दार्जिलिंग । भारतीय जनता पार्टी (BJP) की दार्जिलिंग जिला समिति ने दार्जिलिंग पहाड़, तराई एवं डुआर्स की अर्थव्यवस्था के आधार रहे करीब दो सदी पुराने चाय उद्योग की बदहाली के लिए जीटीए और राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि कभी चाय श्रमिकों की समृद्धि का आधार रहा चाय उद्योग आज सिर्फ उनके शोषण का जरिया बन गया है। जीटीए और राज्य सरकार इसकी बेहतरी के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठा रही है।
समिति के उपाध्यक्ष एवं प्रवक्ता एलएम लामा ने एक विज्ञप्ति में कहा कि दार्जिलिंग पहाड़, तराई और डुआर्स के लगभग दो सौ साल पुराने चाय उद्योग में आज तक न तो चाय बगान श्रमिकों की मजदूरी भली-भांति बढ़ी है, और न ही उन्हें उनकी जमीनों का मालिकाना हक ही मिला है। ऐसे में वर्षों से चाय श्रमिक बगान मालिकों और सरकार की उदासीनता का दंश झेल रहे हैं। वे केवल शोषण के शिकार बने हैं। उन्होंने कहा, दार्जिलिंग पहाड़ की चाय का दुनिया भर में नाम है, लेकिन चाय की पत्तियां तोड़ने वाले मजदूर दुनिया में गुमनाम होते जा रहे हैं। आज आए दिन पहाड़ के चाय बगान बंद हो रहे हैं और राज्य सरकार एवं जीटीए तमाशबीन बने बैठे हैं। जीटीए पदाधिकारियों और राज्य सरकार की चाय बगान मालिकों की पोषण की नीति के कारण बगान श्रमिकों की स्थिति दिनोंदिन नाजुक बना कर उन्हें पलायन करने को मजबूर बनाने की साजिश हो रही है।
लामा के अनुसार, जीटीए सभासद संदीप छेत्री चुंगथुंग चाय बगान नहीं खोलने तक क्रिसमस नहीं मनाने की बात कहते हैं। यह सिर्फ उनका सस्ता प्रचार है। उन्होंने कहा, वर्तमान में चुंगथुंग चाय बगान के साथ ही नागरी, मुंडाकोठी, अंबोट, मगरजुंग, पांडाम, पेशोक, पानीघाटा, आलुबाड़ी आदि चाय बगान भी बंद पड़े हैं। इसके लिए पहाड़ की भागोप्रमो का अक्षम नेतृत्व जिम्मेदार है। उन्होंने आगे कहा, बंद बगानों के श्रमिकों एवं मजदूरों का त्योहारी सीजन अभाव में ही गुजर गया है। आज उनकी संकटपूर्ण स्थिति के बावजूद उन गरीब मजदूर परिवारों की बेहतरी के लिए जीटीए की क्या योजना है? और यदि उनके पास कोई योजना नहीं है, तो उन्हें श्रमिकों की आजीविका हेतु वैकल्पिक व्यवस्था करनी चाहिए।
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