गंगटोक : सिक्किम बिहारी जागरण मंच के पूर्व सचिव बीरेंद्र प्रसाद के उस बयान पर विवाद छिड़ गया है, जिसमें उन्होंने बाहरी लोगों के लिए बराबर अधिकार की मांग की है, चाहे उनके पास सिक्किम सब्जेक्ट सर्टिफिकेट हो या सर्टिफिकेट ऑफ आइडेंटिफिकेशन हो या नहीं। पूरे सिक्किम में इसकी आलोचना की जा रही है।
गौरतलब है कि विगत 9 दिसंबर को सिक्किम बिहारी जागरण मंच के 32वें स्थापना दिवस समारोह में प्रसाद ने यह बयान दिया था, जहां कई मंत्री और विधायक मौजूद थे।
हालांकि, समारोह में मौजूद गंगटोक के विधायक दिले नामग्याल बारफुंग्पा (Delay Namgyal Barfungpa) ने उसी मंच से प्रसाद की मांग को तुरंत खारिज करते हुए कहा कि बाहरी समुदायों को सिक्किम के लोगों का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि उन्होंने उन्हें एक सदी से भी ज़्यादा समय से राज्य में व्यवसाय और रोजी-रोटी के काम करने की इजाज़त दी है। उन्होंने कहा कि कई बाहरी लोगों द्वारा पहले से ही सरकारी सुविधाओं का लाभ उठाने का जिक्र करते हुए याद दिलाया कि सिक्किम की मेहमान नवाजी ने लंबे समय से बिहारी, मारवाड़ी और बंगाली व्यापारियों जैसे व्यवसायिक समुदायों का साथ दिया है। बारफुंग्पा ने आगे कहा था कि आर्टिकल 371एफ के तहत सिक्किम सब्जेक्ट सर्टिफिकेट या सर्टिफिकेट ऑफ आइडेंटिफिकेशन धारकों को दिए गए खास अधिकारों पर सवाल उठाना स्वीकार नहीं है।
बहरहाल, इस घटना ने सिक्किम के पहचान के कागजात के इतिहास पर फिर से चर्चा छेड़ दी है। 1974 में सिक्किम के भारत में विलय से पहले, तत्कालीन छोग्याल प्रशासन ने सिक्किम वासियों को सिक्किम सब्जेक्ट सर्टिफिकेट जारी किए थे, और जो व्यापारी 1961 से पहले सिक्किम में बस गए थे, वे भी इसके लिए योग्य थे। हालांकि, उस समय कई व्यापारी समुदायों ने सर्टिफिकेट लेने से मना कर दिया था क्योंकि उन्हें लेने के लिए भारतीय नागरिकता छोड़नी पड़ती थी, क्योंकि सिक्किम तब एक अलग देश था।
विलय के बाद, सिक्किम सरकार ने तय मापदंड के तहत 1974 से पहले सिक्किम में बसे लोगों के लिए पहचान सर्टिफिकेट देना शुरू किया। ऐसे में, एसएससी और सीओआई, राज्य के कानून के तहत सिक्किम का नागरिक कौन है, इसकी पहचान करने का कानूनी आधार बने हुए हैं।
इधर, इस विवाद के बाद 11 दिसंबर को सिक्किम मूल निवासी सुरक्षा संघ ने अपने अध्यक्ष रतनलाल सापकोटा के साथ प्रसाद के बयान की कड़ी आलोचना की और कहा कि यह आर्टिकल 371एफ के तहत सिक्किम को मिली सुरक्षा के खिलाफ है। सापकोटा ने कहा कि मतदाता पहचान पत्र या आवासीय प्रमाणपत्र के आधार पर बराबर अधिकार नहीं मांगे जा सकते और इस बात पर जोर दिया कि सिक्किम में सिर्फ एसएससी या सीओआई वालों को ही स्थानीय माना जाता है। उन्होंने प्रसाद पर गैर-जिम्मेदाराना बात करने और ऐसे राज्य में टकराव पैदा करने की कोशिश करने का आरोप लगाया, जहां विभिन्न समुदाय दशकों से शांति से साथ रह रहे हैं।
सापकोटा ने आगे कहा, सिर्फ एसएससी और सीओआई धारकों को ही यहां स्थानीय माना जाता है। वे लोग कह रहे हैं कि उनके पास आवासीय प्रमाणपत्र हैं, लेकिन वे प्रमाणपत्र कैसे बने, हमें नहीं पता। हम कहना चाहते हैं कि आवासीय प्रमाणपत्र को बराबर नहीं माना जाना चाहिए। उन्होंने कहा, किसी को आवासीय प्रमाणपत्र के आधार पर बराबर अधिकार और सुरक्षा कैसे मिलेगी? वे यहां व्यवसाय के लिए आए थे। हमने उन्हें वह करने से नहीं रोका। वे आए, अपना व्यवसाय शुरू किया, और अब वे स्थानीय सुरक्षा अधिकार मांग रहे हैं।
संघ अध्यक्ष के अनुसार, बीरेंद्र प्रसाद को समारोह में बोलने की इजाजत देकर एक बड़ी साजिश रची जा रही थी और बाद में, जब उनके बयान पर राज्य में प्रतिक्रिया हुई, तो उनके मंच ने ही यू-टर्न लेते हुए प्रसाद की बुराई की। उन्होंने सवाल किया, उन्होंने उसी दिन यह बात क्यों कही? मंत्री, विधायक वहां बैठे थे, कोई उनसे माइक भी नहीं ले सका? अगर वह गलत थे, तो उन्होंने उसी दिन उसी स्टेज पर रिजेक्ट क्यों नहीं किया?
इसके साथ ही, सापकोटा ने प्रसाद के खिलाफ कानूनी कदम उठाने के साथ ही इस बात की जांच की मांग की कि क्या सिक्किम बिहारी जागरण मंच एक पंजीकृत संगठन है, क्योंकि सिक्किम में किसी भी संगठन की कार्यकारी निकाय में एसएससी या सीओआई धारक का होना जरूरी है। उन्होंने कहा कि सिक्किम से अपनी रोजी-रोटी कमाने वाले किसी व्यक्ति को उन्हीं कानूनों का विरोध नहीं करना चाहिए जो सिक्किम के लोगों की रक्षा करते हैं। उन्होंने कहा, अगर सरकार कानूनी कार्रवाई नहीं करती है, तो हम खुद कानूनी कदम उठाएंगे।
#anugamini #sikkim
No Comments: