कांग्रेस आलाकमान के फैसले का पालन करेंगे : सिद्धारमैया

बेंगलुरु । कर्नाटक में सियासी हलचल के बीच मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने एक बयान दिया है। उन्होंने सोमवार को एक बार फिर से कहा कि वह राज्य में नेतृत्व परिवर्तन के मुद्दे पर कांग्रेस आलाकमान के फैसले का पालन करेंगे। मुख्यमंत्री पिछले कुछ दिनों से बार-बार कह रहे हैं कि वह और उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार मुख्यमंत्री परिवर्तन के बारे में हाईकमान जो भी निर्णय लेगा, वह उसे मानेंगे।

सिद्धारमैया ने अपने बेटे और कांग्रेस एमएलसी यतींद्र सिद्धारमैया के बयान पर पूछे गए सवाल के जवाब में संवाददाताओं से कहा, आलाकमान जो भी फैसला करेगा, उसका पालन करेंगे।” सिद्धारमैया ने कहा कि अभी नेतृत्व परिवर्तन का कोई सवाल ही नहीं है।

यतींद्र ने यहां सुवर्ण विधान सौध में संवाददाताओं से कहा, मैं यह पहले से ही कहता आया हूं, इसमें कुछ नया नहीं है। मुझे लगता है कि राज्य में फिलहाल नेतृत्व परिवर्तन जैसी कोई बात नहीं है। मुझे उम्मीद है कि वह अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करेंगे।

वहीं सिद्धारमैया को जनवरी में दिल्ली आने के लिए कहे जाने के सवाल पर, यतींद्र ने कहा कि कांग्रेस आलाकमान मुख्यमंत्री को विभिन्न मुद्दों पर बुलाता है। इसलिए वह वहां जाकर चर्चा करेंगे। उन्होंने कहा कि वह राज्य के मौजूदा हालात पर भी बात करेंगे। इसके साथ ही यतींद्र ने यह भी स्वीकार किया कि नेतृत्व के मुद्दे पर भ्रम की स्थिति थी।  इसके साथ ही यतींद्र के अनुसार कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) एक निश्चित अवधि के लिए उम्मीदवार चुनता है। सीएलपी ही तय करती है कि मुख्यमंत्री कौन होगा? यतींद्र ने आगे दावा किया कि हाल ही में आलाकमान की एक बैठक हुई थी जिसमें उन्होंने कहा कि उन्होंने कोई फैसला नहीं लिया है और इसे स्थगित कर दिया है। उन्होंने दावा किया इसलिए अभी तक कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन पर कोई बात नहीं हुई है।

दरअसल, 20 नवंबर को कांग्रेस सरकार के पांच साल के कार्यकाल के आधे पड़ाव पर पहुंचने के बाद राज्य में मुख्यमंत्री बदलने की अटकलों के बीच सत्तारूढ़ पार्टी के भीतर सत्ता संघर्ष तेज हो गया था। यह अटकलें 2023 में सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच हुए कथित “सत्ता-साझाकरण” समझौते से और तेज हो गईं। हालांकि, हाल ही में मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री दोनों ने हाईकमान के निर्देश पर एक-दूसरे के आवास पर नाश्ते पर बैठकें की थीं, जिसे दोनों के बीच नेतृत्व की खींचतान को रोकने और विशेष रूप से बेलगावी विधानमंडल सत्र से पहले सिद्धारमैया के फिलहाल मुख्यमंत्री बने रहने का संकेत देने के कदम के रूप में देखा जा रहा है।

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