वंदे मातरम स्वयं में पूर्ण, अपूर्ण बनाने की कोशिश की गई : राजनाथ सिंह

नई दिल्ली । शीतकालीन सत्र के दौरान सोमवार को लोकसभा में वंदे मातरम पर चर्चा की गई। सदन में चर्चा के दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कांग्रेस पर जमकर हमला बोला। राजनाथ सिंह ने कांग्रेस पर आरोप लगाते हुए कहा कि वंदे मातरम के साथ इतिहास का एक बड़ा छल हुआ। इस अन्याय के बावजूद वंदे मातरम का महत्व कभी कम नहीं हो पाया।

वंदे मातरम पर चर्चा के दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि आज जब हम वंदे मातरम के 150 साल पूरे होने का जश्न मना रहे हैं, तो पीएम मोदी ने इसके बारे में बात की है और इस चर्चा की एक खूबसूरत शुरुआत की है। वंदे मातरम भारत के वर्तमान, अतीत और भविष्य का हिस्सा है। इसने हमारे स्वतंत्रता सेनानियों को ब्रिटिश शासकों के खिलाफ खड़े होने और लड़ने की ताकत दी। यह एक ऐसा गीत है जिसने हमारे देश को जगाया और प्रेरणा का स्रोत बना। यह गीत ब्रिटिश संसद तक भी पहुंचा।

राजनाथ सिंह ने कहा, 1906 में भारत का पहला झंडा डिजाइन किया गया था और उस झंडे के बीच में वंदे मातरम लिखा हुआ था, जिसे पहली बार बंगाल में फहराया गया था। अगस्त 1906 में लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए वंदे मातरम नाम का एक अखबार भी लॉन्च किया गया था। यह वह समय था जब वंदे मातरम सिर्फ एक शब्द नहीं था, यह एक भावना थी, प्रेरणा का स्रोत था, और एक कविता थी। राजनाथ सिंह ने कहा, वंदे मातरम सिर्फ बंगाल तक सीमित नहीं था; इसका इस्तेमाल पूरब से पश्चिम तक होता था और सिर्फ भारत में ही नहीं, भारत के बाहर भी लोग इसे गाते थे।

राजनाथ सिंह ने बंगाल की संस्कृति का जिक्र करते हुए वंदे मातरम की पंक्तियों की व्याख्या भी की। उन्होंने कहा कि बंकिम चंद्र चटोपाध्याय की इस रचना में कहीं भी मूर्ति पूजा पर जोर नहीं दिया गया है। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम को तुष्टीकरण के लिए इस्तेमाल किया गया। राजनाथ सिंह ने वर्तमान सरकार के नारे- सबका साथ-सबका विकास और सबका विश्वास का जिक्र करते हुए कहा, हमने इसी भावना से काम किया है। हालांकि, आजादी के आंदोलन के दौरान कांग्रेस के कुछ तथाकथित सेक्युलर लोगों की बेचैनी इतनी बढ़ गई थी कि उन्होंने भारतीय संस्कृति, परंपरा और महान सभ्यता से जुड़ी बातें उन्हें सांप्रदायिक दिखती थीं। वंदे मातरम भी इसी का शिकार बन गया।

राजनाथ सिंह ने कहा वंदे मातरम के साथ जो न्याय होना चाहिए था, वह नहीं हुआ। जन-गण-मण राष्ट्रीय भावना में बसी, लेकिन वंदे मातरम को दबाया गया। वंदे मातरम के साथ हुए अन्याय के बारे में हर किसी को जानना चाहिए। वंदे मातरम के साथ इतिहास का एक बड़ा छल हुआ। इस अन्याय के बावजूद वंदे मातरम का महत्व कभी कम नहीं हो पाया। वंदे मातरम स्वंय में पूर्ण है, लेकिन इसे अपूर्ण बनाने की कोशिश की गई।  वंदे मातरम को उसकी पुरानी शान वापस दिलाना समय की मांग है। आजादी के बाद वंदे मातरम को हाशिये पर डाल दिया गया। वंदे मातरम को वह न्याय नहीं मिला जिसका वह हकदार था। राजनाथ सिंह ने कहा, पीएम मोदी के नेतृत्व में, मैं कहना चाहता हूं कि हम वंदे मातरम के 150 साल पूरे होने का जश्न मनाएंगे और इसे वह दर्जा देंगे जिसका यह हकदार है।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने भाषण के दौरान पंडित नेहरू से जुड़ी एक घटना का जिक्र किया। उन्होंने एक किताब के हवाले से इतिहास की घटना का जिक्र करते हुए कहा, पंडित नेहरू की मौजूदगी में विदेश मंत्रालय की उच्चस्तरीय बैठक में उनसे पूछा गया कि अगर कल को कम्युनिस्ट केंद्र की सत्ता में आ जाएं तो सरकारी तंत्र का क्या होगा? नेहरू जी ने झुंझलाकर जवाब दिया। कम्युनिस्ट-कम्युनिस्ट भारत के लिए खतरा कम्युनिज्म नहीं है। खतरा हिंदू दक्षिणपंथी कम्युनलिज्म है। राजनाथ सिंह ने दावा किया कि अगर किसी को प्रमाण चाहिए तो वे इस किताब का ब्योरा और प्रमाण देने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा, दुर्भाग्य से नेहरू जी ये देखने के लिए जीवित नहीं रहे कि उसी दक्षिणपंथी लोगों ने संविधान के अनुरूप काम किया।

राजनाथ सिंह ने कहा, ये कितनी बड़ी विडंबना है कि जिस कम्युनिस्ट विचारधारा ने कई देशों में सत्ता पाने की हिंसा का रास्ता चुना, उसे खतरा न मानकर वसुधैव कुटुंबकम की भावना में विश्वास रखने वाली विचारधारा को खतरा माना गया। ये कोई मामूली सोच नहीं, बल्कि ऐसा पूर्वाग्रह था, जिससे तुष्टीकरण की राजनीति को जन्म मिला और कुछ पड़ोसी देशों से आए अल्पसंख्यक समुदाय के शरणार्थियों को दशकों तक अपने अधिकारियों से वंचित रखा गया। इसी के कारण मुस्लिम महिलाओं से समान अधिकार छीने गए। इसी तुष्टीकरण की राजनीति के कारण देश का विभाजन हुआ और आज पश्चिम बंगाल के अनेक परिवारों को पलायन करना पड़ रहा है।

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