तिरुवनंतपुरम । केरल के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर ने रविवार को कहा कि लोकतंत्र में हर संस्था की अपनी सीमाएं होती हैं, और लोकतांत्रिक कामकाज की सेहत उन सीमाओं को जानने और उनका सम्मान करने पर निर्भर करती है।
राज्यपाल ने यह टिप्पणी पूर्व मुख्य न्यायाधीश और केरल के पूर्व राज्यपाल जस्टिस (सेवानिवृत्त) पी. सदाशिवम को जस्टिस वी. आर. कृष्णा अय्यर पुरस्कार देने के बाद की। यह पुरस्कार लॉ ट्रस्ट (लीगल असिस्टेंस एंड वेलफेयर ट्रस्ट) द्वारा स्थापित किया गया था।
राज्यपाल अर्लेकर की यह टिप्पणी हाल ही में उच्चतम न्यायालय के उस निर्देश के बाद आई है, जिसमें जस्टिस (सेवानिवृत्त) सुधांशु धूलिया की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया है, ताकि केरल के दो तकनीकी विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति के लिए एक-एक नाम की सिफारिश की जा सके। यह कदम राज्यपाल और केरल के मुख्यमंत्री के बीच इस मुद्दे पर बने गतिरोध को हल करने के लिए उठाया गया है।
मामले को लेकर लोक भवन द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि राज्यपाल ने लोकतंत्र में एक संस्था द्वारा दूसरी संस्था की भूमिका हथियाने की प्रवृत्ति की निंदा की। बयान के मुताबिक, संविधान में संशोधन करने की शक्ति संसद और निर्वाचित विधायिका के पास है, और अदालतें संविधान की व्याख्या करने के लिए हैं, न कि संविधान में संशोधन करने के लिए।
राज्यपाल ने कहा कि एक ही मुद्दे पर विरोधाभासी व्याख्याएं संविधान की सच्ची भावना के अनुरूप नहीं हैं। बयान में यह भी कहा गया है, वह पहले कन्नूर विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट के तीन-सदस्यीय फैसले का जिक्र कर रहे थे, जिसने नियुक्ति प्रक्रिया में कुलाधिपति की सर्वोच्चता को बरकरार रखा था।
राज्यपाल केरल के अधिकांश राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति हैं। पुरस्कार स्वीकार करते हुए, सदाशिवम ने कहा कि अदालतों को जस्टिस कृष्णा अय्यर के मानवतावादी आदर्शों के प्रति प्रतिबद्ध रहना होगा, भले ही समाज तेजी से ‘डिजिटल’ हो रहा हो। इस अवसर पर केरल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एच. नागेश, के. बाबू और ए. बदरुद्दीन उपस्थित थे।
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