नई दिल्ली (ईएमएस) । भारत, जो दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, कई आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रही है। रोजगार सृजन में कमी और प्राइवेट इन्वेस्टमेंट में आई गिरावट के कारण आर्थिक विकास धीमा हो गया, जो खतरा पैदा करने जैसा है। सरकार द्वारा इंफ्रास्ट्रक्चर पर बड़े पैमाने पर खर्च किए जाने से ग्रोथ रेट को बल मिला है, लेकिन बैंक डिपॉजिट की धीमी वृद्धि और लोन वितरण में अनियमितताओं के कारण विकास में संतुलन बिगड़ रहा है।
बैंकों की कर्ज देने की क्षमता घट रही है, क्योंकि उनके पास डिपॉजिट की कमी हो रही है। भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार, डिपॉजिट ग्रोथ पिछले दो सालों में औसतन 11.1 प्रतिशत रही, जबकि कर्ज वृद्धि 16.8 प्रतिशत पर पहुंच गई। इस वित्तीय असंतुलन के कारण बैंकों को कर्ज वितरण में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है, जो भारत की आर्थिक वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है।
वहीं, प्राइवेट इन्वेस्टमेंट में भी कमी देखी गई है, जिसे निजी स्थायी पूंजी निर्माण (जीएफसीएफ) के रूप में मापा जाता है। वित्त वर्ष 2024 की चौथी तिमाही में यह निवेश घटकर 6.46 प्रतिशत पर आ गया, जबकि पिछली तिमाही में यह 9.7 प्रतिशत था। आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, पिछले चार सालों में कुल जीएफसीएफ में नॉन-फाइनेंशियल निजी कंपनियों की हिस्सेदारी केवल 0.8 प्रतिशत बढ़ी है। इसका मुख्य कारण बैंकों की कर्ज देने की घटती क्षमता और निजी क्षेत्र में निवेश की कमी है। बेरोजगारी दर, खासकर युवाओं में, चिंताजनक स्तर तक बढ़ गई है। वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों के अनुसार, देश में युवाओं की बेरोजगारी दर 17 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है, जो रोजगार सृजन की गंभीर स्थिति को दर्शाता है।
हालांकि, सरकार द्वारा इंफ्रास्ट्रक्चर और हाउसिंग सेक्टर में किए गए निवेश से कुछ राहत के संकेत मिले हैं। इन क्षेत्रों में स्टील और सीमेंट जैसे संबंधित उद्योगों में निजी निवेश आकर्षित हुआ है, जिससे भविष्य में निजी निवेश को गति मिलने की उम्मीद है। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी डिपॉजिट ग्रोथ में गिरावट पर चिंता जताई है, विशेष रूप से यह देखते हुए कि घरों की बचत अब बैंकों के बजाय पूंजी बाजारों की ओर मुड़ रही है।
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