गंगटोक : इसे अर्श से फर्श पर आना ही कहेंगे..! हिमालयी राज्य सिक्किम के सबसे शक्तिशाली राजनीतिक व्यक्तियों में से एक और लगातार पच्चीस साल सत्ता में रहने वाले पवन चामलिंग की Sikkim Democratic Front (एसडीएफ) पार्टी अब महज एक उपचुनाव में भी अपनी चुनौती नहीं दे पा रही है।
आगामी 13 नवंबर को राज्य की दो सीटों-सोरेंग च्याखुंग और नामची सिंगीथांग-के उपचुनाव में अपनी दावेदारी पेश करने वाले एसडीएफ उम्मीदवार को पार्टी अध्यक्ष से समर्थन की कमी के कारण अपनी उम्मीदवारी वापस लेनी पड़ी है। ऐसे में, सत्तारूढ़ एसकेएम, जिसने 2024 के आम चुनाव में शानदार जीत हासिल की थी, अब इन दो सीटों पर फिर से निर्विरोध जीतने के लिए तैयार है।
कहना न होगा कि कभी सिक्किम की राजनीति में एक प्रमुख ताकत रही एसडीएफ में भारी गिरावट आई है और यह जीरो सीट के आंकड़े पर आ गई है। कभी अपने व्यापक प्रभाव और लगातार चुनावी सफलताओं के लिए प्रतिष्ठित, एसडीएफ अब उपचुनावों में अपनी उपस्थिति बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है। हाल की घटनाएं, इसके उम्मीदवारों प्रेम बहादुर भंडारी ने सोरेंग-चाकुंग सीट से और डेनियल राई ने नामची सिंगीथांग से अपने नाम वापस ले लिये और पार्टी से इस्तीफा भी दे दिया है। यह एसडीएफ पार्टी के प्रभाव में तेज गिरावट दर्शाता है, जो तेजी से बदलते राजनीतिक परिदृश्य में पारंपरिक पार्टियों के सामने आने वाली चुनौतियों का संकेत है।
SDF उम्मीदवारों ने यहां तक कहा कि उन्हें पवन चामलिंग के नेतृत्व में पार्टी के निर्देशन पर भरोसा नहीं रहा, जो मुश्किल समय में उपलब्ध नहीं थे। एसडीएफ ने न केवल आम और विधानसभा दोनों चुनाव हारे हैं, बल्कि इसके सदस्यों की संख्या में भी लगातार कमी आई है, जिनमें से कुछ पहले पार्टी में शामिल हुए थे। वे तब से एसकेएम में शामिल हो गए हैं, जहां उन्होंने वर्तमान सीएम पीएस गोले पर अपना भरोसा जताया है, जिन्हें हाल ही में विधानमंडल स्थापना दिवस के दौरान सम्मानित किया गया था। जैसे-जैसे एसडीएफ नीचे की ओर गिर रहा है, इसकी ऊर्जा खत्म होती जा रही है और इसके पूर्व गौरव की यादें लगातार धुंधली होती जा रही हैं। उनके अनुसार, पार्टी का यह नुकसान मुख्य रूप से उसके अपने अहंकार और अक्षम नेतृत्व के कारण हुआ है।
गौरतलब है कि 2019 तक एसडीएफ के पास राज्य की अधिकांश सीटें थीं। एसकेएम के कुछ पूर्व विधायक जो 2014 में जीते और बाद में एसडीएफ में शामिल हो गए, उन्होंने भी एसडीएफ छोड़ कर फिर से एसकेएम का दामन थाम लिया। 2019 के उपचुनाव में एसडीएफ ने गंगटोक, मार्तम रुमटेक और पोलोक कामरांग में तीन सीटें भी खो दी थीं।
बहरहाल, 2024 के चुनावों के बाद राज्य के राजनीतिक क्षेत्र में एसडीएफ पार्टी की इस कदर गिरावट हुई कि वह बहुमत से जीरो सीट पर पहुँच गई है। एसडीएफ के आंतरिक मतभेद और अदूरदर्शी रणनीतियां इसके चुनावी भाग्य को पुनर्जीवित करने में विफल रही। यही बात पूर्व सिक्किम संग्राम परिषद के साथ भी हुई थी। राजनीतिक अंदरूनी कलह से जूझ रही एसडीएफ में यह दौड़ अब उम्मीदवारों और अन्य पदाधिकारियों के बीच प्रतिस्पर्धा में बदल गई है। कुछ महीने पहले ही चामलिंग ने अपनी पार्टी के सभी पदों और भूमिकाओं को समाप्त कर दिया था।
दूसरी ओर, Prem Singh Tamang (Golay) और एनबी दहाल जैसे नेता 2024 के चुनावों में सिक्किमी युवाओं के साथ मजबूत संबंध बनाए हुए हैं, जिन्होंने 2019 के राज्य चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। रिनचेनपोंग के युवा नेता एरुंग तेनजिंग लेप्चा पर स्थानीय युवाओं का भरोसा था, जिसके कारण उन्हें शानदार जीत मिली और वे 2024 के चुनावों में सबसे अधिक अंतर से जीतने वाले विजेता बन गए।
राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, सिक्किम के मुख्यमंत्री Prem Singh Tamang (Golay) के लिए 2018 में जेल से रिहा होने के बाद महत्वपूर्ण मोड़ आया। एसकेएम के जैकब खालिंग एक प्रमुख खिलाड़ी बन गए, जिन्होंने युवाओं का नेतृत्व करते हुए अप्रत्याशित रूप से सिंगताम में विजय हासिल कर ली। वहीं, अन्य राजनीतिक विशेषज्ञों ने भी सिक्किम में 2019 चुनाव जीतने की योजना के साथ गोले से संपर्क किया, जो केवल छह से सात महीने दूर था। गोले ने अपनी टीम पर भरोसा किया, उनसे मिलते रहे और उनके साथ गंभीरता से बातचीत करते रहे, आज भी वे ऐसा करते हैं।
वहीं, Pawan Chamling ने आधे-अधूरे रुख एवं ऊहापोह की स्थिति को बनाए रखा, जो पार्टी में कई लोगों के बीच विश्वास जगाने में विफल रही। जानकारों के अनुसार, चामलिंग खुद को चौबीसों घंटे उपलब्ध राजनेता के रूप में नहीं देखते। 2019 के चुनाव हारने के बाद वे विधानसभा में भी नहीं गए। उस समय, एसडीएफ हाल के वर्षों में दूसरी बार हार का सामना कर रहा था और इसके कार्यकर्ताओं में असंतोष था। साथ ही पार्टी में युवा नेतृत्व का भी अभाव था। ऐसे में, 2019 में एक क्षेत्रीय समूह द्वारा एसडीएफ को उसके मुख्य गढ़ से सत्ता से बेदखल कर दिया गया, जिससे इसके 25 वर्षों के निरंतर शासन का अंत हो गया।
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