सनातन विचार ही एकात्म मानव दर्शन : मोहन भागवत

जयपुर । जयपुर में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने कहा कि दुनिया में युद्ध होने का एक कारण राष्ट्रवाद भी रहा है, जिसके बाद वैश्विक नेताओं ने अंतरराष्ट्रीयवाद की बात शुरू की। लेकिन उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीयवाद की बात करने वाले भी अपने राष्ट्र के हित को सर्वोपरि रखते हैं। भागवत ने कहा कि आज सबसे अधिक संघर्ष शक्तिशाली देशों के बीच है और इसका खामियाजा कमजोर देशों को भुगतना पड़ रहा है।

उन्होंने आगे कहा कि वर्तमान वैश्विक चुनौतियों के बीच दुनिया समाधान की उम्मीद से भारत की ओर देख रही है। उनका कहना था कि भारत की विचारधारा और दृष्टिकोण विश्व को रास्ता दिखाने में सक्षम है।

जयपुर में आयोजित दीनदयाल स्मृति व्याख्यान कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि सनातन विचार को पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने देश, काल और परिस्थितियों के अनुसार ‘एकात्म मानव दर्शन’ नाम देकर प्रस्तुत किया था। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह विचार नया नहीं है बल्कि छह दशक बाद भी विश्व के लिए अत्यंत प्रासंगिक है। उन्होंने कहा कि एकात्म मानव दर्शन का सार एक शब्द में ‘धर्म’ है, जिसका अर्थ किसी मत-पंथ से नहीं बल्कि सभी की धारणा से है।

भागवत ने कहा कि भारतीय जहां भी गए, उन्होंने किसी को लूटा नहीं, बल्कि सबको सुख देने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि देश में रहन-सहन और जीवनशैली में भले ही परिवर्तन आया हो, पर सनातन विचार कभी नहीं बदला। उन्होंने बताया कि एकात्म मानव दर्शन का आधार यह है कि सुख बाहरी सुविधाओं में नहीं, बल्कि मन के भीतर होता है और इसी समझ के साथ पूरा विश्व एकात्म दिखाई देता है। उन्होंने यह भी कहा कि इस दर्शन में किसी प्रकार का अतिवाद नहीं है।

उन्होंने कहा कि शरीर, मन और बुद्धि इनकी सत्ता की मर्यादा समझते हुए सभी के हित में अपना विकास करना आवश्यक है। उन्होंने दावा किया कि विश्व में आर्थिक अस्थिरता कई बार देखने को मिलती है, पर भारत पर इसका असर कम होता है क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था की नींव परिवार व्यवस्था पर टिकी है।

विज्ञान की प्रगति पर उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि भौतिक सुविधाएं बढ़ने के बावजूद मनुष्य के मन में शांति और संतोष नहीं बढ़ा है। दवाइयों की बढ़ती संख्या के बावजूद स्वास्थ्य बेहतर नहीं हुआ और कुछ बीमारियों का कारण स्वयं दवाइयां बन रही हैं।

भागवत ने कहा कि विश्व में चार प्रतिशत जनसंख्या 80 प्रतिशत संसाधनों का उपयोग करती है, जिससे विकसित और अविकसित देशों के बीच अंतर बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि भारत में प्रारंभ से ही विविधता रही है, लेकिन यहां विविधता कभी संघर्ष का कारण नहीं बनी, बल्कि उत्सव का विषय रही। उन्होंने कहा कि भारत ही ऐसा देश है जो शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा चारों के सुख की अवधारणा को समझता है, जबकि दुनिया केवल अलग-अलग स्तरों पर सुख की बात करती है।

कार्यक्रम की प्रस्तावना अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान के अध्यक्ष डॉ. महेश शर्मा ने रखी। उन्होंने कहा कि संपूर्ण सृष्टि एकात्म है और वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ के अवसर पर पूरा गीत गाना आवश्यक है।

कार्यक्रम में राजस्थान की उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी, उपमुख्यमंत्री डॉ. प्रेमचंद बैरवा, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़, मंत्री डॉ. किरोड़ी लाल मीणा, राज्यवर्धन राठौड़, राज्यसभा सांसद घनश्याम तिवाड़ी सहित कई गणमान्य उपस्थित रहे। धन्यवाद ज्ञापन स्वास्थ्य कल्याण ग्रुप के निदेशक डॉ. एस.एस. अग्रवाल ने किया और संचालन डॉ. नर्बदा इंदौरिया ने किया।

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