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जनजाति का दावा करने वाले नेता चुनाव के बाद हुए गायब : पाठक

दार्जिलिंग ।सीपीएम नेता और पूर्व सांसद समन पाठक ने आरोप लगाया कि दार्जिलिंग को पीपीएस देने और जनजाति बनाने का दावा करने वाले नेता इस समय गायब हो गए हैं। ये बातें जज बाजार में माकपा की बैठक के बाद पत्रकारों से बात करते हुए श्री पाठक ने कही। इस अवसर पर केवी वातर भी मौजूद रहे।

करीब दो घंटे चली बैठक के बाद श्री पाठक ने आरोप लगाया कि वोट जीतने के लिए‍ जिन लोगों ने यहां की 11 जातियों को जनजाति का दर्जा देने और दार्जिलिंग की समस्‍या का स्‍थायी राजनीतिक समाधान करने की बात कही थी उनका अब पता नहीं है। पाठक ने कहा कि वे अब झूठा आश्वासन दे रहे हैं कि शेष जातियों को भी जन जाति में शामिल किया जाएगा। वे इस मामले में ईमानदार नहीं हैं, वे अपनी बात के पक्के नहीं हैं, वे केवल वोटों का राजनीतिकरण करने के लिए यहां आते हैं।

श्री पाठक ने कहा कि जीटीए को राज्य सरकार स्वतंत्र रूप से काम नहीं करने दे रही है। बेरोजगारों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। इनके लिए कोई नई कार्य योजना नहीं है। पाठक ने आरोप लगाया कि वे एक बोर्ड देकर नई-नई घोषणाएं कर रहे हैं। राज्य का मुख्यमंत्री बनने के बाद सभी के साथ सम्मान का व्यवहार किया जाना चाहिए लेकिन इस पद पर पहुंचे लोग भी केवल राजनीति कर रहे हैं। उन्‍होंने कहा कि 2005 के समझौते के अनुरूप हिल्‍स की समस्‍या का स्‍थायी समाधान किया जाना चाहिए। राज्य के भीतर एक राज्य की क्षमता वाली संवैधानिक व्यवस्था का गठन किया जाना चाहिए।

इसके साथ ही श्री पाठक ने 16 फरवरी 2023 को एक बिल पारित किया गया है जिसमें नौ चाय बागानों की 600 एकड़ जमीन को सरप्लस बताया गया है। इसमें कहा गया है कि चाय बागानों में होम स्टे किया जा सकता है, इन सभी मुद्दों पर गौर करें तो बाहरी लोगों को बसाने की साजिश रची जा रही है। यहां के मूल वासियों को यहां पांच डिसमिल का पट्टा दिया जा रहा है। उन्‍होंने कहा कि इन मुद्दों को लेकर हमारी पार्टी का रुख स्पष्ट है। जो भी यहां रहता है उसके कब्जे वाली जमीनें उसके नाम पर होनी चाहिए।

उहोंने मांग की कि चाय उद्योग को दूसरे उद्योग स्थापित कर बाधित नहीं किया जाए। उन्‍होंने कहा कि फिलहाल पहाड़ में सर्वे का काम चल रहा है। पाठक ने कहा कि उच्च न्यायालय को न्यूनतम वेतन के वर्तमान मुद्दे को 30 जनवरी के भीतर हल करने का भी निर्देश दिया था लेकिन सरकार और मालिकों ने इस बारे में कुछ नहीं किया।

उन्‍होंने चेतावनी दी कि अगर फरवरी से न्यूनतम मजदूरी लागू नहीं किया गया तो सभी श्रमिक संगठन एकजुट होकर विरोध प्रदर्शन करेंगे। उन्‍होंने बंद चाय बागानों को तुरंत खोला जाना चाहिए। उन्‍होंने कहा लेकिन सरकार इस पर ध्‍यान देने क जगह बागवानों को सुविधाएं प्रदान करने में लगी है।

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