छूटी जातियों को जनजाति का दर्जा देने का मामला

राज्य उच्च-स्तरीय समिति ने मुख्यमंत्री को सौंपी अंतिम रिपोर्ट

आज का दिन सिक्किम के लिए ऐतिहासिक : प्रेम सिंह तमांग

गंगटोक : सिक्किम के लिए एक ऐतिहासिक पल के तहत आज राज्य ने 12 वंचित समुदायों को अनुसूचित जनजाति (एसटी) की मान्यता देने की अपनी सबसे पुरानी और महत्वपूर्ण आकांक्षाओं की दिशा में एक कदम आगे बढ़ाया है। इसके तहत, राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में आयोजित एक उच्च-स्तरीय बैठक में जनजातीय समावेशन पर सिक्किम राज्य उच्च-स्तरीय समिति ने औपचारिक रूप से अपनी बहुप्रतीक्षित अंतिम रिपोर्ट मुख्यमंत्री Prem Singh Tamang-Golay को सौंप दी।

वर्षों के विस्तृत अध्ययन और परामर्श के बाद तैयार की गई इस रिपोर्ट में सिक्किम के 12 समुदायों – भुजेल, गुरुंग, जोगी, खस, किरात राई, किरात दीवान याखा, माझी, मंगर, नेवार, संन्यासी, सुनुवार (मुखिया) और थामी-को भारतीय संविधान के तहत अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने की सिफारिश की गई है। गौरतलब है कि यह रिपोर्ट समिति के कार्य का आधिकारिक समापन है और इसे राज्य के लिए ऐतिहासिक और संभावित रूप से परिवर्तनकारी बताया जा रहा है।

आदिवासी मान्यता का मुद्दा दशकों से अनसुलझा रहा है और सरकारें, सामुदायिक नेता और संगठन इन समुदायों को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने के लिए दबाव बनाते रहे हैं। इन्हें बाहर किए जाने को न केवल संवैधानिक न्याय से वंचित करने के रूप में देखा गया है, बल्कि सिक्किम को आदिवासी राज्य के रूप में मान्यता दिलाने के व्यापक प्रयास में भी बाधा के रूप में देखा गया है।

नई दिल्ली में हुई उक्त बैठक की अध्यक्षता मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (गोले) ने की और इसमें मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ), समाज कल्याण विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ-साथ उच्च-स्तरीय समिति के सदस्यों ने भी भाग लिया। इनके अलावा, सूची से बाहर रह गए 12 समुदायों के प्रतिनिधि और पदाधिकारी भी बैठक में उपस्थित थे। साथ ही, विशेष संसाधन व्यक्ति भी इसमें शामिल थे जिन्होंने अंतिम दस्तावेज तैयार करने में अपनी विशेषज्ञता का योगदान दिया।

बैठक के दौरान, एंथ्रोग्राफिक कमिटी ने औपचारिक रूप से अपनी अंतिम रिपोर्ट सौंपी, जिसमें विस्तृत मानवशास्त्रीय अध्ययन, सांस्कृतिक अभिलेख और सामाजिक दस्तावेज शामिल हैं, जो वंचित समूहों की विशिष्ट पहचान और जनजातीय विशेषताओं को उजागर करते हैं।

वहीं, मुख्यमंत्री गोले ने इस दिन की घटना को एक “ऐतिहासिक मील का पत्थर” बताया और कहा कि यह रिपोर्ट सिक्किम की जनजातीय राज्य के रूप में मान्यता की लंबे समय से चली आ रही मांग को बल देती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि इन समुदायों की मान्यता न केवल संवैधानिक न्याय से संबंधित है, बल्कि सांस्कृतिक पहचान की रक्षा, सामाजिक-आर्थिक उत्थान सुनिश्चित करने और लोगों के राजनीतिक अधिकारों को सुरक्षित करने से भी संबंधित है।

रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद पत्रकारों से बात करते हुए, मुख्यमंत्री के राजनीतिक सचिव जैकब खालिंग ने कहा, आज की रिपोर्ट राज्य स्तर पर हमारी जिम्मेदारी पूरी होने का प्रतीक है। समिति ने सभी आवश्यक विवरण संकलित कर लिए हैं। अब केंद्र सरकार को इस मामले में कार्रवाई करनी है और इसे आगे बढ़ाना है। इन समुदायों के लोगों की, और वास्तव में पूरे सिक्किम की, आकांक्षाएँ समय पर मान्यता पर निर्भर करती हैं।

खालिंग ने आगे कहा कि समिति की रिपोर्ट समावेशी और व्यापक है, जो संबंधित समुदायों के हर वर्ग की आवाज़ को प्रतिबिंबित करती है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अगला कदम पूरी तरह से केंद्र सरकार का है, जिसे रिपोर्ट की जांच करनी होगी और 12 समुदायों को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने के लिए विधायी कार्रवाई करनी होगी। रिपोर्ट प्रस्तुत किए जाने पर न केवल नई दिल्ली में कड़ी नजर रखी गई, बल्कि पूरे सिक्किम में भी इस पर गहरी नजर रखी गई। कई लोगों के लिए, यह दशकों की अनिश्चितता के बाद एक महत्वपूर्ण पड़ाव पार करने का प्रतीक है।

बहरहाल, अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत किए जाने की खुशी के बीच नेता और समुदाय के सदस्य इस बात पर सहमत हैं कि असली परीक्षा अब शुरू होती है। अनुसूचित जनजाति की मान्यता की मांग दशकों से चली आ रही है, और उम्मीद है कि केंद्र सरकार बिना किसी देरी के सकारात्मक प्रतिक्रिया देगी। हालांकि, उन 12 समुदायों के लिए; जिनमें से कई मान्यता, अस्मिता और अवसर के सवालों से जूझते रहे हैं, आज का विकास आशा से भरा एक कदम है। इस दिन ने न केवल सामुदायिक अधिकारों के लिए, बल्कि पूरे राज्य के लिए एक अधिक समावेशी भविष्य की आकांक्षाओं को भी पुनर्जीवित किया है।

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