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डीएचआई ने तीस्ता आपदा की प्रभावी रोकथाम की मांग की, सौंपा ज्ञापन

गंगटोक । पिछले वर्ष उत्तर सिक्किम में ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट के बाद आई विनाशकारी बाढ़ से हुई जान-माल की भारी तबाही के बाद सिक्किम और पश्चिम बंगाल के कालिम्पोंग जिले के कुछ हिस्सों में तीस्ता नदी घाटी के लोग इस मानसून में एक बार फिर वैसी ही आपदा का सामना कर रहे हैं। ऐसे में, दार्जिलिंग हिमालय इनीशिएटिव संगठन ने तीस्ता आपदा की प्रभावी रोकथाम हेतु तत्काल कार्रवाई का आह्वान करते हुए संबंधित प्राधिकारों को एक ज्ञापन सौंपा है।

डीएचआई का मानना है कि बड़े पैमाने पर होने वाली इस आपदा से बचाव के लिए राजनीतिक और प्रशासनिक सीमाओं से परे राष्ट्रीय और राज्य सरकारों से सहयोगात्मक प्रतिक्रिया की आवश्यकता है। संगठन ने इस आवश्यकता को उजागर करते हुए क्षेत्र के निर्वाचित प्रतिनिधियों, राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एसडीएमए) और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) को अपने ज्ञापन की प्रतियां भेजी हैं। इस ज्ञापन पर डीएचआई के 10 संगठनात्मक सदस्यों के साथ-साथ एकीकृत पर्वत पहल के राज्य अध्याय का प्रतिनिधित्व करने वाले व्यक्तिगत सदस्यों द्वारा भी हस्ताक्षर और समर्थन किया गया है।

डीएचआई के अध्यक्ष और सेव द हिल्स के रेड विंग कमांडर प्रफुल्‍ल राव ने डीएचआई के सचिव रोशन राई के साथ एक बयान में आपदा के प्रभावों को दूर करने के लिए समन्वित और तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि अपने ज्ञापन में संगठन की ओर से कई मांगें की गई हैं। इनमें सिक्किम के साथ-साथ पश्चिम बंगाल के कालिम्पोंग और दार्जिलिंग जिलों में भी हुई भारी क्षति को देखते हुए पिछले वर्ष की जीएलओएफ आपदा को राष्ट्रीय आपदा घोषित किया जाना, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और सिक्किम तथा पश्चिम बंगाल के राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों के बीच सहयोगात्मक प्रयास, एकीकृत तीस्ता बेसिन आपदा प्रबंधन योजना और अंतरराज्यीय तीस्ता बेसिन आपदा प्रबंधन समिति के लिए केंद्र से व्यापक समर्थन, सिक्किम के साथ ही कालिम्पोंग और दार्जिलिंग के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण जीवन रेखा एनएच-10 के लिए सड़क पुनर्संरेखण और वैकल्पिक मार्गों सहित दीर्घकालिक रणनीति, एनएच-10 पर, खास कर पश्चिम बंगाल के हिस्से में, तत्काल पुनर्वास कार्य और हिमालयी परिक्षेत्र की सामाजिक-पारिस्थितिकी के प्रति संवेदनशील नीतियां और संसाधन आवंटन शामिल हैं।

इसके अलावा, सेव द हिल्स और डीएचआई ने पहले की जीएलओएफ आपदा पर सिफारिशों के साथ एक रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें राष्ट्रीय और राज्य सरकारों से सीमा पार अंतरराज्यीय परिप्रेक्ष्य के साथ अल्पकालिक, मध्यम और दीर्घकालिक कार्रवाई करने का आग्रह किया गया। रिपोर्ट में मानसून के मौसम से पहले कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया गया है।

उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष अक्‍टूबर की जीएलओएफ आपदा में हुई जान-माल की भारी हानि के बाद इस वर्ष जून में मानसून के आगमन के साथ ही शुरुआती बारिश में ही तीस्ता आपदा फिर से उभर आई है। लगातार बारिश के कारण विभिन्न स्थानों पर भूस्खलन से जहां एक ओर सड़क संपर्क बाधित हुआ है, वहीं दूसरी ओर जमी गाद के कारण उथली तीस्ता नदी के पानी ने असंक्य घरों और सड़कों को जलमग्न कर दिया है। तीस्ता में अतिरिक्‍त जल प्रवाह के कारण घाटी के साथ पुलों को बहा दिया है।

इसी बीच, सिक्किम से लोकसभा सांसद इंद्रहांग सुब्‍बा ने हिमालयी क्षेत्र के मुद्दों को संबोधित करने के लिए एक अलग दृष्टिकोण का आह्वान किया है। वहीं, सिक्किम के मुख्यमंत्री पीएस गोले ने बजट पूर्व चर्चाओं में केंद्रीय वित्त मंत्री से राज्य के लिए अतिरिक्त वित्तीय सहायता मांगी है। इस पर, केंद्रीय गृह मंत्री ने सिक्किम और मणिपुर में हाल ही में आई बाढ़ का विस्तृत अध्ययन करने का आदेश दिया है। दूसरी ओर, पश्चिम बंगाल सरकार ने मौजूदा बाढ़ की स्थिति के बीच तीस्ता नदी के तल की खुदाई की योजना की घोषणा की है।

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