गंगटोक : सिक्किम प्रेस क्लब ने शिक्षाविद् डॉ एचपी छेत्री की नई पुस्तक ‘द एथनिक क्वेस्ट-ए हिस्टोरिकल स्टडी ऑफ द नेटिव पीपल ऑफ सिक्किम’ का आधिकारिक विमोचन किया। यह पुस्तक सिक्किम और दार्जिलिंग के विभिन्न स्वदेशी समुदायों के समृद्ध इतिहास, सांस्कृतिक विरासत और पहचान का खोज करती है, जिससे यह समकालीन ऐतिहासिक विमर्श में एक महत्वपूर्ण योगदान बन जाती है।
इस कार्यक्रम में कई गणमान्य अतिथि उपस्थित थे, जिनमें मुख्य अतिथि अरुण उप्रेती, (मंत्री), विशिष्ट अतिथि केएन उप्रेती (पूर्व मंत्री) तथा पूर्व सांसद नकुल दास राई, पूर्व विधायक एनबी खतिवड़ा और नेपाली साहित्य परिषद के सदस्य जैसे प्रमुख व्यक्ति शामिल थे। वहीं सिक्किम, कालिम्पोंग और रिनॉक से विद्वान, सामाजिक कार्यकर्ता, राजनेता और साहित्यप्रेमी भी इसमें शामिल हुए। विमोचन के एक भाग के रूप में ‘साहित्य में जिम्मेदार लेखन’ विषय पर एक पैनल चर्चा आयोजित की गई। चर्चा में प्रवीण राई जुमेली (पैनलिस्ट), डॉ बलराम पांडे (पैनलिस्ट) ने अपने विचार व्यक्त किए, जिसका संचालन प्रवीण खालिंग ने किया।
पैनलिस्टों ने इतिहास का दस्तावेजीकरण करने में लेखकों की नैतिक जिम्मेदारी और कहानी कहने में सटीकता की आवश्यकता पर जोर दिया। चर्चा में साहित्य के राजनीतिक और सामाजिक निहितार्थों पर भी चर्चा हुई। पैनलिस्ट इस बात पर सहमत थे कि इतिहास और पहचान के बारे में जनता की समझ को आकार देने में साहित्य महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, इसलिए लेखकों के लिए अपने शोध में वस्तुनिष्ठ और गहन बने रहना महत्वपूर्ण है।
कार्यक्रम के दौरान पुस्तक के समीक्षक डॉ टीबी छेत्री के साथ बातचीत में डॉ एचपी छेत्री ने बताया कि द एथनिक क्वेस्ट व्यापक प्रयास और समर्पण का परिणाम है। उन्होंने बताया कि उनके शोध में 300 से अधिक पुस्तकों और लेखों का अध्ययन शामिल था, जिनमें से कुछ सिक्किम में आसानी से उपलब्ध नहीं थे। उन्होंने सिक्किम के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परिदृश्य पर व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत करने के लिए नामग्याल तिब्बतोलॉजी संस्थान के कार्यों सहित प्रकाशित शोध-प्रबंधों और लेखों का विस्तृत उल्लेख किया।
उन्होंने स्पष्ट किया कि उनकी प्रेरणा व्यक्तियों से नहीं बल्कि, ऐतिहासिक ग्रंथों से आई है, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि द एथनिक क्वेस्ट तथ्यात्मक और विद्वत्तापूर्ण शोध पर आधारित है। अपने पहले के काम पर विचार करते हुए उन्होंने बताया कि आत्मकथा लिखना एक अलग अनुभव था। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक ने मुझे कोई ऊर्जा नहीं दी और न ही मुझे कुछ महसूस कराया। जब मैंने इसे लिखा था तो मेरे पास बहुत कम समय था। हालांकि, उनका नवीनतम कार्य वर्षों के समर्पित शोध और ऐतिहासिक संरक्षण के प्रति जुनून का परिणाम है।
मुख्य अतिथि अरुण उप्रेती ने सिक्किम के विविध समुदायों के इतिहास का दस्तावेजीकरण करने में उनके प्रयासों के लिए डॉ छेत्री की सराहना की। उन्होंने ऐतिहासिक आख्यानों को संरक्षित करने के महत्व पर प्रकाश डाला, विशेषकर आधुनिक समय में जब मौखिक परम्पराओं और स्वदेशी अभिलेखों के लुप्त होने का खतरा है। उप्रेती ने कहा कि द एथनिक क्वेस्ट जैसी पुस्तकें हमारी जड़ों और इतिहास की महत्वपूर्ण याद दिलाती हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह की कृतियां युवा पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक विरासत में रुचि लेने के लिए प्रेरित करती हैं।
कार्यक्रम के पर्यवेक्षक डॉ सत्यदीप छेत्री ने सहयोगात्मक ऐतिहासिक आख्यानों के महत्व पर बल दिया। इतिहास किसी न किसी के नजरिए से लिखा जाता है और हर इतिहास अपने आप में सही होता है। उन्होंने कहा कि प्रतिस्पर्धा करने के बजाय, हमें अपने अतीत को संरक्षित करने और समझने में सहयोग पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उनका यह वक्तव्य श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय हुआ, विशेषकर सिक्किम और दार्जिलिंग के बीच ऐतिहासिक संबंधों पर चल रही चर्चा के आलोक में।
यह डॉ एचपी छेत्री की तीसरी पुस्तक है और उनकी आत्मकथा के बाद सिक्किम प्रेस क्लब द्वारा विमोचन की जाने वाली दूसरी पुस्तक है। द एथनिक क्वेस्ट के विमोचन को सिक्किम और दार्जिलिंग से संबंधित ऐतिहासिक और सांस्कृतिक चर्चा में एक महत्वपूर्ण योगदान के रूप में व्यापक रूप से मान्यता दी जा रही है। कार्यक्रम का समापन इतिहास के संरक्षण में साहित्य की भूमिका के प्रति सराहना की भावना के साथ हुआ।
सिक्किम और दार्जिलिंग के विलय पर बहस जारी रहने के कारण, द एथनिक क्वेस्ट से यह अपेक्षा की जाती है कि यह पुस्तक शोधकर्ताओं, शिक्षाविदों और इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए एक मूल्यवान संसाधन के रूप में काम करेगी। यह पुस्तक न केवल अतीत की अंतर्दृष्टि प्रदान करती है, बल्कि सिक्किम की सांस्कृतिक पहचान के भविष्य को आकार देने में लिखित दस्तावेजीकरण के महत्व पर भी जोर देती है। यह जानकारी प्रेस क्लब ऑफ सिक्किम के प्रचार सचिव पंकज ढुंगेल ने दी।
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