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श्रमिक संगठनों का बंद रहा असरदार

दार्जिलिंग/मिरिक । पर्वतीय श्रमिक संगठन के समन्वय मंच द्वारा बुलाए गए 12 घंटे के पहाड़ बंद का हिल्‍स में काफी असर देखा गया। पूजा बोनस की मांग को लेकर रविवार को सिलीगुड़ी के डागापुर स्थित श्रमिक भवन में बैठक का आयोजन किया गया था। बैठक में कोई नतीजा नहीं निकलने पर चाय श्रमिक संगठन समन्वय मंच ने आज 12 घंटे का पहाड़ बंद का आह्वान किया था।

पहाड़ के सभी राजनीतिक दलों और यूनियनों ने समन्वय मंच के पहाड़ बंद के प्रति अपना समर्थन जताया पहाड़ बंद को सफल बनाने के लिए मजदूर संगठन और यूनियन संगठनों के नेता सड़कों पर उतरे। मजदूर नेता सुनील राई, एनवी खवास, भरत तमांग, जेवी तमांग आदि पहाड़ बंद को प्रभावी बनाने में जुटे दिखे और समन्वय मंच द्वारा बुलाये गये पहाड़ बंद को ध्यान में रखते हुए सड़क पर वाहनों को रोककर पूछा कि बंद के दौरान वाहन क्यों चला रहे हैं।

पुलिस प्रशासन ने सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी। श्रमिक नेता सुनील राई ने कहा कि पहाड़ी चाय श्रमिकों को 20 प्रतिशत पूजा बोनस मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि हम 20 प्रतिशत से कम पूजा बोनस स्वीकार नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि हम फैक्टि्रयों में तैयार चाय के पैकेट बाहर नहीं ले जाने देंगे। कल हम पहाड़ के सभी चाय बागानों में धरना-प्रदर्शन आदि कार्यक्रम करेंगे।

वहीं दूसरी ओर, मिरिक, सौरेनी समेत पानीघाटा में सुबह छह बजे से शाम छह बजे तक 12 घंटे का बंद सफल रहा। बंद की अवधि के दौरान सभी दुकानें, वाहन, शैक्षणिक संस्थान बंद रहे। ज्ञात हो कि चाय बागान में काम करने वाले मजदूरों के अधिकार की मांग कई बार की गई, लेकिन मालिक 13 फीसदी से ज्यादा बोनस देने को तैयार नहीं हैं। 20 प्रतिशत बोनस न देने पर श्रमिक संगठनों ने बड़े आंदोलन की चेतावनी दी है।

दशहरा काफी निकट आ गया है। हर वर्ष श्रमिकों को दशहरे पर बोनस के लिए आंदोलन करने के लिए बाध्‍य होना पड़ता है। मजदूरों का कहना है कि उन्हें अपनी कमाई का हक मिलना चाहिए वे भीख नहीं मांग रहे हैं। उन्‍होंने कहा कि सामानों की कीमत आसमान छू रही है। बोनस से त्‍योहार मनाने में मदद मिलती है। चाय श्रमिकों के लिए बोनस काफी महत्वपूर्ण हैं। श्रमिक अपने बेटों और बेटियों के लिए नए कपड़े खरीदने, आवश्यक सौदे करने के लिए इस बोनस का इंतजार करते हैं।

चाय श्रमिकों को प्लांटेशन लेबर एक्ट 1948 और लेबर एक्ट-1951 द्वारा दिए गए अधिकारों और 1955 में चाय श्रमिकों के ऐतिहासिक आंदोलन द्वारा दिए गए अधिकारों के अलावा अब तक कुछ भी नहीं मिला है। ये अधिकार भी दिन-ब-दिन छीने जा रहे हैं। चाय श्रमिकों को साधारण दैनिक राशन के अलावा और कुछ नहीं मिलता है। रियायतें बढ़ने के बजाय कम हो रही हैं। चाय बागानों में आवास और चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं।

बंद को सफल बनाने के लिए कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए। सभी राजनीतिक दल ने एक स्वर से बंद का समर्थन किया। वे इस नारे के साथ आगे बढ़े कि 20 प्रतिशत पूजा बोनस समय पर मिलना चाहिए। मिरिक के दस चाय बागान के सैकड़ों श्रमिक आंदोलन में शामिल हुए। इस दौरान पुलिस प्रशासन भी सक्रिय रहा। आवश्यक सेवाओं के अलावा दोपहिया वाहनों को भी सड़क पर चलने की इजाजत नहीं दी गई।

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