नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक करार देकर केन्द्र सरकार को बड़ा झटका दिया है। साथ ही इसे रद्द कर इस पर रोक भी लगा दी है।
इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने पिछले पांच साल में मिले फंड का ब्यौरा भी मांगा है। निर्वाचन आयोग को अब यह बताना होगा कि पिछले पांच साल में किस पार्टी को किसने कितना चंदा दिया है।
पूरा मामला राजनीतिक दलों को गुमनाम तरीके से चंदा देने की अनुमति वाले इलेक्टोरल बॉन्ड योजना से जुड़ा है। सुप्रीम कोर्ट यह भी कहा कि चुनावी बांड योजना सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। यही नहीं चुनाव आयोग एसबीआई की जानकारी वेबसाइट पर अपडेट करेगा।
अदालत ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम अनुच्छेद 19 (1) ए का उल्लंघन है। एसबीआई12 अप्रैल 2019 से चुनाव बांड की जानकारी देगा। भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी.वाई. ने चंद्रचूड़ ने कहा कि किसी राजनीतिक दल को वित्तीय योगदान देने से बदले में उपकार करने की संभावना बन सकती है।
उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों को गुमनाम चंदे वाली चुनावी बांड योजना संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत प्रदत्त मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है।
चुनावी बांड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, “इस बात की भी वैध संभावना है कि किसी राजनीतिक दल को वित्तीय योगदान देने से धन और राजनीति के बीच बंद संबंध के कारण प्रति-उपकार की व्यवस्था हो जाएगी। यह नीति में बदलाव लाने या सत्ता में राजनीतिक दल को वित्तीय योगदान देने वाले व्यक्ति को लाइसेंस देने के रूप में हो सकती है।”
यह कहते हुए कि राजनीतिक चंदा योगदानकर्ता को मेज पर एक जगह देता है, यानी यह विधायकों तक पहुंच बढ़ाता है और यह पहुंच नीति निर्माण पर प्रभाव में भी तब्दील हो जाती है, सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि राजनीतिक दलों की फंडिंग की जानकारी मतदान का विकल्प के प्रभावी अभ्यास के लिए आवश्यक है।
“राजनीतिक असमानता में योगदान देने वाले कारकों में से एक, आर्थिक असमानता के कारण व्यक्तियों की राजनीतिक निर्णयों को प्रभावित करने की क्षमता में अंतर है। उन्होंने कहा, ”आर्थिक असमानता के कारण धन और राजनीति के बीच गहरे संबंध के कारण राजनीतिक जुड़ाव के स्तर में गिरावट आती है।”
नवंबर 2023 में सीजेआई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने लगातार तीन दिनों तक दलीलें सुनने के बाद चुनावी बांड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। पीठ में जस्टिस संजीव खन्ना, बी.आर. गवई, जे.बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा शामिल थे।
शीर्ष अदालत के समक्ष याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि चुनावी बांड योजना अनुच्छेद 19 (1) के तहत नागरिकों के सूचना के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करती है और यह पिछले दरवाजे से लॉबिंग को संभव बनाती है और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है तथा विपक्ष में राजनीतिक दलों के लिए समान अवसर को समाप्त करती है।
बता दें कि पिछले साल नवंबर में सीजेआई डी.वाई.चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने इस मामले पर सुनवाई की थी। पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, बी.आर. गवई, जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने लगातार तीन दिनों तक दलीलें सुनने के बाद मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
इस मामले में याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष तर्क दिया था कि चुनावी बॉन्ड योजना अनुच्छेद 19 (1) के तहत नागरिकों के सूचना के मौलिक अधिकार का हनन करती है, यह पिछले दरवाजे से लॉबिंग को सक्षम बनाती है और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है। साथ ही, विपक्षी राजनीतिक दलों के लिए समान अवसर को समाप्त करती है।
चुनौती का जवाब देते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया था कि इस योजना का उद्देश्य चुनावी प्रक्रिया में नकदी को कम करना है।
एस-जी मेहता ने जोर देकर कहा कि चुनावी बांड के जरिए किए गए दान का विवरण केंद्र सरकार तक नहीं जान सकती।
उन्होंने एसबीआई के चेयरमैन द्वारा हस्ताक्षरित एक पत्र को रिकॉर्ड पर रखते हुए कहा था कि अदालत के आदेश के बिना विवरण तक नहीं पहुंचा जा सकता। सुनवाई के दौरान सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा था कि पांच महत्वपूर्ण विचार हैं : “1. चुनावी प्रक्रिया में नकदी तत्व को कम करने की जरूरत, 2. अधिकृत बैंकिंग चैनलों के उपयोग को प्रोत्साहित करने की जरूरत, 3. गोपनीयता द्वारा बैंकिंग चैनलों के उपयोग को प्रोत्साहित करना, 4. पारदर्शिता; 5. रिश्वत का वैधीकरण।”
इसके अलावा, सीजेआई ने टिप्पणी की थी कि यह योजना सत्ता केंद्रों और उस सत्ता के हितैषी लोगों के बीच रिश्वत और बदले की भावना का वैधीकरण नहीं बननी चाहिए।
वर्ष 2018 में सरकार द्वारा अधिसूचित चुनावी बॉन्ड योजना को राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले नकद चंदे के विकल्प के रूप में देखा गया था।
इसे केवल वे राजनीतिक दल ही इन्हें प्राप्त कर सकते हैं, जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत हैं और जिन्हें पिछले लोकसभा या राज्य चुनाव में एक फीसदी से अधिक वोट प्राप्त हों।
चुनावी बॉन्ड भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की चुनिंदा शाखाओं से मिलते हैं। एसबीआई की जिन 29 शाखाओं से चुनावी बॉन्ड्स खरीदे जा सकते हैं, वे नई दिल्ली, हैदराबाद, भुवनेश्वर, भोपाल, गांधीनगर, चंडीगढ़, बेंगलुरु,मुंबई, चेन्नई, कलकत्ता, गुवाहाटी, जयपुर और लखनऊ समेत कई शहर में हैं। (एजेन्सी)
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