sidebar advertisement

पद्मश्री बीबी मुरिंग्ला की 82वीं जयंती मनी

गेजिंग । साहित्य व संगीत के क्षेत्र में गांव के साथ राज्य का नाम रोशन करने वाले लिम्बू साहित्यकार और संगीतकार पद्मश्री बीबी मुरिंग्ला की 82वीं जयंती बुधवार को भव्य तरीके से मनाई गई। लिंगचोम, तिकजेक, लांगांग से गठित सुम्बोना लिम्बू साहित्यिक सोसायटी की ओर से उनके पैतृक घर लिंगचोम में एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जयंती समारोह के दौरान सुम्बोना लिम्बू साहित्य संघ के सलाहकार और ओएसडी एसपी मांगयुंग ने मुरिंग्ला के परिचय पर प्रकाश डाला। वहीं अन्य वक्ताओं ने भी साहित्य और संगीत के क्षेत्र में समाज में पद्मश्री लिम्बू के योगदान पर चर्चा की।

संस्था की अध्यक्ष लीला सुब्बा के नेतृत्व में बीबी मुरिंग्ला की समाधि पर श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद उनके निवास स्थान लिंगचोम सेकेंडरी स्कूल में जयंती मनाई गयी। मुरिंग्ला लिम्बू को 2017 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। वे लिम्बू भाषा लिपि की प्रणेता थे। पद्मश्री बीबी मुरिंग्ला का जन्म पश्चिम सिक्किम के लिंगचोम में एक संपन्न परिवार में हुआ था। स्वर्गीय लालमान नुगो और स्व संचारणी लिम्बू के सबसे छोटे बेटे मुरिंग्ला बचपन से ही बहुत मेहनती और प्रतिभाशाली थे। सुब्बा की प्रारंभिक शिक्षा लिंगचोम से शुरू हुई और उन्होंने टीएनए और सेंट जोसेफ दार्जिलिंग से अपनी शैक्षिक यात्रा पूरी की। उन्होंने संगीत के क्षेत्र में भी ख्याति अर्जित की।

उस दौर में लिंगचोम शिक्षा, परिवहन, पेयजल, बिजली, स्वास्थ्य केंद्र, पशुपालन केंद्र और ग्रामीण सड़कों के उचित प्रावधान के बिना एक दूरस्थ क्षेत्र था। उन्होंने गांव के लड़के-लड़कियों को पढ़ाना शुरू किया। मुरिंगाला 8 दिसंबर 1975 को शिक्षा विभाग की लिम्बू शाखा के पाठ्यपुस्तक अधिकारी बने। पाठ्यपुस्तक अधिकारी बनने के बाद ही उन्होंने शैक्षणिक सत्र के लिए पहली लिम्बू पाठ्यपुस्तक ‘याक्थुक सक्सक निरुम्लो’ शुरू किया। उन्होंने ‘लिम्बू-नेपाली-अंग्रेजी शब्दकोश’, लिम्बू लिपि परिशोधन और लिम्बू कंप्यूटर फ़ॉन्ट का भी डिजाइन किया। ग्रामोफोन के एचएमवी पर पहली बार ‘कास्को जोभान अल्झिएछ’ जैसे गाने प्रसारित किए गए। इसके बाद उनका अगला गाना ‘आकाशैको बदल उदायो बतासले’ संगीत प्रेमियों के बीच पहुंचा। उनके द्वारा रचित लाढुंग, सेमी ओंगदेरो, लासोरिन फुंगतगी भजन प्रतिदिन गाए जाते हैं।

उन्होंने ए मेरो मयालु नामक नेपाली कविता की रचना की। इसके अलावा उत्कृष्ट रचनात्मकता के साथ-साथ सिक्किम में नेपाली साहित्य और कला के क्षेत्र में उनके बहुमूल्य योगदान के लिए उन्हें 2016 में सिक्किम के प्रतिष्ठित भानु पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 8 जून 2022 को गंगटोक के सरकारी अस्पताल में उनका निधन हो गया।

#anugamini #sikkim

 

No Comments:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

sidebar advertisement

National News

Politics