नई दिल्ली । कांग्रेस ने बुधवार को आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को लोकसभा में मणिपुर के प्रति “निष्ठुर व्यवहार’’ दिखाया और कोई संवेदना नहीं जताई, जिसके कारण सदन में हंगामे की स्थिति बनी।
पार्टी सांसद गौरव गोगोई ने यह भी कहा कि अगर बाहरी मणिपुर संसदीय क्षेत्र के सांसद को सदन में बोलने का मौका दिया जाता तो तो संसद से मणिपुर को लेकर एक अच्छा संदेश जा सकता था।
राष्ट्रपति के अभिभाषण पर निचले सदन में लाए गए धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा का प्रधानमंत्री मोदी द्वारा जवाब दिए जाने से पहले कांग्रेस चाहती थी कि बाहरी मणिपुर संसदीय क्षेत्र से उसके सांसद अलफ्रेड आर्थर को बोलने की अनुमति मिले।
आसन से अनुमति नहीं मिलने पर कांग्रेस और सहयोगी दलों के सांसदों ने प्रधानमंत्री के भाषण के दौरान नारेबाजी की।
गोगोई ने संवाददाताओं से कहा, “सदन के अंदर कल एक दुखद नजारा देखने को मिला। हमारी मांग थी और नेता विपक्ष राहुल गांधी जी ने इस बात को उठाया कि मणिपुर के दोनों सांसदों को अपनी बात रखनी चाहिए क्योंकि राहुल जी जानते थे कि अगर दोनों सांसदों को अपनी बात रखने का समान मौका नहीं मिलेगा तो सदन से मणिपुर के लोगों को एक गलत संदेश जाएगा।”
उनका कहना था, “हमारे आंतरिक मणिपुर के सांसद ने सदन में अपनी बात रखी। हम चाहते थे कि बाहरी मणिपुर के सांसद भी अपनी बात रखें। लेकिन अफसोस कि प्रधानमंत्री मोदी मणिपुर की व्यथा सुनना ही नहीं चाहते।’’
कांग्रेस सांसद ने दावा किया, “प्रधानमंत्री मोदी ने दो घंटे भाषण दिया, वही पुरानी घिसी-पिटी बातें करते रहे, लेकिन मणिपुर पर कुछ नहीं बोला। इसलिए ‘इंडिया’ गठबंधन ने एकजुट होकर मणिपुर के लिए न्याय की आवाज उठाई।’’
उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘प्रधानमंत्री सदन में अपने चुटकुले सुनाते रहे, राजनीति को निम्न स्तर पर ले गए, लेकिन मणिपुर के एक सांसद को सुनने के लिए उनमें धैर्य नहीं था, संवेदना और सहानुभूति नहीं थी।’’
गोगोई का कहना था, “मुझे लगता है कि कल हमने एक ऐतिहासिक मौका गंवा दिया, जब हम संसद से एक संदेश दे सकते थे, लेकिन ‘इंडिया’ गठबंधन ने यह संदेश दिया कि मणिपुर भारत का हिस्सा है और वहां लोगों पर जो अत्याचार हुआ है उसे हम भूले नहीं हैं।”
उन्होंने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री ने मणिपुर को लेकर ‘‘निष्ठुर व्यवहार’’ दिखाया, जिसके कारण सदन में गतिरोध का माहौल बना।
कांग्रेस सांसद प्रणीति शिंदे ने आरोप लगाया कि उस समय नेता प्रतिपक्ष को भी बोलने का मौका नहीं दिया गया, जबकि सदन में ऐसा नहीं होता है। एजेन्सी
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