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दार्जिलिंग के चाय श्रमिकों के आंदोलन को क्रामाकपा मजदूर यूनियन ने किया याद

दार्जिलिंग । प्रत्येक वर्ष हम दार्जिलिंग शहर में 1 मई को अमेरिका के शहर शिकागो के हे मार्केट स्क्वायर पर एक मई 1886 में आठ घण्टा काम, आठ घण्टा विश्राम और आठ घण्टा मनोरंजन की मांग को लेकर अपने प्राणों का बलिदान करने वाले श्रमजिवी शहीदों का याद करते हुए मजदूर दिवस मनाते हैं। लेकिन उक्त श्रमिक आन्दोलन के ठीक 69 वर्ष बाद 25 जून 1955 में दार्जिलिंग के सोनादा बाजार से मार्ग्रेट्सहोप चाय बगान में चाय श्रमिकों के विभिन्न मांगों को लेकर मई दिवस के समान ही हुए श्रमिक आन्दोलन को भूलते जा रहे हैं। यह बात क्रामाकपा मजदूर यूनियन की ओर से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कही गई है।

वर्ष 1955 के श्रमिक आंदोलन से पहले पूंजीवादी चाय बागान के मालिक चाय बागान में आने वाले श्रमिकों का शोषण और अत्याचार करते थे। उस समय चाय बागानों में काम करने वाले श्रमिकों के लिए कोई सरकारी रियायत नहीं थी और न ही उन्हें बागान से ही कुछ मिलता था। चाय बागान के श्रमिकों की दैनिक मज़दूरी बहुत कम थी, कोई बोनस नहीं दिया जाता था। बागानों में अस्पताल की कोई व्यवस्था नहीं थी। अगर श्रमिक मालिक के ख़िलाफ़ आवाज़ भी उठाते थे, तो उन्हें बागान से बाहर निकाल दिया जाता था। वर्ष 1949 में मार्गरेटहोप चाय बागान में काम करने वाले श्रमिकों के अधिकारों और अधिकारों के बारे में बात करते समय डॉ तालापात्रा, टीकाराम वैदर, कांछा कामी, सैला भुजेल और मोहनसिंह राई की पिटाई की गई थी। परिणामस्वरूप, चाय बागान में काम करने वाले श्रमिकों के दिलों में विद्रोह की आग और भी अधिक जलने लगी। धीरे-धीरे चाय बागान मजदूर अपने हक और अधिकार की लड़ाई के लिए एकजुट होने लगे।

तब तक दार्जिलिंग हिल्स के चाय बागानों में मुख्य रूप से दो श्रमिक संगठन सक्रिय थे, एक दार्जिलिंग जिला टीकामान मजदूर संघ और दार्जिलिंग टीकामान श्रमिक संघ, इन दोनों श्रमिक संगठनों ने मिलकर 8 मई, 1955 को मालिक और सरकार के समक्ष चाय बागानों में समान बोनस दिया जाये, दैनिक भत्ता दिया जाये आदि मुद्दों पर 14 सूत्री मांग पत्र सौंपा गया। लेकिन सरकार और मालिकों की ओर से कोई सकारात्मक जवाब नहीं दिया गया तो 5 जून 1955 को गोरखा दुख निवारक सम्मेलन भवन में नर बहादुर गुरुंग की अध्यक्षता में श्रमिक संगठनों की एक संयुक्त बैठक हुई। उस दिन से हड़ताल शुरू करने का निर्णय लेने के बाद रतनलाल ब्राह्मण (माइला बाजे), देवप्रकाश राई के नेतृत्व में एक संयुक्त कार्रवाई समिति का गठन किया गया और सभी चाय बागानों में हड़ताल को सफल बनाने के लिए एक स्वयंसेवी शाखा का गठन किया गया।

15 जून 1955 को राई को श्रमायुक्त द्वारा यूनियन के प्रतिनिधियों को बुलाया गया तथा 16 एवं 19 को भी बुलाया गया, परन्तु उन बैठकों में कोई चर्चा नहीं हुई। दूसरी ओर, मालिकों और सरकार के सहयोग से संगठन के नेताओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया जाने लगा। 20 जून को मैला वाजे, देवप्रकाश राई, भक्त बहादुर हमाल और अन्य श्रमिक नेताओं के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किए गए। इस तरह 22 जून से शुरू हुई हड़ताल 25 जून को हिंसक हो गई। उस दिन दोपहर 3 बजे पुलिस ने मार्गरेटहोप कार्यकर्ताओं के शांतिपूर्ण जुलूस पर बेरहमी से गोलीबारी की और 18 वर्षीय अमृतमाया कामिनी, 23 वर्षीय मौलीशोवा रैनी सहित छह श्रमिकों को मार डाला।

इस ऐतिहासिक जनआंदोलन में एक वर्षीय कांचा सुनुवर, 25 वर्षीय पद्मलाल कामी, 14 वर्षीय काले सुब्बा, 45 वर्षीय जितमन तमांग शहीद हो गए, जबकि कई कार्यकर्ता पुलिस की गोलियों से घायल हो गए। इस दौरान कुछ लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया, गिरफ्तार किये गये लोगों में हमारे महान कवि अगम सिंह गिरि भी एक थे। 26 जून को प्रशासन ने उन शहीदों के अंतिम संस्कार में लोगों को इकट्ठा होने से रोकने के लिए धारा 144 की घोषणा की थी, लेकिन इसके लागू होने के बावजूद, लगभग 30,000 लोग अंतिम संस्कार जुलूस में शामिल हुए। उस आम हड़ताल के समर्थन में और श्रमिकों की निर्मम हत्या के जवाब में तराई डुवार्स के चाय बागान के श्रमिकों ने भी 22 और 29 जून को बंद रखा। इस प्रकार अंततः सरकार और मालिकों को जन आंदोलन के आगे झुकना पड़ा। नेताओं के ख़िलाफ़ गिरफ़्तारी वारंट वापस कर दिए गए।

सरकार पक्ष की ओर से हड़ताल ख़त्म करने की अपील और समझौते के सुझाव को स्वीकार करने के लिए 28 तारीख़ को एक बैठक आयोजित की गई। उक्त सभा में कई विवादों के बाद सरकार की ओर से कैदियों को शीघ्र रिहा करने, मजदूरों के लिए 1 रुपये 7 आने मजदूरी की मांग पर विचार करने के लिए त्रिपक्षीय बैठक बुलाने, तीन महीने के लिए बोनस की मांग पर विचार करने की मांग की गयी। कर्मचारियों के वेतन, वेतन सलाहकार समिति के गठन पर विचार, स्थायी आदेश आदेश को बदलने के लिए मांग पर विचार करने के लिए एक न्यायाधिकरण गठित करने के आश्वासन के बाद 29 जून से हड़ताल वापस ले ली गई। उक्त आन्दोलन में 50 बागानों के 60 हजार श्रमिकों ने भाग लिया। गोलीकांड के विरोध में बंगाल विधानमंडल में भी यह मुद्दा उठा था और उस समय विपक्षी दल के नेता ज्योति बसु ने कांग्रेस सरकार की कड़ी आलोचना की थी और तत्काल जांच की मांग की थी। लेकिन तब गोरखालीग पार्टी के विधायक डीबीएस गहतराज ने गोलीबारी का समर्थन किया था। परिणामस्वरूप, गोरखा लीग के नेता देवप्रकाश राई के नेतृत्व में लीग के केंद्रीय नेतृत्व ने पार्टी अनुशासन का उल्लंघन करने वाले तीन विधायकों को निष्कासित कर दिया। 25 जून 1955 के चाय बागान आंदोलन ने सभी चाय बागानों में काम करने वाले मजदूरों को यह संदेश दिया कि अपने अधिकारों के लिए एकजुट होकर संघर्ष करके ही अपना हक और अधिकार हासिल किया जा सकता है, जिसे आज के मजदूर भूल गए हैं। इसलिए, 1955 की इस 25वीं वर्षगांठ पर उन वीर बिरांगनाओं को न भूलें। सभी कर्मचारी अपने हक की लड़ाई में एकजुट हैं, क्योंकि श्रमिक एकता ही हमारी सफलता की कुंजी है। उक्त जानकारी क्रमाकपा के केंद्रीय सचिव सुनील राई ने दी है।

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