नई दिल्ली । उन्नाव दुष्कर्म मामले में पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को दिल्ली हाईकोर्ट से जमानत मिलने के बाद राजनीतिक और सामाजिक हलकों में तीखी प्रतिक्रिया सामने आई है। कांग्रेस नेता मुमताज पटेल ने इस फैसले को लेकर केंद्र सरकार पर जोरदार हमला बोला और कहा कि सरकार जानवरों को शेल्टर देने की बातें करती है, लेकिन दुष्कर्म के दोषी को जेल में रखने में नाकाम साबित हो रही है।
मुमताज पटेल (Mumtaz Patel) ने एजेंसी से बातचीत में कहा कि देश की सभी महिलाओं की ओर से हम सरकार से सुरक्षा और पीड़िता को न्याय की मांग कर रहे हैं। बेटी बचाओ का नारा देने वाली सरकार अगर इतने जघन्य अपराध में भी पीड़िता के साथ मजबूती से खड़ी नहीं हो पा रही, तो यह बेहद गंभीर चिंता का विषय है। उन्होंने आगे कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि एक असुरक्षित देश के रूप में बनना शर्मनाक है। उन्होंने कहा अगर हम अपनी बेटियों की सुरक्षा नहीं कर सकते, तो सत्ता में बने रहने का नैतिक अधिकार भी नहीं है।
जमानत के फैसले के बाद उन्नाव दुष्कर्म पीड़िता और उसकी मां ने भी गहरा आक्रोश और अविश्वास जताया है। पीड़िता की मां ने सीबीआई की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब तक एजेंसी सीधे उनसे बात नहीं करती, तब तक भरोसा नहीं किया जा सकता।
वहीं, पीड़िता ने कहा कि अगर जांच एजेंसी ने समय पर मजबूती से उनका साथ दिया होता, तो आज यह दिन नहीं देखना पड़ता। उसने कहा मेरे पिता की हत्या कर दी गई, मेरी नौकरी चली गई, अब मेरे सामने अपने बच्चों के पालन-पोषण का संकट है, जबकि आरोपी के परिवार में जश्न मनाया जा रहा है।
दिल्ली हाईकोर्ट के 23 दिसंबर 2025 के आदेश के खिलाफ सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) दाखिल की है। हाईकोर्ट ने सेंगर की उम्र और स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए सजा निलंबित कर जमानत दी थी। गौरतलब है कि कुलदीप सिंह सेंगर को दिसंबर 2019 में उन्नाव दुष्कर्म केस में दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा और 25 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया था। हालांकि इस मामले में जमानत मिलने के बावजूद वह एक अन्य सीबीआई केस में 10 साल की सजा काट रहा है, जिसके चलते फिलहाल जेल में ही रहेगा।
इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर देश में महिला सुरक्षा, न्याय व्यवस्था और प्रभावशाली आरोपियों को मिलने वाली राहत पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। विपक्ष ने सरकार से मांग की है कि ऐसे मामलों में त्वरित और सख्त कार्रवाई सुनिश्चित की जाए, ताकि पीड़ितों का न्याय व्यवस्था पर भरोसा बना रह सके।
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