दार्जिलिंग । नेपाली भाषा की मान्यता के लिए कड़ा संघर्ष करने वाले व्यक्तित्वों में से एक एनोसदास प्रधान के निधन से नेपाली भाषी समुदाय में शोक की लहर है। उन्होंने भाषा की पहचान के लिए निचले स्तर से लेकर उच्च स्तर तक काम किया। न केवल भाषा के लिए, बल्कि समाज की सेवा के लिए भी वे आगे बढ़े। वह धार्मिक रूप से नई दिल्ली में ‘उत्तर भारत के चर्च’ से संबंधित थे।
उन्होंने उस चर्च के महासचिव के रूप में काम किया। इसके अलावा, उन्होंने नेपाली भाषियों के एक प्रमुख संगठन, भारतीय गोरखा परिसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया। प्राप्त जानकारी के मुताबिक, वह वर्तमान में काउंसिल फॉर वर्ल्ड मिशन (सीडब्ल्यूएम) में डिप्टी मॉडरेटर थे। उनका जन्म 1945 में दार्जिलिंग में हुआ था। यद्यपि वे ईसाई थे, फिर भी उन्हें भाषा, साहित्य और संस्कृति के विकास का बहुत शौक था।
भाषा आंदोलन के अलावा, वह भारत में गोरखाओं के लिए एक अलग राज्य की आवश्यकता की वकालत करते हुए गोरखालैंड आंदोलन में भी सक्रिय रूप से शामिल थे। हालांकि उनका जन्म दार्जिलिंग में हुआ था, लेकिन उनकी कर्मस्थली कालिंपोंग थी। अत्यंत सरल व्यक्तित्व के धनी, सामान्य एवं सरल तरीके से रहना पसंद करने वाले, मिलनसार भाषा योद्धा एनोसदास प्रधान के निधन पर विभिन्न संगठनों, समाजों एवं व्यक्तियों ने शोक व्यक्त किया है।
प्रधान के निधन पर सिक्किम की पूर्व सांसद दिल कुमारी भंडारी ने शोक प्रकट किया। अपने शोक संदेश में उन्होंने कहा कि आज मुझे दुखद समाचार मिला कि आदरणीय भाई पादरी एनोसदास प्रधान यीशु को प्यारे हो गए। उनकी आत्मा को स्वर्ग में शांति मिले। मैं शोक संतप्त परिवार के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करती हूं।
श्रीमती भंडारी ने कहा कि उन्होंने भारतीय गोरखा परिसंघ के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया और वह एक ऐसे व्यक्तित्व थे जो दिल्ली में एसोसिएशन की रीढ़ की हड्डी के रूप में खड़े थे। संसद परिसर में मेजर दुर्गा मल्ल की प्रतिमा स्थापित करने से लेकर बाद में प्रतिमा के अनावरण के लिए पूरे भारत से आए गोरखाओं के लिए नई दिल्ली में आवास और भोजन की व्यवस्था करने तक, उन्होंने समारोह को सफल बनाने में मेरी बहुत मदद की। उस सफलता में उनका बहुत बड़ा हाथ था। ऐसे समर्पित समाज सेवी, भाषा प्रेमी की उपरोक्त सेवाओं एवं योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।
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