सभी भाषाएं राष्ट्रीय, राज्य अपनी भाषा को दें बढ़ावा : अरुण कुमार

मुंबई (ईएमएस)। तमिलनाडु में तीन भाषा नीति को लेकर छिड़े विवाद के बीच आरएसएस के पदाधिकारी ने बड़ा बयान दिया। आरएसएस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी अरुण कुमार ने कहा कि भारत की सभी भाषाएं राष्ट्रीय हैं। हर राज्य को अपनी भाषा को बढ़ावा देना चाहिए और अधिकारिक कामकाज उसी भाषा में करना चाहिए। भाषा के मुद्दे पर विवाद खड़ा होना बेहद गलत है।

एक कार्यक्रम में आरएसएस के सह सरकार्यवाह ने कहा कि भारत में कोई भी भाषा क्षेत्रीय नहीं है। हर भाषा राष्ट्रीय है। भाषा के मुद्दे पर विवाद खड़ा होना बेहद गलत है।  उन्होंने कहा कि हमारे पास एक प्रशासनिक व्यवस्था है और हमें एक सामान्य राष्ट्रीय भाषा की जरूरत है। एक समय राष्ट्रीय भाषा संस्कृत थी लेकिन आज यह संभव नहीं है। तो अब सामान्य भाषा हिन्दी हो सकती है। एक सामान्य भाषा होनी चाहिए।

कुमार ने कहा अगर आप हिन्दी नहीं चाहते हैं तो आपको किसी दूसरी भाषा को आम राष्ट्रीय भाषा के रूप में रखना होगा। अंग्रेजी आम राष्ट्रीय भाषा नहीं हो सकती। क्योंकि यह  आम विदेशी भाषा है। अगर अंग्रेजी को आम राष्ट्रीय भाषा बना दिया गया तो राज्यों की भाषाओं का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।

उन्होंने कहा कि हिन्दी आम भाषा के रूप में उभर सकती है। इसे एक स्वाभाविक प्रक्रिया से होने देना चाहिए। यदि आप इसे मजबूर करेंगे तो प्रतिक्रिया होगी। उन लोगों के बारे में चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है जो कभी-कभी स्वार्थी उद्देश्यों के लिए हिन्दी का विरोध करते हैं। तमिलनाडु में हिन्दी का विरोध किया जाता है, लेकिन यहां के लाखों लोग हिन्दी में सर्टिफिकेट कोर्स करते हैं। इसलिए चिंता करने की जरूरत नहीं है।

अरुण कुमार ने कहा कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिन्दुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के साथ जो हुआ, उसे लेकर भारत में अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार के बीच समानताएं बनाना गलत है। पाकिस्तान और बांग्लादेश में जो कुछ हुआ, उसमें बहुत अधिक विस्थापन हुआ। 1947 में बांग्लादेश की आबादी में हिन्दू 32 प्रतिशत थे, अब यह संख्या घटकर 8 प्रतिशत रह गई है। इसके विपरीत भारत में 1947 में 8-9 प्रतिशत अल्पसंख्यक थे और आज वे 14-15 प्रतिशत हैं।

उन्होंने पूछा कि इसकी तुलना भारत से कैसे की जा सकती है? पाकिस्तान के गठन के समय वहां अल्पसंख्यकों की संख्या कितनी थी? बांग्लादेश और पाकिस्तान में हिन्दुओं के साथ जो कुछ हुआ वह भारत में नहीं होगा, क्योंकि भारत का मानना है कि आस्था जताने का हर तरीका सही है।

उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से कुछ लोग भारत की व्यापक सोच को उसकी कमजोरी मानते हैं। हमें इस पर समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिन्दुओं, ईसाइयों और बौद्धों के साथ जो हुआ उसकी आप भारत में अन्य अल्पसंख्यकों के साथ तुलना नहीं कर सकते। दोनों के बीच तुलना गलत है।

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