सांसद राजू बिष्ट ने पश्चिम बंगाल में धारा 356 लागू करने की मांग की

दार्जिलिंग : दार्जिलिंग से लोकसभा सांसद राजू बिष्ट (Raju Bista) ने आज संसद में पश्चिम बंगाल में संविधान की धारा 356 लागू करने की मांग की। शीतकालीन संसदीय सत्र के दौरान संशोधन विधेयक पर चर्चा के समय बोलते हुए उन्होंने यह मांग उठाई।

उन्होंने संशोधन विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि बीते 11 वर्षों में मोदी सरकार ने कई ऐसे कानूनों में संशोधन या उन्हें निरस्त किया है, जिनकी अब कोई प्रासंगिकता नहीं रह गई थी। उन्होंने बताया कि कांग्रेस शासनकाल में बनाया गया ‘एब्सॉर्ब्ड एरियाज एक्ट 1954’ अब निरस्त कर दिया गया है।

सांसद बिष्ट ने कहा कि आज़ादी से पहले दार्जिलिंग पहाड़, तराई और डुआर्स अलग-अलग प्रशासनिक व्यवस्थाओं के तहत शासित थे। आज़ादी के बाद इस क्षेत्र को पश्चिम बंगाल में शामिल किया गया और 1954 के कानून के जरिए बंगाल के कानून यहां लागू किए गए। उन्होंने आरोप लगाया कि इस कानून के लागू होने के बाद दार्जिलिंग क्षेत्र के साथ लगातार अन्याय और शोषण हुआ।

उन्होंने कहा कि भारत का संविधान सभी नागरिकों को समान अधिकार देता है, लेकिन दार्जिलिंग, तराई और डुआर्स के लोग अब भी न्याय और पहचान की प्रतीक्षा कर रहे हैं। सांसद ने संसद को बताया कि क्षेत्र की जनसांख्यिकी तेजी से बदल रही है, नदियों और जलस्रोतों पर अतिक्रमण हो रहा है और डीजीएचसी या जीटीए जैसी व्यवस्थाएं इन समस्याओं का समाधान करने में विफल रही हैं।

उन्होंने कहा कि एफआरए 2006, लेबर कोड 2020 जैसे कई केंद्रीय कानून आज तक पश्चिम बंगाल या इस क्षेत्र में लागू नहीं किए गए हैं। चाय बागान श्रमिकों को उनके अधिकार और सुविधाएं नहीं मिल पाई हैं। इसलिए मैं संसद के माध्यम से केंद्र सरकार से अनुरोध करता हूं कि पश्चिम बंगाल में संविधान की धारा 356 लागू की जाए। यही पश्चिम बंगाल के लोगों को न्याय दिलाने का एकमात्र रास्ता है।

बाद में जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में उन्होंने बताया कि उन्होंने संसद में ‘रिपीलिंग एंड अमेंडिंग बिल 2025’ का समर्थन करते हुए इसे कानून व्यवस्था को सरल, आधुनिक और नागरिक-हितैषी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया। उन्होंने यह भी कहा कि केंद्र सरकार ने क्षेत्र की समस्याओं के समाधान के लिए वार्ताकार की नियुक्ति कर संवाद और शांतिपूर्ण समाधान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है।

सांसद बिष्ट ने क्षेत्र की प्रमुख समस्याओं, जनसंख्या असंतुलन, प्राकृतिक संसाधनों का दोहन, विकास की कमी, कमजोर संपर्क व्‍यवस्था, बेरोजगारी, का उल्लेख करते हुए कहा कि अब संविधान के अंतर्गत स्थायी समाधान ही एकमात्र रास्ता है।

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