देहरादून । कोलकाता में जूनियर डॉक्टर से कथित दुष्कर्म और हत्या की घटना को 2012 में हुए निर्भया कांड से भी ज्यादा बर्बर बताते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने रविवार को कहा कि देश को एक क्रांतिकारी, सुरक्षित और प्रणालीगत प्रक्रिया अपनानी होगी जिससे भविष्य में मानवता की सेवा में लगे किसी क्षेत्र को कभी कोई खतरा न हो। ऋषिकेश स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए धनखड़ ने कहा कि 2012 में दर्दनाक निर्भया कांड हुआ जिसने देश को हिलाकर रख दिया और कानून में बदलाव हुआ। उन्होंने कहा कि यह उससे भी अधिक (बर्बर) है। यह ऐसा वक्त है जब पूरी दुनिया हमें देख रही है। हम ऐसा देश हैं जो दुनिया का नेतृत्व कर रहा है। हमने गर्व से दुनिया के सामने वसुधैव कुटुंबकम पेश किया है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमारे कुटुंब की बेटी ने जनता की सेवा करने में न दिन देखा और न रात और उसके साथ निमर्मता की अकल्पनीय हद तक (बलात्कार किया गया)… और (फिर) कत्ल हुआ। उन्होंने कहा कि इससे पूरी डॉक्टर बिरादरी, नर्सिंग स्टॉफ, ‘हेल्थ वारियर्स’ चिंता में हैं, परेशानी में हैं और दुखी हैं। धनखड़ ने कोलकाता के आर जी कर अस्पताल में हुई नौ अगस्त की घटना को ‘बर्बर’ बताया और कहा कि बर्बर घटनाए पूरी सभ्यता को शर्मसार कर देती हैं और उस आदर्श को खंडित कर देती हैं जिसके लिए भारत जाना जाता है। इसके लिए कठोर दंड को एक समाधान मानते हुए धनखड़ ने कहा कि लेकिन हमें एक क्रांतिकारी, सुरक्षित, प्रणालीगत प्रक्रिया लानी होगी जिससे भविष्य में कभी भी मानवता की सेवा में जुटे क्षेत्र को किसी प्रकार का खतरा न हो। उन्होंने कहा कि हमारी सभ्यता और लोकतांत्रिक मूल्य उस सम्मान से परिभाषित किए जाएंगे जो हम अपनी महिलाओं और लड़कियों को देते हैं।
धनखड़ ने कहा कि जिसने भी यह किया है, उसे जवाबदेह ठहराया जाएगा, लेकिन समाज को भी इसके लिए जवाबदेह ठहराया जाएगा। उन्होंने कहा कि समाज अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता। धनखड़ ने कहा कि खुद एक संवैधानिक पद पर होने के नाते उन्हें भी अपनी जवाबदेही दिखानी होगी। छोटी-छोटी घटनाओं पर शोर मचाने वाले गैर सरकारी संगठनों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि वे आज शांत अवस्था में है। उन्होंने कहा कि उनकी चुप्पी नौ अगस्त 2024 को हुए इस जघन्य अपराध के अपराधियों के कृत्य से भी बदतर है।
उपराष्ट्रपति ने बिना किसी का नाम लिए कहा कि कुछ लोग इस घटना पर अपने बयानों से जख्मों पर नमक छिड़कने का काम कर रहे हैं। एक सांसद और वरिष्ठ अधिवक्ता द्वारा घटना को ‘सिम्पटोमेटिक मलाइस’ बताये जाने का जिक्र करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि मैं ऐसी गुमराह आत्माओं से अपने विचारों पर दोबारा विचार करने और सार्वजनिक रूप से माफी मांगने का आह्वान करता हूं। उन्होंने कहा कि यह समय राजनीतिक चश्मे से देखने का नहीं है। उन्होंने कहा कि राजनीतिक चश्मा खतरनाक होता है और आपकी निष्पक्षता को खत्म कर देता है।
रेजीडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन की चिंताओं का उल्लेख करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि चीजें आकार लेंगी। उन्होंने कहा कि चिंता दूर होनी चाहिए और मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि ऐसा होगा। लोकतंत्र के सभी हितधारकों के एक जगह पर साथ आने की आवश्यकता पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि मानवता की सेवा में लगे इस श्रेणी के लोगों में असुरक्षा खत्म होनी चाहिए। अगर भारत की राष्ट्रपति ने इस पर अपनी चिंता व्यक्त की है तो आप मुझसे यह वादा ले सकते हैं कि ऐसा जरूर होगा। एजेन्सी
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