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न्याय की अवधारणा में पर्यावरण से जुड़ा इंसाफ भी हो : राष्ट्रपति

नई दिल्ली, 04 फरवरी । राष्ट्रमंडल कानूनी शिक्षा संघ (सीएलईए) – राष्ट्रमंडल अटॉर्नी और सॉलिसिटर जनरल कॉन्फ्रेंस (सीएएसजीसी) 2024 के समापन समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कई अहम सुझाव दिए। उन्होंने राष्ट्रमंडल देशों की विविधता और विरासत का जिक्र करते हुए कहा, ये देश दुनियाभर को सहयोग की भावना से आम चिंताओं को दूर करने का रास्ता दिखा सकते हैं। उन्होंने कहा, भारत के संविधान की प्रस्तावना ‘सामाजिक, आर्थिक और राजनीति’ न्याय की बात करती है। उन्होंने सुझाव दिया कि दुनिया में जलवायु परिवर्तन के खतरे को देखते हुए न्याय या इंसाफ की अवधारणा के इन पहलुओं के साथ पर्यावरणीय न्याय को भी जोड़ना चाहिए।

राष्ट्रपति ने कहा कि पर्यावरण से जुड़े न्याय या कानूनी मुद्दे अक्सर सीमा से जुड़ी चुनौतियां पैदा करते हैं। इंसाफ दिलाने में सीमा की चुनौतियों से निपटने का सबसे प्रभावी और स्पष्ट तरीका ‘हमारा पर्यावरण’ है। इस अवधारणा में दुनिया एक-दूसरे से जुड़ी हुई है। उन्होंने कहा कि जब हम न्याय मिलने की बात करते हैं, तो हमें सामाजिक न्याय सहित इसके सभी पहलुओं को ध्यान में रखना चाहिए।

तकनीक के बढ़ते इस्तेमाल का जिक्र करते हुए राषट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट जजों, कानून और गृह मंत्री जैसे लोगों की मौजूदगी में कहा, प्रौद्योगिकी के कारण देख एक-दूसरे के करीब आए हैं। उन्होंने कहा कि व्यापार और वाणिज्य का वैश्वीकरण देशों के बीच अंतर-संबंध का एक और उदाहरण है।

उन्होंने कहा कि जटिल सीमा पार कानूनी चुनौतियों की पहचान करते समय, अलग-अलग देशों को अंतर-संबंध, अंतर-निर्भरता और तकनीकी क्रांति को ध्यान में रखना जरूरी है। राष्ट्रपति के मुताबिक, हमें हमेशा मानवता और मानवीय मूल्य के आधार पर फैसले लेने चाहिए। ये हम सभी के लिए सामान्य हैं।

राष्ट्रमंडल कानूनी शिक्षा संघ (सीएलईए) की पहल का जिक्र करते हुए राष्ट्रपति ने कहा, उन्हें यह जानकर खुशी हुई कि सीएलईए ने साझा भविष्य के लिए एक रोडमैप तैयार करने की जिम्मेदारी ली है। इसके तहत देशों की सीमाओं से परे समानता और गरिमा आधारित प्राकृतिक न्याय के बुनियादी सिद्धांतों को रेखांकित किया जाएगा। (एजेन्सी)

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