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जनजाति का दर्जा देने की मांग कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं : राजू बिष्‍ट

गंगटोक । दार्जिलिंग के सांसद Raju Bista ने कहा है कि सिक्किम, दार्जिलिंग, कालिम्पोंग और डुआर्स के गोरखा समुदाय और अन्य वंचित समूहों के लिए जनजाति का दर्जा देने की मांग कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं बल्कि सामुदायिक मामला है।

सिलीगुड़ी में आयोजित समन्वय बैठक के बाद बोलते हुए सांसद बिष्ट ने दृढ़ता से कहा कि यह मांग लोगों के संवैधानिक अधिकारों में गहराई से निहित है और उन अधिकारों को मान्यता देना सरकार की जिम्मेदारी है। यह कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है। यह समुदाय का मामला है। सांसद बिष्ट ने कहा कि यह हमारे संवैधानिक अधिकारों का मामला है और हम तब तक चैन से नहीं बैठेंगे जब तक दार्जिलिंग और सिक्किम के लोगों को भारत के संविधान के तहत जनजातीय दर्जा नहीं मिल जाता। भारतीय संविधान अपने सभी नागरिकों को अधिकारों की गारंटी देता है और अब समय आ गया है कि गोरखाओं और अन्य वंचित समुदायों को वह मिले जिसके वे हकदार हैं। सिलीगुड़ी में हुई बैठक में सिक्किम के 12 छूटे हुए समुदायों तथा दार्जिलिंग, कालिम्पोंग और डुआर्स के 11 समुदायों को जनजाति का दर्जा दिए जाने की लंबे समय से चली आ रही मांग पर ध्यान केंद्रित किया गया।

राजू बिष्‍ट ने कहा कि सिक्किम के मुख्यमंत्री Prem Singh Tamang (Golay) की अध्यक्षता में आज की बैठक प्रयासों को एकीकृत करने तथा मुद्दों को सामूहिक रूप से सुलझाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। उन्होंने कहा कि हम वर्षों से इस पर अलग-अलग काम कर रहे थे, लेकिन आज हम एक संयुक्त कार्रवाई समिति (जेएसी) के तहत एकजुट हुए हैं, जो यह सुनिश्चित करेगी कि हमारी आवाज मजबूत हो और हम इसे आगे बढ़ाने के लिए मिलकर काम करेंगे। बैठक में औपचारिक रूप से गठित संयुक्त कार्रवाई समिति में सिक्किम, दार्जिलिंग, कलिम्पोंग और डुआर्स से पांच-पांच सदस्य हैं, इस प्रकार कुल 22 सदस्य हैं।

सांसद बिष्ट के अनुसार यह समिति अब भारत के महापंजीयक कार्यालय को पूर्व में प्रस्तुत रिपोर्टों को संशोधित करने और उनमें सुधार करने का कार्य करेगी। उन्होंने कहा कि हम एक नई रिपोर्ट तैयार करेंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि यह रजिस्ट्रार जनरल कार्यालय द्वारा निर्धारित सभी मानदंडों और तौर-तरीकों को पूरा करती है। इस रिपोर्ट में अस्वीकृति की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी जाएगी। सांसद बिष्ट ने जनता को आश्वासन दिया कि सिक्किम और दार्जिलिंग के लिए मानव विज्ञान रिपोर्ट पहले ही पूरी हो चुकी है और दोनों क्षेत्रों के बीच इनका आदान-प्रदान किया जाएगा।

उन्होंने कहा कि हम इन रिपोर्टों का आपस में आदान-प्रदान करेंगे, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सभी प्रश्नों का समाधान हो जाए और प्राधिकारियों द्वारा कोई और आपत्ति न उठाई जाए। क्षेत्र में गोरखाओं की आमद के बारे में चिंताओं को संबोधित करते हुए सांसद बिष्ट ने स्पष्ट किया कि यह कोई प्रासंगिक मुद्दा नहीं है। सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) सीमा से जुड़ी किसी भी चिंता का प्रबंधन करने के लिए मौजूद है। हम जो मांग कर रहे हैं वह गोरखाओं के रूप में हमारा संवैधानिक अधिकार है, जो सदियों से इन पहाड़ियों में रह रहे हैं। उन्होंने कहा, हमारी संस्कृति और जीवन शैली जनजातियों के समान है और हम इस मान्यता के लिए सभी मानदंडों को पूरा करते हैं।

सांसद बिष्ट ने आगे कहा कि यह मांग नई नहीं है और 2014 में सत्ता में आई एनडीए सरकार गोरखा समुदाय की आकांक्षाओं का समर्थन करती रही है। 2014 में मोदी सरकार ने इस मांग को हरी झंडी दे दी थी। समस्या उस रिपोर्ट में है जो भारत के महापंजीयक कार्यालय को सौंपी गई थी, जिसे उन्होंने कुछ मुद्दों के कारण अस्वीकार कर दिया था। लेकिन अब, इस संयुक्त कार्रवाई समिति के गठन के साथ, हम यह सुनिश्चित करेंगे कि सभी मानदंड पूरे हों और सरकार के पास इसमें और देरी करने का कोई कारण नहीं है।

सांसद बिष्ट ने सभी को याद दिलाया कि गोरखा लोग सदैव भारत का अभिन्न अंग रहे हैं। गोरखा कभी भी सीमा पार कर भारत में नहीं आए। बल्कि, सीमाएं तो हमसे आगे निकल गई हैं। हम सदैव इस देश का हिस्सा रहे हैं और अब हम उस मान्यता की मांग कर रहे हैं जिसके हम हकदार हैं। उन्होंने कहा कि सिक्किम, दार्जिलिंग और आसपास के क्षेत्रों के लोग भारत के गौरवशाली नागरिक हैं और हम संवैधानिक मान्यता के लिए लड़ रहे हैं जो हमें बहुत पहले मिल जानी चाहिए थी। सांसद बिष्ट ने सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (गोले) के नेतृत्व की भी सराहना की और कहा कि सभी हितधारकों को एक साथ लाने की उनकी पहल, जनजातीय दर्जे की लड़ाई में एक महत्वपूर्ण क्षण था।

सीएम गोले ने सुझाव दिया कि हम एक साथ बैठें, संयुक्त रूप से काम करें और एकजुट होकर आगे बढ़ें। सांसद बिष्ट ने कहा कि आज हमने ऐसा ही किया और मुझे विश्वास है कि यह संयुक्त प्रयास फलदायी होगा। सांसद बिष्ट ने इस मुद्दे को सुलझाने के लिए वर्तमान सरकार की इच्छाशक्ति पर अपना विश्वास दोहराया। मुझे पूरा विश्वास है कि सरकार में हमारी मांगों को पूरा करने की इच्छाशक्ति है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने हमारा भरपूर सहयोग किया है और जब तक हमारी मांगें पूरी नहीं हो जातीं, हम उनके दरवाजे खटखटाते रहेंगे। गोरखा समुदाय और अन्य वंचित समुदायों के लिए जनजातीय दर्जा महज एक अनुरोध नहीं है, यह हमारा अधिकार है और हम इसके लिए अंत तक लड़ेंगे। संयुक्त कार्रवाई समिति अब भारत के महापंजीयक कार्यालय को संशोधित रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए सक्रिय रूप से काम करेगी, जिससे निकट भविष्य में छूटे हुए समुदायों को अंततः जनजातीय दर्जा मिल सके।

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