गंगटोक, 16 सितम्बर । हिमालय के अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले याक तथा उनके चरवाहों के संरक्षण हेतु सिक्किम का पशुपालन एवं पशु चिकित्सा सेवा विभाग सचेत है।
विभाग ने हमेशा बुनियादी ढांचा विकास, स्वास्थ्य देखभाल, आनुवंशिक सुधार और चारा वितरण के माध्यम से याक चरवाहों का समर्थन किया है। इसी तरह, अरूणाचल प्रदेश के दिरांग स्थित याकों का आईसीएआर-राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र भी सिक्किम में याक पालन के संरक्षण और बढ़ावे में सक्रिय रहा है। इसके अंतर्गत विभाग के सहयोग से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, पशु चिकित्सा सहायता और इनपुट वितरण आदि शामिल हैं। खास कर, 2018-19 में आए प्राकृतिक आपदाओं के कारण हुई याकों की अभूतपूर्व हानि के दौरान एनआरसी-दिरांग ने उत्तर सिक्किम के मुगुथांग के याक चरवाहों की काफी सहायता की थी।
इसी कड़ी में इस मानसून के दौरान आईसीएआर-एनओएफआरआई ने राज्य के पशुपालन एवं पशु चिकित्सा सेवा विभाग के साथ मिलकर उत्तर और पूर्व सिक्किम में याक डोकपाओं के लिए विस्तृत आउटरीच गतिविधियों का आयोजन किया। इसमें टीम ने लाचेन के मुगुथांग घाटी, जहां करीब 11 डोकपा और 1500 याक रहते हैं, में लम्पी बीमारी पर एक जागरुकता कार्यक्रम का आयोजन किया।
इसमें किसान क्षेत्र दिवस और पशु स्वास्थ्य शिविर वाले इस कार्यक्रम में याक पर आईसीएआर-एनआरसी के वैज्ञानिक डॉ के मेप्फूओ और डॉ मार्टिना पुखरामबम ने डोकपाओं के साथ मिलकर उनकी याक-पालन प्रथाओं को समझा और उन्हें संस्थान की अनुसंधान गतिविधियों और तकनीकों से परिचित कराया। वहीं, डॉ. डेचेन ओ. कालेयोन और डॉ सोनम डिकी लेप्चा सहित पशुपालन विभाग के प्रतिनिधियों ने लम्पी के साथ-साथ फुट-माउथ बीमारी पर ध्यान केंद्रित करते हुए याक स्वास्थ्य देखभाल में बताया।
इसके अलावा, याक के आईसीएआर-एनआरसी के वैज्ञानिकों ने पशुपालन निदेशक डॉ कर्मा टी भूटिया समेत विभाग के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों से भी मुलाकात की। साथ ही आईसीएआर-एनआरसी निदेशक डॉ. मिहिर सरकार के सक्रिय प्रयासों से विभाग की एसटीसी योजना के तहत मेहमान टीम ने राज्य में चल रही लम्पी बीमारी के प्रकोप के दौरान याकों और चरवाहों के समर्थन हेतु एलएसडी टीके, बुनियादी पशु चिकित्सा दवाएं, गमबूट, सौर लैंप और पशु चारा आदि आवश्यक आपूर्ति की। इसके बाद, याक के आईसीएआर-एनआरसी और पशुपालन अधिकारियों ने डोकपा बहुल पूर्व सिक्किम के गनाथांग घाटी और कुपुप का भी दौरा किया।
उल्लेखनीय है कि ट्रांस-हिमालयी क्षेत्र के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में याक चरवाहे याक-पालन तंत्र की रीढ़ हैं। याक न केवल पर्वतारोहियों की आजीविका के लिए महत्वपूर्ण हैं बल्कि वहां के स्थानीय लोगों की विशिष्ट पहचान का भी प्रतीक हैं। अधिक चुनौतीपूर्ण ऊंचे स्थानों में दूध, मांस, खाल, ईंधन और परिवहन प्रदान करने में महत्वपूर्ण योगदान के कारण ही याकों को ‘चलती फिरती बैंक’ भी कहा जाता है।
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