दार्जिलिंग, 15 अक्टूबर । दार्जिलिंग से सांसद तथा भाजपा नेता Raju Bista ने दशहरा में चाय बागान मालिकों से श्रमिकों को कम से कम 20 प्रतिशत पूजा बोनस देने का आग्रह किया है।
यहां जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में श्री बिष्ट ने कहा कि दार्जिलिंग क्षेत्र में चाय श्रमिकों का वेतन बहुत कम है और उन्हें 20 प्रतिशत से कम दर पर बोनस देना क्रूरता के समान है। दुर्गा पूजा की शुरुआत हो चुकी है लेकिन अभी तक चाय श्रमिकों को बोनस का भुगतान नहीं किया गया है जो उचित नहीं है।
उन्होंने कहा कि यह मामला राज्य सरकार के श्रम विभाग के तहत आता है लेकिन उसने इस मुद्दे पर अपनी आंखें बंद कर ली है। इसलिए मैं सीधे तौर पर चाय बागान मालिकों से अपील कर रहा हूं कि कृपया श्रमिकों की 20 प्रतिशत बोनस की मांग मान लें।
उन्होंने कहा कि हमें यह महसूस करना होगा कि चाय उद्योग को फलने-फूलने के लिए, हमें श्रमिकों के लिए स्वस्थ जीवन और काम करने की स्थिति सुनिश्चित करनी होगी। मैं उद्योग जगत के नेताओं और राज्य सरकार के अधिकारियों से श्रमिकों के पक्ष में बोनस मुद्दे को हल करने की अपील करता हूं। किसी भी समय श्रमिकों या चाय बागान मालिकों को मौजूदा मतभेदों और मुद्दों को सुलझाने में मेरी भागीदारी की आवश्यकता महसूस होने पर सहायता करने में मुझे बहुत खुशी होगी। साथ मिलकर, हम अपने चाय उद्योग और इससे जुड़े सभी हितधारकों के लिए बेहतर और उज्जवल भविष्य सुनिश्चित कर सकते हैं।
उन्होंने कहा कि चूंकि डुआर्स में चाय बागान पहले ही 19 प्रतिशत बोनस पर सहमत हो चुके हैं, इसलिए मैं पश्चिम बंगाल सरकार और दार्जिलिंग प्लांटर्स एसोसिएशन से अनुरोध करता हूं कि वे बिना किसी देरी के पहाड़ी चाय बागान श्रमिकों के लिए 20 प्रतिशत की दर से बोनस पर सहमत हों।
इसके साथ ही उन्हेांने कहा कि चाय उद्योग हमारे क्षेत्र में रोजगार का सबसे बड़ा स्रोत है। चाय श्रमिक दुनिया की सबसे बेहतरीन चाय का उत्पादन करने के लिए बारिश, ठंड के मौसम, धूप और गर्मी के माध्यम से कड़ी मेहनत करते हैं। दार्जिलिंग चाय आज पूर्णता का पर्याय बन गई है, और यह पूर्णता उन श्रमिकों से आती है जो “चाय की शैंपेन” का उत्पादन करने के लिए सबसे कठिन परिस्थितियों में कड़ी मेहनत करते हैं। लेकिन 2017 के बाद से, मैंने देखा है कि दार्जिलिंग और कलिम्पोंग जिलों के पहाड़ी क्षेत्रों के चाय श्रमिकों को अपना पूजा बोनस प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना पड़ा है। वे हर साल अपने वैधानिक अधिकार पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। मुझे लगता है ये सरासर गलत है।
पूरे वर्ष कड़ी मेहनत करने वाले श्रमिकों के लिए दशहरा वर्ष का एकमात्र समय होता है, जब उन्हें वास्तव में अपने परिवार के साथ रहने और आराम करने का मौका मिलता है। उचित बोनस भुगतान के अभाव से श्रमिकों और उनके परिवारों पर वित्तीय, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक बोझ काफी बढ़ जाता है।
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