गंगटोक । पिछले वर्ष उत्तर सिक्किम के साउथ ल्होनक झील के फटने के बाद ऐसे संभावित खतरों के आकलन और रोकथाम के उद्देश्य से सरकार क्षेत्र में पहली बार 16 उच्च जोखिम वाली झीलों का व्यापक अध्ययन करने जा रही है।
इस पहल में भूमि राजस्व व आपदा प्रबंधन, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, वन, जल संसाधन, खनन व भूविज्ञान और सूचना व जनसंपर्क सहित विभिन्न राज्य विभागों की एक उच्च स्तरीय बहु-विषयक टीम शामिल होगी। आगामी 28 अगस्त को शुरू होकर यह अध्ययन अभियान 14 सितंबर तक चलेगा।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, राज्य सरकार की टीम केंद्रीय जल आयोग, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण और सिक्किम विश्वविद्यालय जैसी केंद्रीय एजेंसियों के साथ सहयोग करेगी। बताया गया है कि स्थानीय वैज्ञानिकों, ग्लेशियोलॉजिस्टों, भूवैज्ञानिकों और जलविज्ञानियों के साथ इन केंद्रीय विशेषज्ञों का मिलना इन झीलों से जुड़े जोखिमों को समझने और प्रबंधित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
सिक्किम के विज्ञान व प्रौद्योगिकी सचिव संदीप तांबे ने विशेष बातचीत में इस पहल के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया, ‘हम केंद्रीय जल आयोग, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण और सिक्किम विश्वविद्यालय जैसी केंद्रीय एजेंसियों की मदद ले रहे हैं। ये केंद्रीय एजेंसियां सिक्किम सरकार के अनुभवी वैज्ञानिकों के साथ मिलकर काम कर रही हैं। हमारे पास एक मजबूत टीम है जो उन्नत उपकरणों के उपयोग, डेटा जुटाने और प्रभावी मॉडल विकसित करने के लिए इसका विश्लेषण करने में पारंगत है। उन्होंने इससे पहले गेजिंग जिले में किए गए इसी तरह के अध्ययनों की सफलता का जिक्र करते हुए टीम की क्षमताओं पर भरोसा जताया।
इसके साथ ही तांबे ने वैश्विक मुद्दों से उत्पन्न होने वाली समस्याओं का समाधान करने के लिए स्थानीय क्षमता निर्माण के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि सिक्किम की टीम अत्यधिक सक्षम है। हालांकि जरूरत पडऩे पर हम अतिरिक्त विशेषज्ञ सहायता मांगेंगे, लेकिन हमारा प्राथमिक लक्ष्य स्थानीय प्रभावों वाले मुद्दों के लिए स्थानीय समाधान विकसित करना है।
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