नेपाली भाषा मान्यता दिवस नहीं गोरखा भाषा मान्यता दिवस मनाएं : पेंबा रिम्पोछे

कार्सियांग : भारतीय गोरखा भाषा आयोग गठन समिति के उपाध्यक्ष व शामी लाखांग मोनाष्ट्री, कार्सियांग के धर्मगुरु पेंबा रिम्पोछे ने 20 अगस्त को आयोजित होने जा रहे नेपाली भाषा मान्यता दिवस के संदर्भ पर कहा है कि भारत देश में रहनेवाले गोरखाओं के लिए नेपाली भाषा नहीं,बल्कि गोरखा भाषा  अनिवार्य है। हम भारत में रहनेवाले गोरखाओं की जाति जब गोरखा है तो, हमारी भाषा भी गोरखा भाषा होना अनिवार्य है।

पत्रकारों से बातचीत करने के दौरान उन्होंने कहा नेपाली कहने से नेपाल देश के निवासी की पहचान होती है। ऐसे लोगों को भारतीय नेपाली कदापि नहीं कहा जा सकता। 20 अगस्त 1992 को नेपाली व गोरखा भाषा को भारतीय संविधान के तहत आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया है। यह सही है, परंतु हम सभी को मिलकर नेपाली के बदले गोरखा भाषा का ही प्रयोग करने की आवश्यकता है। इससे हमारी पहचान भारतीय गोरखा के रूप में सहज रूप से हो सकेगी।

उन्‍होंने कहा कि हमारी पूर्वजों ने वर्ष 1913 में कार्सियांग में गोरखा जन पुस्तकालय को स्थापित किया था। इसके अलावा दार्जिलिंग पहाड़ी क्षेत्र के विविध इलाकों में गोरखा दु:ख निवारक सम्मेलन  रंगशाला को स्थापित किया था। यह अभी तक बरकरार है। उन्होंने पहले ही सोच समझकर गोरखा नाम रखा था। इस पर भी हमें ध्यान देने की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि विगत में भाषा मान्यता प्राप्त करने के दौरान नेपाली शब्द का जो प्रयोग किया गया है, इसमें सुधार करने की आवश्यकता है। जबरन गोरखा भाषा को नेपाली भाषा कहने से नहीं होगा। आज देखा जाए तो नेपाली व गोरखा भाषा दोनों देवनागरी लिपि में हैं, परंतु दोनों भाषा की बोलचाल में काफी अंतर है।

अंत में उन्होंने बुद्धिजीवियों से इस विषय को गंभीरता से लेकर एक जाति, एक भाषा यानी गोरखा जाति, गोरखा भाषा बनाने पर आवश्यक पहल अपनाने का आह्वान भी किया है। उन्होंने कहा कि भारतीय गोरखा भाषा आयोग गठन समिति द्वारा उठान किये गए इस विषय को सकारात्मक सोच लेकर कार्य करने की आवश्यकता है,नकारात्मक सोच लेकर नहीं। उन्होंने नेपाली भाषा मान्यता दिवस के बदले गोरखा भाषा मान्यता दिवस भव्यता सहित मनाने का आह्वान भी लोगों से किया है।

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