राष्ट्र की कार्य योजना का उद्देश्य प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सरकारों, मीडिया और नागरिक समाज के बीच सहयोग को मजबूत करना है।
इस दौरान, इंडियन जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन अध्यक्ष गीतार्थ पाठक ने पत्रकारों के खिलाफ अपराधों के लिए दंड से छूट को समाप्त करने के सामूहिक संकल्प का आग्रह करते हुए वक्तव्य रखा। उन्होंने कहा, आज शोक का दिन नहीं, बल्कि संकल्प का दिन है – यह इस बात की पुष्टि करने का दिन है कि सच्चाई को दबाया नहीं जाएगा। पाठक ने याद दिलाया कि संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता केवल पत्रकारों का ही नहीं, बल्कि लोगों का भी जानने का अधिकार है।
साथ ही, यूएपीए, ऑनलाइन उत्पीड़न और निगरानी जैसे कड़े कानूनों के दुरुपयोग की निंदा करते हुए पाठक ने कहा, सुरक्षा चुप्पी का बहाना नहीं हो सकती। जब पत्रकारिता पर हमला होता है, तो गणतंत्र पर हमला होता है। उन्होंने समर्पित जांच इकाइयों, सार्वजनिक केस-ट्रैकिंग प्रणालियों और प्रेस की स्वतंत्रता के प्रति अनिवार्य पुलिस संवेदनशीलता का आह्वान किया। कार्यक्रम में सिक्किम का प्रतिनिधित्व करते हुए सिक्किम जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष सुजल प्रधान ने भी कार्यशाला में भाग लिया, जिसका समापन पूरे भारत में पत्रकारों के लिए कानूनी, संस्थागत और लिंग-आधारित सुरक्षा बढ़ाने के रोडमैप के साथ होगा।
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