आधार कार्ड नागरिकता का पक्का सबूत नहीं : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) पहले कभी नहीं किया गया, इस तर्क का इस्तेमाल राज्यों में चुनाव आयोग की ओर से शुरू की गई एसआईआर प्रक्रिया की वैधता जांचने के लिए आधार के रूप में नहीं किया जा सकता। देश के कई राज्यों में एसआईआर कराने के चुनाव आयोग फैसले को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर शीर्ष कोर्ट में बुधवार को आखिरी सुनवाई शुरू हुई। चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा, आयोग के पास मतदाता की ओर से फॉर्म 6 में दी गई सूचनाओं की सच्चाई सुनिश्चित करने की शक्ति है। फॉर्म छह मतदाता सूची में नाम दर्ज करने के लिए भरा जाता है।

सुनवाई के दौरान पीठ ने दोहराया, आधार कार्ड नागरिकता का पक्का सबूत नहीं देता है और इसीलिए हमने कहा कि यह दस्तावेजों की सूची में एक दस्तावेज होगा। अगर कोई नाम हटाया जाता है तो उन्हें नाम हटाने से पहले नोटिस देना होगा। सीजेआई ने कहा, सरकारी लाभों को लोगों तक पहुंचाने के लिए एक कानून के जरिये आधार की रचना की गई। ऐसे में सिर्फ इसलिए कि किसी व्यक्ति को राशन या अन्य सरकारी लाभ देने के लिए आधार कार्ड दिया गया है, क्या उसे मतदाता भी बना दिया जाना चाहिए? मान लीजिए कोई व्यक्ति पड़ोसी देश का है और यहां मजदूरी कर रहा है तो क्या उसे भी मतदाता बना दिया जाए?

पीठ ने याचिकाकर्ताओं से कहा, आप कह रहे हैं कि चुनाव आयोग महज एक डाकघर है जिसे जमा किया गया फॉर्म 6 स्वीकार करना चाहिए और मतदाता सूची में आपका नाम शामिल करना चाहिए। कुछ याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा, पहली नजर में, हां… जब तक कि कोई उलटी बात न हो। इस पर पीठ ने कहा, लेकिन चुनाव आयोग के पास हमेशा यह सांविधानिक अधिकार रहेगा कि वह दस्तावेजों की सच्चाई सुनिश्चित करे।

सिब्बल ने सुनवाई के दौरान अपना पक्ष रखते हुए कहा, एसआईआर प्रक्रिया ने लोकतांत्रिक भागीदारी के बारे में बुनियादी चिंताएं पैदा की हैं। यह ऐसा मामला है जो लोकतंत्र को प्रभावित करता है। एसआईआर आम मतदाताओं पर, जिनमें कई अनपढ़ हैं, फॉर्म भरने का एक गैर-सांविधानिक बोझ डालता है। और अगर वे ऐसा करने में विफल हो जाते हैं तो उन्हें बाहर किए जाने का खतरा रहेगा। उन्होंने कोर्ट से प्रक्रियागत औचित्य के बदले सांविधानिक सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करने का अनुरोध किया। सिब्बल ने कहा, एक बार किसी का नाम मतदाता सूची में दर्ज हो जाए तो इसकी वैधता तब तक रहती है जबतक कि सरकार इसमें कोई गलती न साबित कर दे। किसी का भी नाम हटाने के लिए एक ऐसी प्रक्रिया अपनानी होगी जो उचित और निष्पक्ष हो। सिब्बल ने जोर देकर कहा कि फॉर्म-6 के तहत स्व-घोषणा को शामिल करने के लिए नागरिकता के सबूत के तौर पर स्वीकार किया जाता है और इसे रिटेन करने के लिए किसी अनुचित मानक के तहत नहीं रखा जा सकता।

सिब्बल ने कहा कि आधार निवास को साबित करता है और हालांकि यह नागरिकता तय नहीं करता है, यह एक धारणा बनाता है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

सिब्बल ने कहा कि आधार निवास को प्रमाणित करता है और भले ही यह नागरिकता का निर्णायक प्रमाण नहीं है, यह एक ऐसा अनुमान देता जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा, मेरे पक्ष में एक अनुमान है। मेरे पास आधार है। वह मेरा निवास है। आप इसे छीनना चाहते हैं तो इसे एक प्रक्रिया के माध्यम से छीनिए और वह प्रक्रिया इस अदालत में साबित होने दीजिए। उन्होंने चेतावनी दी कि निर्दिष्ट संक्षिप्त समयसीमा में एसआईआर को सार्थक रूप से पूरा नहीं किया जा सकता। उन्होंने दूरदराज के क्षेत्रों का हवाला देते हुए कहा कि इस डाटा को प्राप्त करने की प्रक्रिया दो महीने में पूरी नहीं की जा सकती। उन्होंने पूछा, मेरे देश की वास्तविकता देखिए… क्या आपको लगता है कि पश्चिम बंगाल या बिहार के दूरदराज क्षेत्रों में लोग गणना फॉर्म भरना जानते हैं।

शीर्ष कोर्ट ने तमिलनाडु, केरल और पश्चिम बंगाल में एसआईआर को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई का समय तय कर दिया। पीठ ने चुनाव आयोग से तमिलनाडु में एसआईआर को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर एक दिसंबर तक अपना जवाब दाखिल करने को कहा और याचिकाकर्ताओं को जवाब दाखिल करने के लिए दो दिन का समय दिया। तमिलनाडु से संबंधित याचिका 4 दिसंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध होगी। इसी तरह, केरल से संबंधित याचिका पर आयोग को 1 दिसंबर तक जवाब देना होगा और 2 दिसंबर को सुनवाई होगी। पीठ ने पश्चिम बंगाल मामले में 9 दिसंबर को सुनवाई तय की और चुनाव आयोग को इस सप्ताहांत में अपना जवाब दाखिल करना होगा करना होगा। पीठ ने कहा, पश्चिम बंगाल राज्य चुनाव आयोग और राज्य सरकार भी 1 दिसंबर तक अपना जवाब फाइल करने के लिए स्वतंत्र हैं।

जस्टिस बागची ने सुनवाई के दौरान कहा, फॉर्म 6, जो नाम जोड़ने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, चुनाव आयोग को बिना सत्यापन के प्रविष्टियों को स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। उन्होंने मृत मतदाताओं को सूची से हटाने की आवश्यकता पर यह ध्यान देते हुए जोर दिया कि सूचियां पंचायतों और आधिकारिक वेबसाइट पर सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित की जाती हैं। उन्होंने कहा, हम खाली जगह में न्याय नहीं करते। वकील प्रशांत भूषण ने असम के एसआईआर दिशानिर्देशों की ओर ध्यान आकर्षित किया, यह तर्क देते हुए कि यह निर्देश गलत तरीके से चुनाव अधिकारियों को नागरिकता तय करने का अधिकार देते हैं।

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