दार्जिलिंग । गोरखालैंड एक्टिविस्ट ग्रुप के समन्वयक किशोर प्रधान के नेतृत्व में एक टीम ने शनिवार को हिमालयन प्लांटेशन कर्मचारी संघ की सचिव संगीता छेत्री से मुलाकात की, जो 5 सितंबर को लॉन्गव्यू चाय बागान में श्रमिकों के आंदोलन के दौरान घायल हो गई थीं।
ग्रुप के समन्वयक श्री प्रधान ने कहा कि लॉन्गव्यू चाय बागान स्थित संगीता छेत्री के घर पहुंची कार्यकर्ताओं की टीम ने घटना के बारे में विस्तृत जानकारी ली और श्रमिकों के कल्याण के लिए छेत्री द्वारा दिखाए गए साहस की सराहना की। बैठक के दौरान श्री प्रधान ने कहा कि एक महिला के साथ इसलिए मारपीट की गयी, क्योंकि सत्तारूढ़ दल लॉन्गव्यू चाय बागान के मजदूरों द्वारा अपने हक व अधिकार के लिए गैर राजनीतिक संगठन द्वारा उठाये गये कदम से डर गयी थी और यह मजदूरों की पहली जीत है।
उन्होंने घायल छेत्री के स्वस्थ होने की भी प्रार्थना की और कहा कि तथ्यों, संगठनात्मक ताकत और संघर्ष से जीत हासिल नहीं कर पाने के बाद मजदूरों की आवाज बनकर सामने आने वाली महिला पर हमला करना कायरतापूर्ण और निंदनीय कृत्य है। उन्होंने उनके साहस और सही कदम की सराहना करते हुए कहा कि चाय श्रमिकों को समय-समय पर जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है, उसका स्थायी समाधान निकाला जाना चाहिए।
प्रधान ने यह भी कहा कि जब कोई सत्ताधारी दल कार्यकर्ताओं की आवाज बनकर आगे आता है, तो साफ होता है कि उसमें कितनी ईमानदारी और ताकत है। उन्होंने यह भी कहा कि हालांकि वह गोरखालैंड के अलावा किसी अन्य मुद्दे में शामिल नहीं होना चाहते हैं, लेकिन गोरखालैंड एक्टिविस्ट ग्रुप ने पहले ही लॉन्गव्यू में इस आंदोलन के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त की है। क्योंकि गोरखालैंड के संघर्ष में सबसे ज्यादा पीड़ित चाय श्रमिक हैं। यह घोर अन्याय है और गैर-राजनीतिक संगठनों द्वारा इसका विरोध किया जा रहा है।
लॉन्गव्यू चाय बागान ने भी कहा कि उन्हें एहसास हुआ कि अन्य चाय बागान श्रमिकों को भी इस संघर्ष के रास्ते पर चलने की जरूरत है, जो गैर-राजनीतिक संगठनों के माध्यम से शुरू किया गया था। प्रधान ने कहा कि दूसरी तरफ मजदूरों की आवाज को दबाने की कोशिश मौजूदा समय में सबसे बड़ी बुराई है। छेत्री का साहस और बहादुरी सराहनीय है। दार्जिलिंग के चाय श्रमिक गुणवत्तापूर्ण और विश्व प्रसिद्ध चाय का उत्पादन करते हैं, लेकिन वही श्रमिक ऐसी स्थिति में हैं, जहां उन्हें अक्सर अपनी दैनिक उपस्थिति और छोटी सुविधाओं के लिए विरोध करना पड़ता है। इससे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण कुछ नहीं हो सकता। अत: इसका स्थायी समाधान निकाला जाना चाहिए और वह कार्य गैर-राजनीतिक संगठनों के माध्यम से ही संभव है।
इस बीच संगीता छेत्री ने ग्रुप के सदस्यों के सामने अपनी पीड़ा रखी और कार्यकर्ताओं की आवाज बनकर सामने आईं। हालांकि उन्हें इस तरह के व्यवहार का दुख हुआ, लेकिन उन्होंने इस आंदोलन को न छोड़ने का वादा भी किया।
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