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गाय से बढ़कर कोई दिव्य चीज नहीं है : Swami Avimukteshwaranand Saraswati

गंगटोक । अपनी “गौ ध्वज स्थापना भारत यात्रा” के तहत स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती बुधवार को सिक्किम पहुंचे। इस अवसर पर गंगटोक के ठाकुरबाड़ी मंदिर में प्रवास के दौरान उन्होंने नागालैंड सरकार द्वारा राज्य में प्रवेश नहीं दिए जाने पर अपनी निराशा व्यक्त की। साथ ही उन्होंने राज्य के सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा नेतृत्व की सराहना भी की।

स्वामी अविमुक्‍मंश्‍वरानंद सरस्वती ने कहा, मैंने किसी के बारे में बुरा नहीं कहा है। मैं बस इतना चाहता हूं कि मुझे यात्रा करने और लोगों के साथ अपना संदेश साझा करने का अवसर मिले। लेकिन नागालैंड सरकार ने फैसला किया कि मैं राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता। मैं यहां नफरत फैलाने नहीं, प्यार और ज्ञान बांटने आया हूं। मैं लोगों से गायों की पवित्रता के बारे में बात करना चाहता हूं और उन्हें सुनना चाहिए। ऐसे में मुझे क्यों रोका जा रहा है?

इसके साथ ही स्वामी सरस्वती ने सभी पूर्वोत्तर राज्यों के मुख्यमंत्रियों से आग्रह किया कि वे उनकी यात्रा में बाधा न डालें। उन्होंने कहा, मैं पूर्वोत्तर के सभी नेताओं से अनुरोध करता हूं कि वे मुझे न रोकें। मैं किसी पर आरोप नहीं लगा रहा हूं। मैं केवल सनातन धर्म का संदेश साझा कर रहा हूं। हमारा देश एक लोकतंत्र है, और सनातन धर्म बहुमत बनाता है। इसलिए, हमें स्वतंत्र रूप से बोलने की अनुमति दी जानी चाहिए। अगर मुझे गाय के बारे में बोलने की अनुमति नहीं है, तो आप मुझे गोली मार सकते हैं। मैं गायों की हत्या को चुपचाप नहीं देख सकता। गौ माता केवल एक जानवर नहीं है, वह हमारे दिलों और संस्कृति में एक पवित्र स्थान रखती है। हमारा कर्तव्य है कि हम उसका सम्मान करें और उसकी रक्षा करें।

सनातन धर्म के मूल सिद्धांत, भारतीय परंपरा में गायों की पवित्रता तथा गोरक्षा के महत्व पर जोर देते हुए स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने आगे स्पष्ट किया, कुछ लोग कहते हैं कि गाय हमारी माता है क्योंकि वह हमें दूध देती है। अगर यह सच होता, तो हम भैंस या बकरी जैसे अन्य जानवरों को भी अपनी माता मानते। लेकिन गाय के प्रति हमारा समर्पण और प्रेम ही उसे हमारी माता बनाता है। हम गाय की पूजा करते हैं क्योंकि वह आत्मा और जीवन की पवित्रता का प्रतिनिधित्व करती है। उन्होंने भारतीय शास्त्रों में गाय के आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व पर भी प्रकाश डालते हुए कहा, गाय हमारे वेदों और शास्त्रों में पूजनीय है। ऐसा कहा जाता है कि गाय से बढ़कर कोई दिव्य चीज नहीं है। फिर भी आज, गाय का मांस बेचा और खाया जाता है, जो न केवल अमानवीय है बल्कि हमारे सांस्कृतिक मूल्यों के भी खिलाफ है।

स्वामी ने गायों की पवित्रता की रक्षा और सम्मान के लिए गौ प्रतिष्ठा आंदोलन को जारी रखने का आह्वान किया और बताया कि उनके सहित सभी चार शंकराचार्यों ने इस आंदोलन का समर्थन किया है। इसके अलावा, उन्होंने सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा की राजनीतिक रणनीति की भी सराहना की और इसे सनातन धर्म के दृष्टिकोण के समानांतर बताया। उन्होंने एसकेएम की सभी राज्य विधानसभा सीटों पर अपनी जीत को ऐतिहासिक बताते हुए उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे एसकेएम ने पूर्ण बहुमत और राज्यसभा सीट होने के बावजूद केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी के साथ मजबूत संबंध बनाए रखने के लिए भाजपा उम्मीदवार को सीट देने का फैसला किया। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने इस बात पर जोर दिया कि इस तरह के बलिदान दीर्घकालिक संबंधों के लिए बुद्धिमानी है।

वहीं, स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने तिरुपति मंदिर में हुए प्रसाद घोटाले पर भी बात की। इस पर उन्होंने मंदिरों का प्रबंधन सरकारी अधिकारियों के बजाय धार्मिक नेताओं द्वारा करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि इस तरह की घटनाएं धार्मिक प्रथाओं की पवित्रता को बनाए रखने में आध्यात्मिक नेतृत्व के महत्व को उजागर करती हैं।

एसकेएम के हालिया निर्णयों की स्‍वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने की सराहना
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने 25 सितंबर को सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा (एसकेएम) के हालिया राजनीतिक निर्णयों की सराहना की है। आध्यात्मिक नेता ने सभी राज्य विधानसभा सीटों पर एसकेएम की जीत को ऐतिहासिक बताया और पूर्ण बहुमत होने के बावजूद भाजपा उम्मीदवार को राज्यसभा सीट देने के उसके रणनीतिक कदम पर प्रकाश डाला।

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने सनातन धर्म के संवाद के माध्यम से एकता को बढ़ावा देने के दृष्टिकोण के साथ समानताएं दर्शाते हुए कहा कि दीर्घकालिक संबंधों के लिए इस तरह के त्याग बुद्धिमानी भरे हैं। उन्होंने धार्मिक मामलों पर नागालैंड से विरोध जैसी चुनौतियों का सामना करते हुए भी इस रणनीति के महत्व को रेखांकित किया। स्वामी की यह टिप्पणी गौध्वज स्थापना भारत यात्रा के तहत सिक्किम की उनकी यात्रा के दौरान आई, जो एक आध्यात्मिक यात्रा है जिसका उद्देश्य भारत के सांस्कृतिक ताने-बाने को पुनर्जीवित करना है।

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