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बच्‍चों को लेकर अपनी सोच बदलने की जरूरत : पवन चामलिंग

गंगटोक, 14 नवम्बर । बाल दिवस के अवसर सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (SDF) प्रमुख तथा सिक्किम के पूर्व मुख्यमंत्री Pawan Chamling ने सूचना-तकनीक के मौजूदा समय में वैश्विक स्तर पर बच्चों की स्थिति एवं उनके समक्ष पेश चुनौतियों को लेकर अपने विचार साझा किए हैं।

चामलिंग ने कहा कि बच्चों के कल्याण एवं उन्हें उनके अधिकारों के प्रति जागरूक बनाने के लिए देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की स्मृति में हर वर्ष इस दिन को बाल दिवस के तौर पर मनाया जाता है। लेकिन भारत समेत दुनिया के तमाम देशों में बच्चों की स्थिति और उनकी समस्याओं को देखते हुए आज बाल दिवस के औचित्य पर सवालिया निशान लग जाता है।

उन्होंने कहा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, सूचना-तकनीक एवं सोशल मीडिया के इस दौर में, आज हमारे बच्चे तेजी से इसके आदी होते जा रहे हैं। हालांकि सूचना-तकनीक युग अपने साथ कई नवाचार लेकर आया है जो हमारे जीवन को आसान बनाते हैं, लेकिन यह अपने साथ कई चुनौतियां भी लेकर आता है।

उन्‍होंने कहा कि छोटी उम्र से ही, बच्चों के प्रौद्योगिकी के संपर्क में आने से बच्चों के सामाजिक-भावनात्मक कौशल और शारीरिक निर्माण में महत्वपूर्ण खेलकूद के प्राकृतिक स्वरूप को बदल दिया है। आज विज्ञान व प्रौद्योगिकी में बड़ी छलांग के साथ, बच्चे टेस्ट ट्यूब में पैदा हो रहे हैं लेकिन साथ ही, वे अपने माता-पिता एवं देखभाल करने वालों के साथ अपना बंधन भी खो रहे हैं। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि आज हम एक ऐसा मिश्रित जीवन जी रहे हैं जो कृत्रिम मनुष्यों का निर्माण कर रहा है और जिसने प्रकृति से अपना संबंध खो दिया है।

एसडीएफ नेता ने आगे कहा कि आज जन्म से ही, बच्चे फास्ट फूड का सेवन करते हैं जो बाद में उनके लिए प्रमुख स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनता है। हमारे देश में भ्रूण हत्या और शिशु हत्या भी एक गंभीर वास्तविकता है। साथ ही दुनिया भर में बच्चों में भुखमरी भी प्रमुख समस्याओं में से एक है। उन्होंने कहा, भारत में बच्चों की कमजोरी दर 19.3 प्रतिशत है जो दुनिया में सबसे अधिक है। यह एक ऐसा मुद्दा जिस पर हमें बहुत चिंतित होना चाहिए। वहीं, इजराइल की तरह दुनिया भर में हाल के युद्धों के साथ, बच्चों की पहचान सर्वाधिक युद्ध पीड़ितों के रूप में की गई है।

ऐसे में चामलिंग ने सवाल किया कि आज हमारे बच्चे जिस माहौल में पल-बढ़ रहे हैं, उसमें हम किस तरह का समाज बना रहे हैं? 21वीं सदी के तथाकथित उन्नत मानव किस प्रकार की मानवता को भविष्य के लिए छोड़ कर जा रहे हैं? वहीं, आज विश्व में मानवता, संवेदनशीलता और प्रेम दुर्लभ जीवन मूल्य बन गए हैं। इसके बजाय, लालच, हिंसा और अन्याय ने मानवता को बदल दिया है। ऐसे में हमें अपने बच्चों की खातिर जीवन जीने के तरीके पर पुनर्विचार करना होगा। ऐसे में बाल दिवस के अवसर पर चामलिंग ने तेजी से बदलती दुनिया में बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों के संदर्भ में अपनी सोच को फिर से व्यवस्थित करने की आवश्यकता पर विचार करने का आह्वान किया।

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