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जर्जर हो रहा भारतीय नेपाली साहित्य एवं संस्कृति अनुसंधान केंद्र

निर्माण के बाद रखरखाव पर ध्‍यान नहीं देने से नष्‍ट हो रही है करोड़ों की संपत्ति

गेजिंग । यदि सामूहिक संपत्ति पर नजर न रखी जाए तो वह नष्ट हो जाएगी, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है। इसका उदाहरण जर्जर हो रहा भारतीय नेपाली साहित्य एवं संस्कृति अनुसंधान केंद्र है।

विद्वानों और छात्रों के लिए बनाये गये भारतीय नेपाली साहित्य एवं संस्कृति अनुसंधान केंद्र की स्थिति जर्जर हो गई है। गेजिंग बाजार से एक किलोमीटर दूर क्योंगसा स्थित भारतीय नेपाली साहित्य एवं संस्कृति अनुसंधान केंद्र और भानु सॉलिग की स्थिति गंभीर होती जा रही है। ऐसा लगता है कि छत से पानी रिसकर म्यूजियम और लाइब्रेरी में घुसने से काफी संपत्ति का भी नुकसान होगा। वहीं, भानु प्रतिमा के अंदरूनी हिस्से में बारिश का पानी घुसने से अंदर बने हिस्से में बनी रामायण की तस्वीरें सड़ कर जमीन पर गिरने लगी हैं। भानु प्रतिमा के निर्माण में 9 साल लगे थे, जिसे करोड़ों की लागत से बनाया गया था। दुनिया का सबसे बड़ी भानु प्रतिमा में लगाए गए रामायण के अक्षर निकलने लगे हैं। भानु प्रतिमा की जर्जर हालत अब गंभीर चिंता का विषय है। यह प्रतिमा नेपाली साहित्य के पहले कवि भानुभक्त आचार्य के सम्मान में बनाया गया एक स्मारक है, जिन्होंने नेपाली भाषा के विकास में बहुत योगदान दिया था। लेकिन, वर्तमान में उचित संरक्षण के अभाव में यह सॉलिग जर्जर होता जा रहा है।

प्रतिमा के रखरखाव और संरक्षण की कमी ने इसकी संरचना को कमजोर कर दिया है, जिससे इसकी ऐतिहासिक विरासत नष्ट हो गई है। स्थानीय निकायों एवं संबंधित संस्थाओं को इसके पुनर्निर्माण व संरक्षण पर ध्यान देना आवश्यक प्रतीत होता है। पर्यटकों को आकर्षित करने और स्थानीय समुदाय की सांस्कृतिक पहचान को बढ़ावा देने के लिए इसका जीर्णोद्धार भी महत्वपूर्ण है। लेकिन दुख की बात यह है कि इस स्थान पर हर साल जब भानु जयंती आता है, तो स्थानीय संघ-संस्था, गुरुथांग समाज, क्योंगसा समाज के प्रतिनिधि इसकी सफाई करते हैं। इसके अलावा किसी को कोई दिलचस्पी नहीं है।

साल में आने वाले भानु जयंती भी यहां 15 मिनट तक माला पहनाकर मनाया जाता है, इससे कैसे विकास होगा। यह चिंता का विषय बन गया है। प्रदेश में कई साहित्यिक संस्थाएं हैं, लेकिन इस सवाल का कोई जवाब नहीं है कि कौन सी साहित्यिक संस्था इतने बड़े पैमाने पर वार्षिक कार्यक्रम आयोजित करती है। भानु प्रतिमा की जर्जर अवस्था सिर्फ बिगड़ती भौतिक संरचना की समस्या नहीं है, यह हमारी सांस्कृतिक विरासत के प्रति बढ़ती उदासीनता का प्रतीक है। इसलिए समय रहते उचित कदम उठाए जाने चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इस विरासत से प्रेरणा ले सकें।

भानु प्रतिमा की रक्षा करना न केवल यहां के कर्मचारियों की जिम्मेदारी है, बल्कि साहित्यिक संस्थानों और लेखकों की भी जिम्मेदारी है और इसे बहाल करके हम नेपाली साहित्य और संस्कृति के साथ-साथ भानु भक्त का भी सम्मान कर सकते हैं। यह प्रतिमा बाहर से तो अच्छा दिखता है, लेकिन अंदर से यहां छपे पत्थर और अक्षर सब घिसने लगे हैं। बारिश की वजह से पानी अंदर घुस रहा है, जिससे अंदर की खूबसूरती को धुंधली हो रही है। वहीं बाहर लगे टाइल्स भी गंदे हो रहे हैं, जिससे लोगों का चलना मुश्किल हो रहा है।

दूसरी ओर, भारतीय नेपाली साहित्यिक और सांस्कृतिक अनुसंधान आसपास के विद्वानों और छात्रों के लिए किया जाता है, लेकिन आज मुझे नहीं पता कि कौन से विद्वान इसका महिमामंडन कर रहे हैं। यह स्थान गेजिंग जिला प्रशासन के अधिकार क्षेत्र में है, जो राज्य संस्कृति मामलों और विरासत विभाग के अधिकार क्षेत्र में है। कई बार जिला प्रशासन कार्यालय के अधिकारी इसकी सुध लेते हैं, लेकिन उनके कहे अनुसार कोई कार्रवाई नहीं होती। यहां बहुत सारे बड़े पुस्तकालय, संग्रहालय, बहुउद्देश्यीय हॉल, सभागार आदि हैं। लेकिन आज तक कितने विद्वानों ने यहां शोध किया है इसका कोई आंकड़ा नहीं है। यह शर्म की बात है कि ऐसे संग्रहालय में एक भी कंप्यूटर नहीं है।

प्रतिमा परिसर में बिजली की कोई लाइन नहीं लगी है। कोई नहीं जानता कि वास्तव में इसके लिए जिम्मेदार कौन है। इस अनुसंधान केन्द्र के अन्दर भी पानी रिसकर सभी पुस्तकालयों में घुस रहा है, असेम्बली कक्षाओं की पोस्टें भीग कर सड़ रही हैं। यहां के कर्मचारी जितना संभव हो सके, साफ-सफाई और बचाव की कोशिश करते हैं, लेकिन आसमान से गिरे पानी ने सब कुछ तबाह कर दिया है। शौचालय के लिए पानी और बिजली नहीं है। कर्मचारियों को अपने मोबाइल फोन चालू करने पड़ते हैं। ऐसी विभिन्न समस्याओं के कारण कर्मचारी भी बताए अनुसार काम नहीं कर पा रहे हैं, यह जगह अब एकांत जगह जैसी हो गई है। सामूहिक विकास के लिए इसे बनाने में सरकार ने बहुत पैसा खर्च किया, लेकिन ऐसा लगता है कि इसके लिए किसी की मदद पर्याप्त नहीं है।

इस जगह पर सप्ताह में एक कार्यक्रम हो रहा है, इससे लगता है कि शायद ही इस जगह का ज्यादा विकास हो पाएगा। इसी तरह भारतीय नेपाली साहित्य एवं संस्कृति अनुसंधान केंद्र के प्रशासनिक अधिकारी ओपी घतानी से बातचीत में उन्होंने कहा कि यह स्थान अब एक आश्रम जैसा है। उन्होंने जागरुकता बढ़ाने का अनुरोध किया है कि यह स्थान केवल एक सरकारी कार्यालय नहीं है, बल्कि सिक्किम के सभी समाज और नागरिकों की सामूहिक संपत्ति है और सभी को अपनी जिम्मेदारी को ध्यान में रखते हुए समय-समय पर इसकी निगरानी करनी चाहिए। यहां समस्या यह है कि इसमें किसी की गलती नहीं है, लेकिन बरसात के मौसम में भानु प्रतिमा के साथ-साथ अनुसंधान केंद्र में भी पानी के रिसाव से सामग्रियां नष्ट होने लगी हैं।

दूसरी बात यह है कि यदि यह विशेष भानु जयंती वार्षिक आयोजन हमेशा यहीं होता, तो भी इसकी निगरानी की जाती और इसमें थोड़ा विलंब होता। लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ और इस स्थान पर कोई नहीं आया, तो दुख हुआ। यह ऐसा है मानो किसी बड़े घर में लोगों की कमी है, लेकिन हम कर्मचारी हैं, लेकिन यह एक विश्व धरोहर है। प्राकृतिक आपदाएं हों या मानसूनी पानी हर चीज को नुकसान पहुंचा रहा है। उन्होंने सलाहकारों से आगे आकर सलाह देने का आह्वान किया है कि इसे कैसे हल किया जाए और विरासत को जीवित रखा जाए। ऐसा लगता है कि हम लोग पौधे तो बहुत लगाते हैं और उनकी काट-छांट करने वाले कम होते हैं, लेकिन फल हमें खाने के लिए बहुत मिलते हैं।

इस ऐतिहासिक स्थान पर साहित्यिक संस्थाओं, पत्रकारों, लेखकों, विद्वानों और विद्यार्थियों की भूमिका रही है। इस जगह पर काम करने वाले कर्मचारियों का कहना है कि जब लोग यहां नहीं आते तो उन्हें अकेलापन महसूस होता है। इस कार्यालय में अभी नियुक्त हुए प्रशासनिक अधिकारी ओपी घतानी अपने कर्मचारियों की मदद से इस जगह को बेहद खूबसूरत बना रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि भानु प्रतिमा के पुस्तकालय, संग्रहालय, बहुउद्देश्यीय संग्रहालय, प्रशासनिक कार्यालय एवं पूर्ण संरक्षण एवं भ्रमण का कार्य साहित्यिक संस्थाओं एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा किया जाना चाहिए। लोगों ने कहा कि पिछली सरकार ने इसे बनाया था, लेकिन रख-रखाव उचित नहीं था और निर्माण का तरीका भी उचित नहीं था, इसलिए हम सिक्किम में समाज की संपत्ति खो रहे हैं। यदि सांस्कृतिक कार्य एवं विरासत विभाग भी महीने में एक बार इस स्थान का संरक्षण करे तो यह संपत्ति सदैव जीवित रहेगी। यह स्थान विद्वानों और ओझाओं का जमावड़ा है, यह स्थान आज वीरान क्यों है यह चिंता का विषय है। हम एक-दूसरे पर दोषारोपण करते हैं लेकिन हमें दोषारोपण के साथ-साथ यह कहते हुए समाधान भी खोजना होगा कि जिस स्थान पर विद्वान और छात्र एकत्रित होते हैं, वह सिक्किमी समाज के लिए क्षति है।

प्रतिमा की वर्तमान स्थिति को देखते हुए केवल 13 जुलाई भानुभक्त जयंती के अवसर पर एकत्र होने से यह स्थान सुरक्षित नहीं है, यहां प्रतिदिन साहित्यिक कार्यक्रम होने चाहिए। प्रतिमा तो बना ही, लेकिन पिछली सरकार को इसकी निगरानी नहीं करनी पड़ी, इसलिए सिक्किम की बहुत सारी संपत्ति का नुकसान हुआ। चूंकि यह स्थान गेजिंग-बरमेक और यांगथांग दोनों क्षेत्रों में पड़ता है, इसलिए दोनों क्षेत्रों के मंत्रियों के लिए समय-समय पर इस स्थान की निगरानी करना और इस स्थान की सुरक्षा करना आवश्यक लगता है।

गौरतलब है कि पश्चिम सिक्किम के क्योंगसा में दुनिया का सबसे बड़ा भानु प्रतिमा बनाने में सरकार ने आठ करोड़ से ज्यादा खर्च किए थे। वर्ष 2007-8 के दौरान निर्माण कार्य पूरा कर सांस्कृतिक कार्य एवं विरासत विभाग को सौंप दिया गया। 2011 के विनाशकारी भूकंप का भी इस साल काफी असर पड़ा। सारे खंभे झुक गये थे। इसकी मरम्मत किसने की, लेकिन इसकी मरम्मत ठीक से नहीं होने के कारण अब ऐसा लग रहा है कि पानी अंदर घुस रहा है। इतनी बड़ी विरासत अब प्रवाह में है, ऐसे में प्रतिमा पर संस्कृति विभाग या किसी की नजर नहीं पड़ रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस स्थान का प्रबंधन किसी अन्य संस्था द्वारा किया जाना चाहिए और इसे पर्यटन से जोड़कर आय में वृद्धि की जानी चाहिए। वहीं इस रिसर्च सेंटर में 80,000 से ज्यादा किताबें हैं। जिलाधिकारी येसे डी योंगडा ने गेजिंग रीड्स नाम से एक कार्यक्रम शुरू किया जो बहुत महत्वपूर्ण था। उस कार्यक्रम को यहां चलाने का प्रयास किया गया था, लेकिन वह सफल नहीं हो सका, यहां अब भी कोई किताब पढ़ने नहीं आता। जब हम माता-पिता अपने बच्चों के जन्मदिन पर उनके लिए कपड़े या खिलौने खरीदते हैं, तो किताबें देने की आदत डालना अधिक महत्वपूर्ण लगता है।

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