दार्जिलिंग । पश्चिम बंगाल के 42 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक दार्जिलिंग भी है। दार्जिलिंग लोकसभा क्षेत्र एक सामान्य सीट है, जो अनुसूचित जाति (एससी) या अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित नहीं है। यह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), कांग्रेस और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी (सीपीआई-एम) के लिए चुनावी लड़ाई का मैदान रहा है।
पिछले तीन लोकसभा चुनावों में भाजपा उम्मीदवारों का प्रदर्शन मजबूत रहा है। यहां से 2009 में भाजपा के उम्मीदवार जसवंत सिंह, 2014 में एसएस अहलूवालिया और 2019 में राजू बिष्ट ने दार्जिलिंग का प्रतिनिधित्व किया। ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ पार्टी टीएमसी को यहां अभी तक जीत हासिल नहीं हुई है। भाजपा के मौजूदा सांसद राजू बिष्ट को इस वर्ष पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग लोकसभा क्षेत्र से पुनः उम्मीदवार बनाया गया है। 2019 में राजू बिष्ट ने टीएमसी के अमर सिंह राई के खिलाफ 59.08 प्रतिशत वोट शेयर हासिल कर जीत हासिल की थी।
वहीं 2014 में भाजपा के एसएस अहलूवालिया ने टीएमसी के भाइचुंग भूटिया को हराकर पहली बार विजेता बने थे। चाय के लिए मशहूर दार्जिलिंग क्षेत्र के लोग लंबे समय से अलग ‘गोरखालैंड’ राज्य की मांग कर रहे हैं, जिसकी जड़ें पहचान के मुद्दे पर टिकी हैं। गोरखालैंड के मुद्दे पर ही 1980 के दशक से इस क्षेत्र में छिटपुट हिंसा देखी गई है। सबसे हालिया आंदोलन 2017 में हुआ था, जो 104 दिनों तक चला और जिसमें काफी क्षति हुई थी। दार्जिलिंग क्षेत्र में गोरखाओं के अलावा लेप्चा, शेरपा और भूटिया जैसे समुदाय भी रहते हैं। भाजपा 2009 से लगातार दार्जिलिंग सीट जीतती रही है। हालांकि राजू बिष्ट भाजपा की ओर से दोबारा नामांकित होने वाले पहले सांसद हैं। उनके पूर्ववर्ती जसवंत सिंह और एसएस अहलूवालिया का कार्यकाल एक बार का ही था।
दार्जिलिंग लोकसभा क्षेत्र के चुनाव में अलग राज्य के दर्जे के अलावा छठी अनुसूची में शामिल किए जाने का अहम मुद्दा रहा है। इस चुनाव में भाजपा को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि टीएमसी ने क्षेत्र में अपनी उपस्थिति मजबूत कर ली है और गोपाल लामा को मैदान में उतारा है। श्री लामा को भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा का समर्थन प्राप्त है। दार्जिलिंग में चुनाव 26 अप्रैल को होंगे, जबकि मतगणना 4 जून को होगी।
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