BJP के साथ अपने संबंधों पर विचार करेगी क्रामाकपा : आरबी राई

दार्जीलिंग : क्रांतिकारी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (क्रामाकपा) के चेयरमैन एवं पूर्व सांसद आरबी राई ने कहा है कि पार्टी भारतीय जनता पार्टी के साथ अपने संबंधों पर पुनर्विचार करेगी। क्रामाकपा ने आज पार्टी का 29वां स्थापना दिवस मनाया। पार्टी के मुख्य कार्यालय में आयोजित समारोह में पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष एवं वर्तमान चेयरमैन आरबी राई विशेष रूप से उपस्थित थे।

समारोह के बाद पत्रकारों से बातचीत में आरबी राई ने बताया कि पार्टी का स्थापना दिवस आंचलिक स्तर पर मनाया गया। उन्होंने कहा, क्रामाकपा के गठन से पहले हम मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी में थे। जब देश में छोटे-छोटे राज्यों के गठन की चर्चा शुरू हुई, तब हमने अलग राज्य गोरखालैंड की बात उठाई। इस पर पार्टी ने हमारे खिलाफ कठोर कदम उठाने का निर्णय लिया।

उन्होंने स्मरण किया कि वे 1989 से राज्यसभा सांसद थे और 1996 में माकपा ने उन्हें दार्जीलिंग लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया, जहां से वे चुनाव जीतकर सांसद बने। उन्होंने कहा कि उस समय जब अन्य छोटे राज्यों का गठन हो रहा था, तब हमने सवाल उठाया कि गोरखाओं के लिए अलग राज्य क्यों नहीं? लेकिन माकपा के नेताओं ने कहा कि बंगाल का विभाजन नहीं हो सकता, जिससे मतभेद बढ़े।

आरबी राई ने बताया कि 1996 के मई महीने में लोकसभा चुनाव जीतने के बावजूद पार्टी के दबाव में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद पहाड़-तराई-डुआर्स की जन-आकांक्षाओं को साथ लेकर क्रामाकपा का गठन किया गया। उन्होंने कहा, क्रामाकपा का गठन अलग राज्य की वकालत के लिए हुआ था और यह रुख आज भी कायम है।

उन्होंने आगे कहा कि उस समय पहाड़ की प्रमुख पार्टी गोरामुमो थी। उन्होंने गोरामुमो के संस्थापक अध्यक्ष सुबास घीसिंग से अलग राज्य गोरखालैंड के मुद्दे पर चर्चा की, लेकिन उनका दृष्टिकोण नकारात्मक था। आरबी राई के अनुसार, सुबास घीसिंग का मानना था कि माकपा छोड़कर नई पार्टी नहीं बनानी चाहिए थी।

आरबी राई ने कहा, उस तरह की बातों से हमें लगा कि सुबास घीसिंग तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु के एजेंट जैसे थे। 1986 में खून-खराबे के साथ उठाई गई गोरखालैंड की आवाज अंततः गोरखाओं के साथ धोखा जैसा हमें लगा।

उन्होंने बताया कि भारतीय जनता पार्टी छोटे राज्यों के पक्ष में मानी जाती थी और उनके चुनावी घोषणापत्र में किए गए वादों के समर्थन में क्रामाकपा ने वैचारिक विरोध के बावजूद अलग राज्य के मुद्दे पर भाजपा का समर्थन किया। उन्होंने कहा, पिछले लोकसभा चुनाव में मैं स्वयं उम्मीदवार था, लेकिन भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा गोरखाओं की मांग ईमानदारी से उठाने के आश्वासन के बाद मैंने अपना नामांकन वापस ले लिया।

हालांकि, केंद्र में भाजपा गठबंधन की बहुमत सरकार होने के बावजूद वर्षों बीत जाने के बाद भी गोरखाओं से किए गए वादे पूरे नहीं होने पर आरबी राई ने असंतोष व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि यदि भाजपा चाहे तो नए राज्य का गठन तुरंत कर सकती है, लेकिन आज तक वादे पूरे नहीं किए गए। उन्होंने यह भी कहा कि दार्जीलिंग के सांसद राजू बिष्ट द्वारा संसद में समस्याएं उठाए जाने के बावजूद भाजपा ने उन्हें गंभीरता से नहीं लिया।

आरबी राई ने कहा, केंद्र की भाजपा सरकार के इस रवैये से क्रामाकपा बेहद निराश है, इसलिए पार्टी भाजपा के साथ अपने संबंधों पर पुनर्विचार करेगी। उन्होंने 2026 में होने वाले पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव का उल्लेख करते हुए कहा कि यदि भाजपा सत्ता में आती भी है, तो इस बात की कोई गारंटी नहीं कि वह गोरखाओं के पक्ष में अपना रुख बनाए रखेगी। उन्होंने जोर दिया कि गोरखाओं का संघर्ष केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि जातीय, पहचान और सुरक्षा से जुड़ा हुआ संघर्ष है।

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